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सुप्रीम कोर्ट ने अनाथ लड़के का संरक्षण दादा-दादी को सौंपा

सुप्रीम कोर्ट (supreme court) ने गुजरात हाई कोर्ट के निर्णय को बदलते हुए अनाथ हुए छह साल के लड़के का संरक्षण उसके दादा-दादी को सौंपने का आदेश दिया है. कोर्ट ने कहा कि दादा-दादी हमेशा अपने पोते-पोतियों की बेहतर देखभाल करेंगे क्योंकि वे भावात्मक रूप से अधिक करीब होते हैं.

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Published : Jun 9, 2022, 5:09 PM IST

supreme court
सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय (supreme court) ने पिछले साल कोविड-19 की खतरनाक दूसरी लहर में अनाथ हुए छह साल के लड़के का संरक्षण गुरुवार को उसके दादा-दादी को सौंपते हुए कहा कि भारतीय समाज में हमेशा दादा-दादी अपने पोते-पोतियों की 'बेहतर देखभाल' करते हैं. लड़के के पिता और मां की मौत अहमदाबाद में क्रमश: 13 मई और 12 जून को हुई थी और बाद में गुजरात उच्च न्यायालय ने लड़के की हिरासत उसकी मौसी को दे दी थी.

न्यायमूर्ति एम आर शाह (Justices MR Shah) की अध्यक्षता वाली पीठ ने उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द करते हुए कहा, 'हमारे समाज में दादा-दादी हमेशा अपने पोते की बेहतर देखभाल करेंगे. वे अपने पोते-पोतियों से भावनात्मक रूप से अधिक करीब होते हैं और नाबालिग को दाहोद के मुकाबले अहमदाबाद में बेहतर शिक्षा मिलेगी.' बहरहाल, पीठ ने कहा कि मौसी के पास लड़के से मिलने का अधिकार हो सकता है और वह बच्चे की सुविधा के अनुसार उससे मुलाकात कर सकती है.

न्यायालय ने कहा कि लड़के को दादा-दादी को सौंपने से इनकार करने का एकमात्र मापदंड आय नहीं हो सकती है. उच्च न्यायालय ने कहा था कि लड़का अपने दादा-दादी के साथ सहज है. हालांकि, उसने बच्चे का संरक्षण इस आधार पर मौसी को दे दिया था कि वह 'अविवाहित है, केंद्र सरकार में नौकरी करती है और एक संयुक्त परिवार में रहती है, जो बच्चे की परवरिश के लिए अनुकूल होगा.'

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय (supreme court) ने पिछले साल कोविड-19 की खतरनाक दूसरी लहर में अनाथ हुए छह साल के लड़के का संरक्षण गुरुवार को उसके दादा-दादी को सौंपते हुए कहा कि भारतीय समाज में हमेशा दादा-दादी अपने पोते-पोतियों की 'बेहतर देखभाल' करते हैं. लड़के के पिता और मां की मौत अहमदाबाद में क्रमश: 13 मई और 12 जून को हुई थी और बाद में गुजरात उच्च न्यायालय ने लड़के की हिरासत उसकी मौसी को दे दी थी.

न्यायमूर्ति एम आर शाह (Justices MR Shah) की अध्यक्षता वाली पीठ ने उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द करते हुए कहा, 'हमारे समाज में दादा-दादी हमेशा अपने पोते की बेहतर देखभाल करेंगे. वे अपने पोते-पोतियों से भावनात्मक रूप से अधिक करीब होते हैं और नाबालिग को दाहोद के मुकाबले अहमदाबाद में बेहतर शिक्षा मिलेगी.' बहरहाल, पीठ ने कहा कि मौसी के पास लड़के से मिलने का अधिकार हो सकता है और वह बच्चे की सुविधा के अनुसार उससे मुलाकात कर सकती है.

न्यायालय ने कहा कि लड़के को दादा-दादी को सौंपने से इनकार करने का एकमात्र मापदंड आय नहीं हो सकती है. उच्च न्यायालय ने कहा था कि लड़का अपने दादा-दादी के साथ सहज है. हालांकि, उसने बच्चे का संरक्षण इस आधार पर मौसी को दे दिया था कि वह 'अविवाहित है, केंद्र सरकार में नौकरी करती है और एक संयुक्त परिवार में रहती है, जो बच्चे की परवरिश के लिए अनुकूल होगा.'

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(पीटीआई-भाषा)

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