नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी गणेश मूर्तियों (Plaster of Paris Ganesh idols) की बिक्री पर रोक लगाने के मद्रास उच्च न्यायालय की खंडपीठ के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया.
भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि अदालत मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप नहीं करेगी.
याचिकाकर्ता प्रकाश का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने दलील दी कि उनके मुवक्किल ने अब तक ऐसी 150 मूर्तियां बनाई हैं और ये प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियां हैं.
पीठ ने कहा कि जिन मूर्तियों का विसर्जन नहीं किया जा सकता, उन्हें बेचने का क्या फायदा. दीवान ने कहा कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) का कहना है कि मूर्तियों का निपटान कृत्रिम जल निकायों में किया जा सकता है.
पीठ ने याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता प्राकृतिक मिट्टी आदि का उपयोग कर सकता था. अधिवक्ता अमित आनंद तिवारी ने शीर्ष अदालत के समक्ष तमिलनाडु सरकार का प्रतिनिधित्व किया. याचिकाकर्ता ने कहा कि पुलिस कर्मियों ने उसे विशेष रूप से विनायक चतुर्थी की शुरुआत के दौरान किसी भी मूर्ति को बेचने से रोका, जिसके बाद उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया.
याचिका में कहा गया है कि 'उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश ने याचिकाकर्ता को नियमों और विनियमों के भीतर पर्यावरण-अनुकूल मूर्तियां बनाने की अनुमति देते हुए एक आदेश पारित किया, साथ ही नदी के पानी में विषाक्त और प्रदूषणकारी पदार्थों से बनी मूर्तियों के विसर्जन को प्रतिबंधित करने वाले नियमों को भी बरकरार रखा.'
उन्होंने कहा कि इस तर्कसंगत आदेश के खिलाफ, प्रतिवादी ने एकल न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश पर रोक लगाने के लिए एक आवेदन के साथ उच्च न्यायालय की खंडपीठ के समक्ष एक रिट अपील दायर की.
याचिका में कहा गया है कि 'पक्षों को सुनने के बाद, डिवीजन बेंच ने रिट अपील पर रोक लगाने के आवेदन को स्वीकार कर लिया और प्रतिवादियों को प्लास्टर ऑफ पेरिस या प्लास्टिक से बनी मूर्तियों के निर्माण, बिक्री या विसर्जन को रोकने के लिए किसी के खिलाफ उचित कार्रवाई करने का निर्देश दिया.'
याचिकाकर्ता का कहना है कि प्रतिवादियों ने कला के तहत याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया है. भारत के संविधान की धारा 19 (1) (जी) के तहत केवल मूर्तियों के निर्माण के लिए याचिकाकर्ता को परेशान करने और आपराधिक कार्रवाई की धमकी देकर, याचिकाकर्ता को अपने पेशे को जारी रखने और व्यवसाय करने के अधिकार से वंचित कर दिया गया है. पुलिस की ये मनमानी है.