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तेलंगाना सरकार बनाम राज्यपाल : सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर एसजी को निर्देश लेने के लिए कहा

तेलंगाना सरकार बनाम राज्यपाल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल को इस पर निर्णय लेने का आदेश दिया है. राज्य सरकार का आरोप है कि गवर्नर ने बिल को लंबित रखा हुआ है, और इस कारण कई महत्वपूर्ण काम नहीं हो पा रहे हैं.

tamilisai sunderrajan
तमिलनाडु की राज्यपाल तमिलिसाई सुंदरराजन
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Published : Mar 20, 2023, 7:01 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से तेलंगाना सरकार द्वारा दायर उस याचिका पर निर्देश लेने को कहा, जिसमें राज्यपाल तमिलिसाई सुंदरराजन को विधानसभा द्वारा पारित दस विधेयकों को पारित करने का निर्देश देने की मांग की गई है, जिन पर उनकी सहमति का इंतजार है. मेहता ने प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष कहा कि कोर्ट इस मामले में नोटिस जारी न करे और वह निर्देश लेंगे.

उन्होंने कहा, "संभव है कि कुछ बिल कुछ महीने पहले मिले हों." इस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा, "हम राज्यपाल को नोटिस जारी नहीं कर रहे हैं. हम भारतीय संघ को नोटिस जारी कर रहे हैं." मेहता ने कहा कि यह आवश्यक नहीं हो सकता, क्योंकि वह अदालत के समक्ष हैं और उन्होंने कहा कि याचिका की एक प्रति उन्हें दी जाए और दोहराया, "आपका आधिपत्य नोटिस जारी नहीं कर सकता."

पीठ में शामिल जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जे.बी. पारदीवाला ने स्पष्ट किया कि वह राज्यपाल और प्रतिवादी संख्या 2 को नोटिस जारी नहीं कर रहा है, जो कि भारत का संघ है. मेहता ने फिर जोर देकर कहा कि मामले में नोटिस जारी नहीं किया जा सकता. तेलंगाना सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने कहा कि अदालत सॉलिसिटर जनरल की उपस्थिति दर्ज कर सकती है और उन्हें कोई समस्या नहीं है. दलीलें सुनने के बाद पीठ ने मेहता की दलील को स्वीकार कर लिया और मामले की अगली सुनवाई अगले सोमवार को होनी तय की.

14 मार्च को दवे ने तत्काल सूचीबद्ध करने के लिए प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष यह कहते हुए मामले का उल्लेख किया कि कई विधेयक अटके हुए हैं. मामले की सुनवाई 20 मार्च को निर्धारित की गई थी. इस महीने की शुरुआत में तेलंगाना सरकार ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने के लिए राज्यपाल को निर्देश देने की मांग की गई थी.

राज्य सरकार ने एक रिट याचिका में सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में लाया है कि राजभवन में 10 बिल लंबित हैं. जबकि सात बिल सितंबर 2022 से लंबित हैं, तीन बिल राज्यपाल को उनकी मंजूरी के लिए पिछले महीने भेजे गए थे. राज्यपाल के सचिव और भारत संघ को मामले में प्रतिवादी बनाया गया है. दलील में कहा गया है कि संविधान का अनुच्छेद 200 राज्यपाल को या तो राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयक पर सहमति देने या उस पर सहमति वापस लेने या राष्ट्रपति के विचार के लिए विधेयक को आरक्षित करने का अधिकार देता है और इस शक्ति का प्रयोग जल्द से जल्द किया जाना संभव है.

ये भी पढ़ें : SC ने लिव-इन रिलेशन के पंजीकरण से जुड़ी याचिका को किया खारिज, कहा- मूर्खतापूर्ण विचार

यह दूसरी बार है, जब भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) ने राज्यपाल के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया है. पिछले महीने सरकार ने 2023-24 के लिए राज्य के बजट को मंजूरी देने के लिए राज्यपाल को निर्देश देने के लिए तेलंगाना हाईकोर्ट का रुख किया. हालांकि कोर्ट ने सुझाव दिया था कि दोनों पक्ष इस मुद्दे को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझा लें.

(आईएएनएस)

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से तेलंगाना सरकार द्वारा दायर उस याचिका पर निर्देश लेने को कहा, जिसमें राज्यपाल तमिलिसाई सुंदरराजन को विधानसभा द्वारा पारित दस विधेयकों को पारित करने का निर्देश देने की मांग की गई है, जिन पर उनकी सहमति का इंतजार है. मेहता ने प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष कहा कि कोर्ट इस मामले में नोटिस जारी न करे और वह निर्देश लेंगे.

उन्होंने कहा, "संभव है कि कुछ बिल कुछ महीने पहले मिले हों." इस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा, "हम राज्यपाल को नोटिस जारी नहीं कर रहे हैं. हम भारतीय संघ को नोटिस जारी कर रहे हैं." मेहता ने कहा कि यह आवश्यक नहीं हो सकता, क्योंकि वह अदालत के समक्ष हैं और उन्होंने कहा कि याचिका की एक प्रति उन्हें दी जाए और दोहराया, "आपका आधिपत्य नोटिस जारी नहीं कर सकता."

पीठ में शामिल जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जे.बी. पारदीवाला ने स्पष्ट किया कि वह राज्यपाल और प्रतिवादी संख्या 2 को नोटिस जारी नहीं कर रहा है, जो कि भारत का संघ है. मेहता ने फिर जोर देकर कहा कि मामले में नोटिस जारी नहीं किया जा सकता. तेलंगाना सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने कहा कि अदालत सॉलिसिटर जनरल की उपस्थिति दर्ज कर सकती है और उन्हें कोई समस्या नहीं है. दलीलें सुनने के बाद पीठ ने मेहता की दलील को स्वीकार कर लिया और मामले की अगली सुनवाई अगले सोमवार को होनी तय की.

14 मार्च को दवे ने तत्काल सूचीबद्ध करने के लिए प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष यह कहते हुए मामले का उल्लेख किया कि कई विधेयक अटके हुए हैं. मामले की सुनवाई 20 मार्च को निर्धारित की गई थी. इस महीने की शुरुआत में तेलंगाना सरकार ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने के लिए राज्यपाल को निर्देश देने की मांग की गई थी.

राज्य सरकार ने एक रिट याचिका में सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में लाया है कि राजभवन में 10 बिल लंबित हैं. जबकि सात बिल सितंबर 2022 से लंबित हैं, तीन बिल राज्यपाल को उनकी मंजूरी के लिए पिछले महीने भेजे गए थे. राज्यपाल के सचिव और भारत संघ को मामले में प्रतिवादी बनाया गया है. दलील में कहा गया है कि संविधान का अनुच्छेद 200 राज्यपाल को या तो राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयक पर सहमति देने या उस पर सहमति वापस लेने या राष्ट्रपति के विचार के लिए विधेयक को आरक्षित करने का अधिकार देता है और इस शक्ति का प्रयोग जल्द से जल्द किया जाना संभव है.

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यह दूसरी बार है, जब भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) ने राज्यपाल के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया है. पिछले महीने सरकार ने 2023-24 के लिए राज्य के बजट को मंजूरी देने के लिए राज्यपाल को निर्देश देने के लिए तेलंगाना हाईकोर्ट का रुख किया. हालांकि कोर्ट ने सुझाव दिया था कि दोनों पक्ष इस मुद्दे को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझा लें.

(आईएएनएस)

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