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ये हैं बनारस के ब्लड कमांडो, देशभर में कहीं भी कभी भी खून की जरूरत हो, फौरन करते हैं मदद - वाराणसी सौरभ ब्लड कमांडो

वाराणसी के सौरभ मौर्या (Saurabh Maurya) किसी परिचय के मोहताज नहीं. हजारों लोगों की जिंदगियां वे अब तक बचा चुके हैं. उम्र तो वैसे महज 34 साल है, लेकिन 188 बार रक्तदान कर चुके हैं. सौरभ का मिशन है कि खून की कमी से किसी की जान नहीं जाने देंगे, और इसमें उनके साथ खड़े होते हैं उनके ब्लड कमांडो.

वाराणसी के सौरभ मौर्या लोगों के लिए प्रेरणस्रोत बन चुके हैं.
वाराणसी के सौरभ मौर्या लोगों के लिए प्रेरणस्रोत बन चुके हैं.
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Dec 7, 2023, 5:44 PM IST

वाराणसी के सौरभ मौर्या लोगों के लिए प्रेरणस्रोत बन चुके हैं.

वाराणसी : उनकी उम्र महज 34 साल है लेकिन अब तक वह 188 बार रक्तदान कर चुके हैं. उनका मानना है कि जीवन में सबसे महत्वपूर्ण काम है, किसी के काम आना, किसी की जिंदगी बचाना. अगर यह सार्थक हुआ तो इससे बड़ा पुण्य कोई नहीं है. अपने इस ध्येय को लेक चलने वाले शख्स का नाम है सौरभ मौर्या. सौरभ 2007 से अब तक न जाने कितने लोगों की जिंदगियां बचा चुके हैं. सौरभ बनारस में साधना फाउंडेशन नाम से एक संस्था चलाते हैं, जो कि पूरे देश में काम करती है. 3700 से ज्यादा संस्थाओं से जुड़े सौरभ का कहना है कि देश भर में लगभग 7 लाख लोगों की टीम अब तक 25000 से ज्यादा लोगों की जिंदगी में बचा चुकी है. खास बात यह है कि सौरभ के संगठन में एक अलग विंग है, जिसे ब्लड कमांडो कहा जाता है. यह रक्तदान कर लोगों की जान बचाती है.

वाराणसी के सौरभ मौर्या लोगों के लिए प्रेरणस्रोत बन चुके हैं.

ऐसे मिली लोगों की मदद की प्रेरणाा

सौरभ ने ईटीवी भारत से बताया कि कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक, आपको कहीं भी कभी भी ब्लड की जरूरत है तो सिर्फ हमारी हेल्पलाइन नंबर पर कॉल करके मदद पा सकते हैं. हम निस्वार्थ भाव से लोगों की सेवा करते हैं. बताते हैं कि 2007 में वह अपने दोस्त की दादी को सुंदरलाल अस्पताल में ब्लड देने के लिए गए थे. यह पहला मौका था जब वह ब्लड डोनेशन करने गए थे. उस दौरान उन्होंने थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों के पिता को लोगों के आगे खून के लिए गिड़गिड़ाते देखा. यह देखकर उन्हें दुख हुआ. सोचा कि आखिर एक स्वस्थ व्यक्ति जब ब्लड दे सकता है तो इस तरह से लोगों को क्यों गिड़गिड़ाना पड़ता है.

दोस्तों के साथ मिलकर बनाया ब्लड कमांडो ग्रुप

सौरभ ने 2007 में अपने कुछ दोस्तों के साथ ब्लड कमांडो ग्रुप की शुरुआत की. इसका काम लोगों को ब्लड डोनेशन के लिए मदद पहुंचाना था. 2012 तक सब कुछ इसी तरह चलता रहा लेकिन फाइनेंशियल दिक्कतों की वजह से सौरभ ने एक संस्था बनाने का निर्णय लिया. 2012 में एक एनजीओ साधना फाउंडेशन नाम से बनवाया. इस एनजीओ के बनने के बाद कई बड़ी सामजिक संस्थाओं ने सौरभ से संपर्क किया और ब्लड डोनेशन कैंप के लिए उन्हें इनवाइट करने लगे. देखते ही देखते सैकड़ों सिस्टर कंसर्न संस्थाओं से जुड़कर सौरभ यह काम आगे बढ़ाने लगे. सौरभ कहते हैं, समाज में बदलाव जरूरी है. खून के बदले खून बहाना आसान है, लेकिन किसी को खून देकर उसकी जिंदगी बचाना कितना बड़ा पुण्य का काम है, यह उस परिवार से पूछिए जिनके चेहरों पर अपनों की जान बचने की खुशी होती है.

खून की कमी से न होने पाए किसी की मौत

बनारस और पूर्वांचल के अस्पतालों में खून की कमी के कारण होने वाली मौतों को रोकने के लिए सौरभ ने बड़ा अभियान शुरू किया. सौरभ का यह अभियान रंग लाया. बीच-बीच में सौरभ ने गड़बड़झाला कर रहे अस्पतालों के खिलाफ भी मुहिम को छेड़ सरकार तक बात पहुंचाई. जिस पर कई अस्पतालों पर कार्रवाई भी हुई. सौरभ बताते हैं कि देश का कोई भी हिस्सा हो, हमारे टीम मेंबर्स मदद के लिए जरूरतमंदों के साथ में खड़े होते हैं. शुरुआत में परिवार के लोगों ने भी काफी विरोध किया. यह भ्रम था कि बार-बार खून देने से कमजोरी आती है. इस भ्रम को भी तोड़ा और परिवार के लोगों को समझाया. 2014 में मेरे पिताजी को जब हार्ट अटैक आया और हम अहमदाबाद में उनके इलाज के लिए गए उस वक्त दो यूनिट ब्लड की जरूरत थी. जिसके लिए चार लोगों का होना आवश्यक था, लेकिन मौके पर 40 लोग जुट गए थे. जिसके बाद मेरे माता-पिता को यह बात समझ में आ गई कि बेटा कुछ अच्छा कर रहा है और परिवार वालों ने मेरा साथ देना शुरू कर दिया.

34 साल में 188 बार कर चुके रक्तदान

सौरभ 34 साल की उम्र में अब तक 188 बार रक्तदान कर चुके हैं. बताते हैं कि आज की डेट में यह वर्ल्ड रिकॉर्ड है. सौरभ बताते हैं कि 32 वर्ष की आयु में ही उन्होंने 100 से ज्यादा बार रक्तदान किया है. आज साधना फाउंडेशन की सेल्फ टीम लगभग 25000 से ज्यादा की है. सिस्टर कंसर्न आर्गेनाइजेशन की बात करें तो 3700 आर्गेनाइजेशन के साथ काम कर रहे हैं. बताते हैं कि लगभग 7 लाख से ज्यादा लोग हमारी इस टीम के साथ जुड़कर पूरे इंडिया में काम कर रहे हैं.

सौरभ बोले- गर्व है कि काशी का हूं

सौरभ कहते हैं, मुझे बहुत गर्व महसूस होता है कि मैं काशी का रहने वाला हूं. मैंने काशी को कई जगहों पर रिप्रेजेंट किया है. सेवा कार्यों की वजह से मुझे भारत के करीब 26 राज्यों से राज्य पुरस्कार और राष्ट्रीय स्तर पर करीब 9 पुरस्कार मुझे मिल चुका है. इसके अलावा तीन बार विश्व रिकॉर्ड है और दो बार इंडियन बुक ऑफ रिकॉर्ड में मेरा नाम दर्ज हुआ है. इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद दो बार मुझे अपनी आशीर्वाद की चिट्ठी भेजी है और हाल ही में मुझे एकेडमिक काउंसिल आफ वॉशिंगटन की तरफ से सोशल वर्क की तरफ से डॉक्टरेट की डिग्री दी जा रही है. मुझे अप्रूवल लेटर मेल के जरिए आ गया है और जल्द ही यह डिग्री भी मिलेगी.

मदद चाहिए तो इस नंबर पर करें कॉल

सौरभ कते हैं कि कोई भी यदि व्यक्ति मदद चाहता है तो हमारे हेल्पलाइन नंबर 6393407655 पर संपर्क कर सकता है. उन्होंने जिनकी भी मदद की है, वह आज जब मिलते हैं तो हमेशा शुक्रगुजार होते हैं. सौरभ के प्रयासों से न जाने कितने लोगों की जिंदगियां बची हैं. ऐसे ही एक जिंदगी बचाने वाले सौरभ के शुक्रगुजार गौरव सिंह का कहना है कि पिछले साल उनकी मां का प्लेटलेट्स डेंगू की वजह से काफी कम था. हर तरफ हारने के बाद जब सौरभ को फोन किया तो उन्होंने तुरंत ब्लड डोनेट करके उनकी मां के जीवन को बचाने का काम किया. फिलहाल सौरभ का यह प्रयास आज भी उन लोगों के लिए प्रेरणा है जो सिर्फ अपने स्वार्थ में रहते हैं. दूसरों की जिंदगी से उन्हें कोई लेना-देना नहीं. सच तो यही है कि अपने से ज्यादा दूसरों के लिए जीने वाले ही हमेशा याद रखे जाते हैं.

यह भी पढ़ें : उत्तर में उतरेगा दक्षिण: बनारस में 17 दिसंबर से 'तमिल संगमम', आएंगे 1500 मेहमान

यह भी पढ़ें : बनारस में काशी के कोतवाल काल भैरव को चढ़ाया गया 1051 किलो का केक, जानें खासियत

वाराणसी के सौरभ मौर्या लोगों के लिए प्रेरणस्रोत बन चुके हैं.

वाराणसी : उनकी उम्र महज 34 साल है लेकिन अब तक वह 188 बार रक्तदान कर चुके हैं. उनका मानना है कि जीवन में सबसे महत्वपूर्ण काम है, किसी के काम आना, किसी की जिंदगी बचाना. अगर यह सार्थक हुआ तो इससे बड़ा पुण्य कोई नहीं है. अपने इस ध्येय को लेक चलने वाले शख्स का नाम है सौरभ मौर्या. सौरभ 2007 से अब तक न जाने कितने लोगों की जिंदगियां बचा चुके हैं. सौरभ बनारस में साधना फाउंडेशन नाम से एक संस्था चलाते हैं, जो कि पूरे देश में काम करती है. 3700 से ज्यादा संस्थाओं से जुड़े सौरभ का कहना है कि देश भर में लगभग 7 लाख लोगों की टीम अब तक 25000 से ज्यादा लोगों की जिंदगी में बचा चुकी है. खास बात यह है कि सौरभ के संगठन में एक अलग विंग है, जिसे ब्लड कमांडो कहा जाता है. यह रक्तदान कर लोगों की जान बचाती है.

वाराणसी के सौरभ मौर्या लोगों के लिए प्रेरणस्रोत बन चुके हैं.

ऐसे मिली लोगों की मदद की प्रेरणाा

सौरभ ने ईटीवी भारत से बताया कि कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक, आपको कहीं भी कभी भी ब्लड की जरूरत है तो सिर्फ हमारी हेल्पलाइन नंबर पर कॉल करके मदद पा सकते हैं. हम निस्वार्थ भाव से लोगों की सेवा करते हैं. बताते हैं कि 2007 में वह अपने दोस्त की दादी को सुंदरलाल अस्पताल में ब्लड देने के लिए गए थे. यह पहला मौका था जब वह ब्लड डोनेशन करने गए थे. उस दौरान उन्होंने थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों के पिता को लोगों के आगे खून के लिए गिड़गिड़ाते देखा. यह देखकर उन्हें दुख हुआ. सोचा कि आखिर एक स्वस्थ व्यक्ति जब ब्लड दे सकता है तो इस तरह से लोगों को क्यों गिड़गिड़ाना पड़ता है.

दोस्तों के साथ मिलकर बनाया ब्लड कमांडो ग्रुप

सौरभ ने 2007 में अपने कुछ दोस्तों के साथ ब्लड कमांडो ग्रुप की शुरुआत की. इसका काम लोगों को ब्लड डोनेशन के लिए मदद पहुंचाना था. 2012 तक सब कुछ इसी तरह चलता रहा लेकिन फाइनेंशियल दिक्कतों की वजह से सौरभ ने एक संस्था बनाने का निर्णय लिया. 2012 में एक एनजीओ साधना फाउंडेशन नाम से बनवाया. इस एनजीओ के बनने के बाद कई बड़ी सामजिक संस्थाओं ने सौरभ से संपर्क किया और ब्लड डोनेशन कैंप के लिए उन्हें इनवाइट करने लगे. देखते ही देखते सैकड़ों सिस्टर कंसर्न संस्थाओं से जुड़कर सौरभ यह काम आगे बढ़ाने लगे. सौरभ कहते हैं, समाज में बदलाव जरूरी है. खून के बदले खून बहाना आसान है, लेकिन किसी को खून देकर उसकी जिंदगी बचाना कितना बड़ा पुण्य का काम है, यह उस परिवार से पूछिए जिनके चेहरों पर अपनों की जान बचने की खुशी होती है.

खून की कमी से न होने पाए किसी की मौत

बनारस और पूर्वांचल के अस्पतालों में खून की कमी के कारण होने वाली मौतों को रोकने के लिए सौरभ ने बड़ा अभियान शुरू किया. सौरभ का यह अभियान रंग लाया. बीच-बीच में सौरभ ने गड़बड़झाला कर रहे अस्पतालों के खिलाफ भी मुहिम को छेड़ सरकार तक बात पहुंचाई. जिस पर कई अस्पतालों पर कार्रवाई भी हुई. सौरभ बताते हैं कि देश का कोई भी हिस्सा हो, हमारे टीम मेंबर्स मदद के लिए जरूरतमंदों के साथ में खड़े होते हैं. शुरुआत में परिवार के लोगों ने भी काफी विरोध किया. यह भ्रम था कि बार-बार खून देने से कमजोरी आती है. इस भ्रम को भी तोड़ा और परिवार के लोगों को समझाया. 2014 में मेरे पिताजी को जब हार्ट अटैक आया और हम अहमदाबाद में उनके इलाज के लिए गए उस वक्त दो यूनिट ब्लड की जरूरत थी. जिसके लिए चार लोगों का होना आवश्यक था, लेकिन मौके पर 40 लोग जुट गए थे. जिसके बाद मेरे माता-पिता को यह बात समझ में आ गई कि बेटा कुछ अच्छा कर रहा है और परिवार वालों ने मेरा साथ देना शुरू कर दिया.

34 साल में 188 बार कर चुके रक्तदान

सौरभ 34 साल की उम्र में अब तक 188 बार रक्तदान कर चुके हैं. बताते हैं कि आज की डेट में यह वर्ल्ड रिकॉर्ड है. सौरभ बताते हैं कि 32 वर्ष की आयु में ही उन्होंने 100 से ज्यादा बार रक्तदान किया है. आज साधना फाउंडेशन की सेल्फ टीम लगभग 25000 से ज्यादा की है. सिस्टर कंसर्न आर्गेनाइजेशन की बात करें तो 3700 आर्गेनाइजेशन के साथ काम कर रहे हैं. बताते हैं कि लगभग 7 लाख से ज्यादा लोग हमारी इस टीम के साथ जुड़कर पूरे इंडिया में काम कर रहे हैं.

सौरभ बोले- गर्व है कि काशी का हूं

सौरभ कहते हैं, मुझे बहुत गर्व महसूस होता है कि मैं काशी का रहने वाला हूं. मैंने काशी को कई जगहों पर रिप्रेजेंट किया है. सेवा कार्यों की वजह से मुझे भारत के करीब 26 राज्यों से राज्य पुरस्कार और राष्ट्रीय स्तर पर करीब 9 पुरस्कार मुझे मिल चुका है. इसके अलावा तीन बार विश्व रिकॉर्ड है और दो बार इंडियन बुक ऑफ रिकॉर्ड में मेरा नाम दर्ज हुआ है. इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद दो बार मुझे अपनी आशीर्वाद की चिट्ठी भेजी है और हाल ही में मुझे एकेडमिक काउंसिल आफ वॉशिंगटन की तरफ से सोशल वर्क की तरफ से डॉक्टरेट की डिग्री दी जा रही है. मुझे अप्रूवल लेटर मेल के जरिए आ गया है और जल्द ही यह डिग्री भी मिलेगी.

मदद चाहिए तो इस नंबर पर करें कॉल

सौरभ कते हैं कि कोई भी यदि व्यक्ति मदद चाहता है तो हमारे हेल्पलाइन नंबर 6393407655 पर संपर्क कर सकता है. उन्होंने जिनकी भी मदद की है, वह आज जब मिलते हैं तो हमेशा शुक्रगुजार होते हैं. सौरभ के प्रयासों से न जाने कितने लोगों की जिंदगियां बची हैं. ऐसे ही एक जिंदगी बचाने वाले सौरभ के शुक्रगुजार गौरव सिंह का कहना है कि पिछले साल उनकी मां का प्लेटलेट्स डेंगू की वजह से काफी कम था. हर तरफ हारने के बाद जब सौरभ को फोन किया तो उन्होंने तुरंत ब्लड डोनेट करके उनकी मां के जीवन को बचाने का काम किया. फिलहाल सौरभ का यह प्रयास आज भी उन लोगों के लिए प्रेरणा है जो सिर्फ अपने स्वार्थ में रहते हैं. दूसरों की जिंदगी से उन्हें कोई लेना-देना नहीं. सच तो यही है कि अपने से ज्यादा दूसरों के लिए जीने वाले ही हमेशा याद रखे जाते हैं.

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