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वैज्ञानिकों का दावा, पहले टूटी चट्टान फिर दरके ग्लेशियर से आया जल-प्रलय - वैज्ञानिकों का दावा

ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के निदेशक डॉ. कालाचंद साईं ने बताया कि ग्लेशियर ऐसे ही नहीं टूटते, बल्कि ग्लेशियर के टूटने के कई कारण होते हैं. लिहाजा जोशीमठ के रैणी गांव में आई आपदा ग्लेशियर टूटने की वजह से ही हुई है.

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Published : Feb 13, 2021, 6:10 PM IST

देहरादून : उत्तराखंड के जोशीमठ के रैणी गांव में आई आपदा के बाद से ही लगातार राहत बचाव कार्य जारी है. वहीं आपदा आने की असल वजह को वैज्ञानिकों ने ढूंढ लिया है. वैज्ञानिकों के अनुसार, मृगथूनी चोटी से एक चट्टान गिरी थी क्योंकि बर्फ गिरने, उसके पिघलने और फिर जमने से सतह दलदली बन जाती है और फिर चट्टानें कमजोर हो जाती हैं. जिसके चलते रॉक मास गिर गया और उसके ऊपर मौजूद ग्लेशियर हैंगिंग हो गया था. इस वजह चलते ग्लेशियर भी टूटकर नीचे आ गया.

पहले टूटी चट्टान फिर दरके ग्लेशियर से आया जल-प्रलय

ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के निदेशक डॉ. कालाचंद साईं ने बताया कि ग्लेशियर ऐसे ही नहीं टूटते, बल्कि ग्लेशियर के टूटने के कई कारण होते हैं. लिहाजा जोशीमठ के रैणी गांव में आई आपदा ग्लेशियर टूटने की वजह से ही हुई है. लेकिन रैणी गांव के ऊपर मौजूद पहाड़ी चोटी से रॉक मास गिरने की वजह से ही ग्लेशियर टूटा है, क्योंकि गुरुत्वाकर्षण बल के कारण रॉक मास गिरने के बाद ग्लेशियर ज्यादा देर तक हैंगिंग पोजीशन में नहीं रह सका. ग्लेशियर भी रॉक मास के साथ ही नीचे आ गया.

ग्लेशियर के नीचे दलदली चट्टान
कालाचंद के अनुसार, ग्लेशियर के नीचे की दलदली पुरानी चट्टान भारी मात्रा में मिट्टी, मलबे और पानी के साथ तेजी से लुढ़की. जहां शुरुआत हुई, वहां तीव्र ढलान होने से बहुत सारा पानी, बर्फ के बड़े टुकड़े तेजी से बहने लगे और रौगर्थी गदेरा मलबे से भर गया. उच्च हिमालय में 5600 मीटर की ऊंचाई पर इस घटना से ही फ्लैश फ्लड की स्थिति बनी. कुछ देर के लिए यहां अस्थायी झील बनी, फिर ढलान पर निचले इलाकों में निकासी की सीमित जगह होने से मलबे का प्रेशर ज्यादा हो गया.

पहले टूटी चट्टान फिर दरके ग्लेशियर से आया जल-प्रलय
पहले टूटी चट्टान फिर दरके ग्लेशियर से आया जल-प्रलय

ग्लेशियर से निकल रही थी तीव्र बदबू
रैणी गांव में जब आपदा आई थी तो उस दौरान स्थानीय लोगों ने इस बात का भी जिक्र किया था. उन्होंने बताया था कि चारों तरफ धुआं सा फैल गया था. यही नहीं, एक अजीब सी तीव्र बदबू भी आ रही थी. इस सवाल पर डॉ. कालाचंद साईं ने बताया कि इस पर अभी स्टडी नहीं हो पाई है. लेकिन जब कहीं भी भारी भरकम रॉक मास गिरता है तो ऐसे में आसपास मौजूद चट्टानों से टकराने के साथ ही पेड़ पौधों से टकराने की वजह से डस्ट जैसा धुआं उत्पन्न हो जाता है. जिस चोटी से रॉक मास गिरा, उस चोटी को मृगथूनी पीक कहते हैं लेकिन यह नंदा देवी ग्लेशियर का ही एक हिस्सा है.

मृगथूनी पीक पर हुई घटना
कालाचंद साईं ने बताया कि मृगथूनी पीक पर हुई घटना अन्य किसी क्षेत्र में होने या फिर इसी जगह पर दोबारा से होने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता है. लेकिन इसके लिए लगातार रिसर्च करने की जरूरत है. क्योंकि रिसर्च के माध्यम से ही इसका पता लगाया जा सकता है. हालांकि, उत्तराखंड रीजन में मौजूद ग्लेशियर में ऐसी घटना होगी या नहीं.

यह भी पढ़ें- सीमा विवाद : चालाक ड्रैगन से पाना है पार तो भारत को देना होगा रणनीति को धार

इसके लिए मॉनिटरिंग डाटा मौजूद नहीं है, जिसके चलते यह कह पाना बहुत मुश्किल है कि ऐसी घटना किसी अन्य क्षेत्र में या फिर उस क्षेत्र में हो सकती है.

देहरादून : उत्तराखंड के जोशीमठ के रैणी गांव में आई आपदा के बाद से ही लगातार राहत बचाव कार्य जारी है. वहीं आपदा आने की असल वजह को वैज्ञानिकों ने ढूंढ लिया है. वैज्ञानिकों के अनुसार, मृगथूनी चोटी से एक चट्टान गिरी थी क्योंकि बर्फ गिरने, उसके पिघलने और फिर जमने से सतह दलदली बन जाती है और फिर चट्टानें कमजोर हो जाती हैं. जिसके चलते रॉक मास गिर गया और उसके ऊपर मौजूद ग्लेशियर हैंगिंग हो गया था. इस वजह चलते ग्लेशियर भी टूटकर नीचे आ गया.

पहले टूटी चट्टान फिर दरके ग्लेशियर से आया जल-प्रलय

ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के निदेशक डॉ. कालाचंद साईं ने बताया कि ग्लेशियर ऐसे ही नहीं टूटते, बल्कि ग्लेशियर के टूटने के कई कारण होते हैं. लिहाजा जोशीमठ के रैणी गांव में आई आपदा ग्लेशियर टूटने की वजह से ही हुई है. लेकिन रैणी गांव के ऊपर मौजूद पहाड़ी चोटी से रॉक मास गिरने की वजह से ही ग्लेशियर टूटा है, क्योंकि गुरुत्वाकर्षण बल के कारण रॉक मास गिरने के बाद ग्लेशियर ज्यादा देर तक हैंगिंग पोजीशन में नहीं रह सका. ग्लेशियर भी रॉक मास के साथ ही नीचे आ गया.

ग्लेशियर के नीचे दलदली चट्टान
कालाचंद के अनुसार, ग्लेशियर के नीचे की दलदली पुरानी चट्टान भारी मात्रा में मिट्टी, मलबे और पानी के साथ तेजी से लुढ़की. जहां शुरुआत हुई, वहां तीव्र ढलान होने से बहुत सारा पानी, बर्फ के बड़े टुकड़े तेजी से बहने लगे और रौगर्थी गदेरा मलबे से भर गया. उच्च हिमालय में 5600 मीटर की ऊंचाई पर इस घटना से ही फ्लैश फ्लड की स्थिति बनी. कुछ देर के लिए यहां अस्थायी झील बनी, फिर ढलान पर निचले इलाकों में निकासी की सीमित जगह होने से मलबे का प्रेशर ज्यादा हो गया.

पहले टूटी चट्टान फिर दरके ग्लेशियर से आया जल-प्रलय
पहले टूटी चट्टान फिर दरके ग्लेशियर से आया जल-प्रलय

ग्लेशियर से निकल रही थी तीव्र बदबू
रैणी गांव में जब आपदा आई थी तो उस दौरान स्थानीय लोगों ने इस बात का भी जिक्र किया था. उन्होंने बताया था कि चारों तरफ धुआं सा फैल गया था. यही नहीं, एक अजीब सी तीव्र बदबू भी आ रही थी. इस सवाल पर डॉ. कालाचंद साईं ने बताया कि इस पर अभी स्टडी नहीं हो पाई है. लेकिन जब कहीं भी भारी भरकम रॉक मास गिरता है तो ऐसे में आसपास मौजूद चट्टानों से टकराने के साथ ही पेड़ पौधों से टकराने की वजह से डस्ट जैसा धुआं उत्पन्न हो जाता है. जिस चोटी से रॉक मास गिरा, उस चोटी को मृगथूनी पीक कहते हैं लेकिन यह नंदा देवी ग्लेशियर का ही एक हिस्सा है.

मृगथूनी पीक पर हुई घटना
कालाचंद साईं ने बताया कि मृगथूनी पीक पर हुई घटना अन्य किसी क्षेत्र में होने या फिर इसी जगह पर दोबारा से होने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता है. लेकिन इसके लिए लगातार रिसर्च करने की जरूरत है. क्योंकि रिसर्च के माध्यम से ही इसका पता लगाया जा सकता है. हालांकि, उत्तराखंड रीजन में मौजूद ग्लेशियर में ऐसी घटना होगी या नहीं.

यह भी पढ़ें- सीमा विवाद : चालाक ड्रैगन से पाना है पार तो भारत को देना होगा रणनीति को धार

इसके लिए मॉनिटरिंग डाटा मौजूद नहीं है, जिसके चलते यह कह पाना बहुत मुश्किल है कि ऐसी घटना किसी अन्य क्षेत्र में या फिर उस क्षेत्र में हो सकती है.

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