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राजस्थान : पद्मश्री मोहनलाल कुम्हार का निधन, 'टेराकोटा' को विश्व स्तर पर किया था स्थापित

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Published : Jul 8, 2023, 12:26 PM IST

राजस्थान के नाथद्वारा उपखंड के ग्राम पंचायत मोलेला को विश्वविख्यात टेराकोटा कला से विशेष पहचान दिलाने वाले मृगशिल्पी पद्मश्री मोहनलाल प्रजापत का निधन हो गया.

Padmashree Mohanlal Kumhar Passes Away
पद्मश्री मोहनलाल कुम्हार का निधन

राजसमंद. जिले के नाथद्वारा उपखंड के रहने वाले पद्मश्री मोहनलाल कुम्हार का शुक्रवार रात उनके पैतृक मकान में निधन हो गया. उनकी तबीयत खराब चल रही थी. मोहनलाल कुम्हार को मिट्टी की मूर्तियां बनाने को लेकर टेराकोटा आर्ट के लिए वर्ष 2012 में पद्मश्री अवार्ड से नवाजा गया था. वे राष्ट्रीय ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी काफी विख्यात रहे हैं. उन्होंने कई देशों की यात्रा की. उन्होंने देशी-विदेशी लोगों को टेराकोटा आर्ट का प्रशिक्षण भी दिया था.

इस कला की शुरुआत मोहनलाल कुम्हार के पुरखों द्वारा करीब 800 वर्ष पूर्व की गई थी, लेकिन मोहनलाल के बड़े भाई खेमराज द्वारा वर्ष 1977 में दिल्ली में लगे कला मेले में लगाई प्रदर्शन से इसे राष्ट्रीय और फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली. आज गांव के करीब 30 कुम्हार परिवार इस कला को संजो रहे हैं. कुम्हार का स्वास्थ्य पिछले कुछ वर्षों से ठीक नही रहने से उनके पुत्र मोलेला ही इस कला को आगे बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं.

पढ़ें : देश की सबसे उम्रदराज करदाता गिरिजा बाई तिवारी का निधन, 120 साल में ली आखिरी सांस

पद्मश्री मोहनलाल कुम्हार का शुक्रवार देर शाम को देवलोक गमन हो गया. उनका अंतिम संस्कार शनिवार को मोलेला गांव में ही रखा गया. उन्हें श्रद्धांजलि देने क्षेत्र के कई जनप्रतिनिधि व अधिकारी पहुंचे. वर्षों पुरानी मोलेला आर्ट में मिट्टी की छोटी-बड़ी मूर्तियों के साथ ही कई प्रकार की सजावटी वस्तुएं और बर्तन आदि बनाए जाते हैं, लेकिन सबसे अधिक टाइल पर बनी लोक देवी-देवताओं मूर्तियां पसंद की जाती हैं. इन्हें लेने के लिए महाराष्ट्र, गुजरात और मध्यप्रदेश सहित देश के कई हिस्सों से लोग आते हैं. इन मूर्तियों को मंदिरों में स्थापित करने के लिए बड़ी श्रद्धा से पूजा-अर्चना कर लोग ले जाते हैं.

राजसमंद. जिले के नाथद्वारा उपखंड के रहने वाले पद्मश्री मोहनलाल कुम्हार का शुक्रवार रात उनके पैतृक मकान में निधन हो गया. उनकी तबीयत खराब चल रही थी. मोहनलाल कुम्हार को मिट्टी की मूर्तियां बनाने को लेकर टेराकोटा आर्ट के लिए वर्ष 2012 में पद्मश्री अवार्ड से नवाजा गया था. वे राष्ट्रीय ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी काफी विख्यात रहे हैं. उन्होंने कई देशों की यात्रा की. उन्होंने देशी-विदेशी लोगों को टेराकोटा आर्ट का प्रशिक्षण भी दिया था.

इस कला की शुरुआत मोहनलाल कुम्हार के पुरखों द्वारा करीब 800 वर्ष पूर्व की गई थी, लेकिन मोहनलाल के बड़े भाई खेमराज द्वारा वर्ष 1977 में दिल्ली में लगे कला मेले में लगाई प्रदर्शन से इसे राष्ट्रीय और फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली. आज गांव के करीब 30 कुम्हार परिवार इस कला को संजो रहे हैं. कुम्हार का स्वास्थ्य पिछले कुछ वर्षों से ठीक नही रहने से उनके पुत्र मोलेला ही इस कला को आगे बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं.

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पद्मश्री मोहनलाल कुम्हार का शुक्रवार देर शाम को देवलोक गमन हो गया. उनका अंतिम संस्कार शनिवार को मोलेला गांव में ही रखा गया. उन्हें श्रद्धांजलि देने क्षेत्र के कई जनप्रतिनिधि व अधिकारी पहुंचे. वर्षों पुरानी मोलेला आर्ट में मिट्टी की छोटी-बड़ी मूर्तियों के साथ ही कई प्रकार की सजावटी वस्तुएं और बर्तन आदि बनाए जाते हैं, लेकिन सबसे अधिक टाइल पर बनी लोक देवी-देवताओं मूर्तियां पसंद की जाती हैं. इन्हें लेने के लिए महाराष्ट्र, गुजरात और मध्यप्रदेश सहित देश के कई हिस्सों से लोग आते हैं. इन मूर्तियों को मंदिरों में स्थापित करने के लिए बड़ी श्रद्धा से पूजा-अर्चना कर लोग ले जाते हैं.

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