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वेश्यावृत्ति भी एक प्रोफेशन, दुर्व्यवहार नहीं करे पुलिस : सुप्रीम कोर्ट - पुलिस दुर्व्यवहार वेश्यावृत्ति

सुप्रीम कोर्ट ने वेश्यावृत्ति को लेकर गुरुवार को एक बड़ा फैसला सुनाया. कोर्ट ने कहा कि वेश्यावृत्ति भी एक प्रोफेशन है. इससे जुड़े लोगों का सम्मान किया जाना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि गिरफ्तारी, छापेमारी और बचाव अभियान के दौरान यौनकर्मियों की पहचान उजागर न हो, चाहे वे पीड़ित हों या आरोपी हों और ऐसी किसी भी तस्वीर का प्रसारण या प्रकाशन नहीं हो जिसके परिणामस्वरूप उनकी पहचान का खुलासा हो.

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Published : May 26, 2022, 9:53 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में पुलिस बलों को यौनकर्मियों और उनके बच्चों के साथ सम्मान के साथ व्यवहार करने और मौखिक या शारीरिक रूप से दुर्व्यवहार नहीं करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की पुलिस को आदेश दिया है कि सेक्स वर्कर्स के काम में अनावश्यक हस्तक्षेप न करें. कोर्ट ने कहा कि पुलिस को बालिग और सहमति से सेक्स वर्क करने वाली महिलाओं पर आपराधिक कार्रवाई नहीं करनी चाहिए.

न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की पीठ ने कई निर्देश जारी करते हुए कहा कि इस देश में सभी व्यक्तियों को जो संवैधानिक संरक्षण प्राप्त हैं, उसे उन अधिकारियों द्वारा ध्यान में रखा जाए जो अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम 1956 के तहत कर्तव्य निभाते हैं.

पीठ ने कहा कि यौन उत्पीड़न की पीड़ित किसी भी यौनकर्मी को कानून के अनुसार तत्काल चिकित्सा सहायता सहित यौन उत्पीड़न की पीड़िता को उपलब्ध सभी सुविधाएं मुहैया कराई जानी चाहिए.

पीठ ने कहा, ''यह देखा गया है कि यौनकर्मियों के प्रति पुलिस का रवैया अक्सर क्रूर और हिंसक होता है. ऐसा लगता है कि वे एक वर्ग हैं जिनके अधिकारों को मान्यता नहीं है. पुलिस और अन्य कानून प्रवर्तन एजेंसियों को यौनकर्मियों के अधिकारों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए, जिन्हें सभी नागरिकों को संविधान में प्रदत्त सभी बुनियादी मानवाधिकार और अन्य अधिकार प्राप्त हैं. पुलिस को सभी यौनकर्मियों के साथ सम्मान के साथ व्यवहार करना चाहिए और उनके साथ मौखिक और शारीरिक दुर्व्यवहार नहीं करना चाहिए, उनके साथ हिंसा नहीं करनी चाहिए या उन्हें किसी भी यौन गतिविधि के लिए मजबूर नहीं करना चाहिए.''

अदालत ने यह भी कहा कि भारतीय प्रेस परिषद से मीडिया के लिए उचित दिशा-निर्देश जारी करने का आग्रह किया जाना चाहिए ताकि गिरफ्तारी, छापेमारी और बचाव अभियान के दौरान यौनकर्मियों की पहचान उजागर न हो, चाहे वे पीड़ित हों या आरोपी हों और ऐसी किसी भी तस्वीर का प्रसारण या प्रकाशन नहीं हो जिसके परिणामस्वरूप उनकी पहचान का खुलासा हो.

इसने राज्य सरकारों को आश्रय गृहों का सर्वेक्षण करने का भी निर्देश दिया ताकि वयस्क महिलाओं को उनकी इच्छा के विरुद्ध हिरासत में लेने के मामलों की समीक्षा की जा सके और समयबद्ध तरीके से रिहाई के लिए कार्रवाई की जा सके. शीर्ष अदालत ने यौनकर्मियों के पुनर्वास के लिए गठित एक समिति की सिफारिशों पर यह निर्देश दिया.

शीर्ष अदालत उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें कोविड-19 महामारी के कारण यौनकर्मियों द्वारा सामना की जाने वाली समस्याओं को उठाया गया था.

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में पुलिस बलों को यौनकर्मियों और उनके बच्चों के साथ सम्मान के साथ व्यवहार करने और मौखिक या शारीरिक रूप से दुर्व्यवहार नहीं करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की पुलिस को आदेश दिया है कि सेक्स वर्कर्स के काम में अनावश्यक हस्तक्षेप न करें. कोर्ट ने कहा कि पुलिस को बालिग और सहमति से सेक्स वर्क करने वाली महिलाओं पर आपराधिक कार्रवाई नहीं करनी चाहिए.

न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की पीठ ने कई निर्देश जारी करते हुए कहा कि इस देश में सभी व्यक्तियों को जो संवैधानिक संरक्षण प्राप्त हैं, उसे उन अधिकारियों द्वारा ध्यान में रखा जाए जो अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम 1956 के तहत कर्तव्य निभाते हैं.

पीठ ने कहा कि यौन उत्पीड़न की पीड़ित किसी भी यौनकर्मी को कानून के अनुसार तत्काल चिकित्सा सहायता सहित यौन उत्पीड़न की पीड़िता को उपलब्ध सभी सुविधाएं मुहैया कराई जानी चाहिए.

पीठ ने कहा, ''यह देखा गया है कि यौनकर्मियों के प्रति पुलिस का रवैया अक्सर क्रूर और हिंसक होता है. ऐसा लगता है कि वे एक वर्ग हैं जिनके अधिकारों को मान्यता नहीं है. पुलिस और अन्य कानून प्रवर्तन एजेंसियों को यौनकर्मियों के अधिकारों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए, जिन्हें सभी नागरिकों को संविधान में प्रदत्त सभी बुनियादी मानवाधिकार और अन्य अधिकार प्राप्त हैं. पुलिस को सभी यौनकर्मियों के साथ सम्मान के साथ व्यवहार करना चाहिए और उनके साथ मौखिक और शारीरिक दुर्व्यवहार नहीं करना चाहिए, उनके साथ हिंसा नहीं करनी चाहिए या उन्हें किसी भी यौन गतिविधि के लिए मजबूर नहीं करना चाहिए.''

अदालत ने यह भी कहा कि भारतीय प्रेस परिषद से मीडिया के लिए उचित दिशा-निर्देश जारी करने का आग्रह किया जाना चाहिए ताकि गिरफ्तारी, छापेमारी और बचाव अभियान के दौरान यौनकर्मियों की पहचान उजागर न हो, चाहे वे पीड़ित हों या आरोपी हों और ऐसी किसी भी तस्वीर का प्रसारण या प्रकाशन नहीं हो जिसके परिणामस्वरूप उनकी पहचान का खुलासा हो.

इसने राज्य सरकारों को आश्रय गृहों का सर्वेक्षण करने का भी निर्देश दिया ताकि वयस्क महिलाओं को उनकी इच्छा के विरुद्ध हिरासत में लेने के मामलों की समीक्षा की जा सके और समयबद्ध तरीके से रिहाई के लिए कार्रवाई की जा सके. शीर्ष अदालत ने यौनकर्मियों के पुनर्वास के लिए गठित एक समिति की सिफारिशों पर यह निर्देश दिया.

शीर्ष अदालत उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें कोविड-19 महामारी के कारण यौनकर्मियों द्वारा सामना की जाने वाली समस्याओं को उठाया गया था.

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