पोर्ट मोरेस्बी: मोदी ने एक शिखर सम्मेलन में 14 प्रशांत द्वीपीय देशों के शीर्ष नेताओं को बताया कि मुश्किल वक्त में दोस्त ही दोस्त के काम आता है। उन्होंने आश्वस्त किया कि भारत “बिना किसी हिचकिचाहट” क्षेत्र के साथ अपनी क्षमताएं साझा करने के लिये तैयार है और “हम हर प्रकार से आपके साथ हैं.’’
हिंद-प्रशांत द्वीपीय सहयोग मंच (एफआईपीआईसी) शिखर सम्मेलन में मोदी ने इस क्षेत्र के लिए स्वास्थ्य सेवा, साइबर स्पेस, स्वच्छ ऊर्जा, जल और छोटे और मध्यम उद्यमों के क्षेत्रों में 12-बिंदु विकास कार्यक्रम का भी अनावरण किया.
कोविड-19 महामारी और अन्य वैश्विक विकास के प्रतिकूल प्रभाव का उल्लेख करते हुए मोदी ने कहा कि भारत चुनौतीपूर्ण समय में प्रशांत द्वीपीय देशों के साथ खड़ा रहा और उन्हें बताया कि वे नई दिल्ली पर भरोसा कर सकते हैं क्योंकि यह उनकी प्राथमिकताओं का सम्मान करता है और सहयोग के लिए इसका दृष्टिकोण मानवीय मूल्यों पर आधारित है.
उन्होंने सम्मेलन में किसी देश का नाम लिये बगैर कहा, “जिन्हें हम अपना विश्वासपात्र समझते थे, उनके बारे में ऐसा पाया गया कि वे जरूरत के समय हमारे साथ नहीं खड़े थे. इस मुश्किल दौर में पुरानी कहावत सही साबित हुई: सच्चा दोस्त वही है, जो कठिन घड़ी में काम आए.”
मोदी ने कहा, “मुझे खुशी है कि भारत इस मुश्किल समय में भी अपने प्रशांत द्वीपीय देशों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा रहा. फिर चाहे बात भारत में निर्मित टीकों की हो या आवश्यक दवाइयों की हो या गेहूं या चीनी की बात हो, भारत ने अपनी क्षमताओं के अनुसार अपने साथी देशों की मदद करना जारी रखा.”
प्रधानमंत्री तीन देशों की यात्रा के अपने दूसरे चरण में रविवार को यहां पहुंचे. उन्होंने प्रशांत द्वीपीय देशों के लिए स्वतंत्र एवं मुक्त हिंद प्रशांत की महत्ता को भी रेखांकित किया और कहा कि भारत सभी देशों की संप्रभुता एवं अखंडता का सम्मान करता है.
उन्होंने कहा, “भारत आपकी प्राथमिकताओं का सम्मान करता है. आपके विकास में साझेदार बनना हमारे लिए गर्व की बात है-- भले वह मानवीय सहायता हो या आपका विकास हो, आप भारत को एक विश्वसनीय साझेदार के तौर पर देख सकते हैं। हमारा दृष्टिकोण मानवीय मूल्यों पर आधारित है.”
पापुआ न्यू गिनी की राजधानी में आयोजित इस शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री ने ऐसे समय में ये टिप्पणियां की हैं, जब चीन क्षेत्र में आक्रामक रवैया अपना रहा है और प्रशांत द्वीपीय देशों पर अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिशें कर रहा है.
मोदी ने द्वीपीय राष्ट्रों के लिए भारत की प्राथमिकता के बारे में कहा, ‘‘मेरे लिए आप छोटे द्वीपीय राष्ट्र नहीं है, बल्कि बड़े महासागरीय देश है. यह महासागर भारत को आप सब से जोड़ता है. भारतीय विचारधारा में पूरे विश्व को एक परिवार के रूप में देखा जाता है.’’
उन्होंने फिजी में एक सुपर-स्पेशलियटी कार्डियोलॉजी अस्पताल की स्थापना, सभी 14 प्रशांत द्वीपीय देशों में डायलिसिस इकाइयों की स्थापना के साथ-साथ उनके लिए समुद्री एम्बुलेंस सहित स्वास्थ्य सेवा और साइबर स्पेस में भारत द्वारा नयी विकास पहलों की श्रृंखला की भी घोषणा की.
मोदी ने द्वीपीय राष्ट्रों में जन औषधि केंद्र खोलने की घोषणा की ताकि किफायती दाम पर दवाएं उपलब्ध हो सकें. इसके अलावा उन्होंने प्रत्येक प्रशांत द्वीपीय देश में छोटे और मध्यम उपक्रम क्षेत्र के विकास के लिए एक परियोजना की भी घोषणा की.
प्रधानमंत्री मोदी ने पानी की कमी की समस्या को हल करने के लिए प्रत्येक प्रशांत द्वीपीय देश को विलवणीकरण इकाइयां मुहैया कराने का संकल्प लिया.
उन्होंने कहा कि दुनिया ने कोविड-19 के मुश्किल दौर और कई अन्य चुनौतियों का सामना किया है और उनका अधिकतर प्रभाव ‘ग्लोबल साउथ’ के देशों ने झेला है.
उन्होंने कहा, ‘‘जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपदा, भुखमरी, गरीबी और स्वास्थ्य संबंधी विभिन्न चुनौतियां पहले से मौजूद हैं. अब नयी समस्याएं पैदा हो रही है। खाद्य, ईंधन, उर्वरक और औषधि की आपूर्ति श्रृंखला के लिए अवरोध खड़े हो रहे हैं.’’
प्रधानमंत्री ने स्वतंत्र, मुक्त एवं समावेशी हिंद-प्रशांत के लिए भी भारत के मजबूत समर्थन की पुन: पुष्टि की.
मोदी ने कहा, ‘‘आपकी तरह हम भी बहुपक्षवाद में भरोसा करते हैं, स्वतंत्र, मुक्त एवं समावेशी हिंद-प्रशांत का समर्थन करते हैं और सभी देशों की संप्रभुता एवं अखंडता का सम्मान करते हैं.’’
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ‘ग्लोबल साउथ’ की आवाज संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भी मजबूती से सुनी जानी चाहिए. प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘इसके लिए अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में सुधार हमारी साझा प्राथमिकता होनी चाहिए.’’
उन्होंने कहा, ‘‘मैंने क्वाड (चतुष्पक्षीय सुरक्षा संवाद) के तहत हिरोशिमा में ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान के साथ वार्ता की. इस वार्ता में हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर विशेष ध्यान दिया गया. हमने क्वाड की बैठक के दौरान पलाऊ में ‘रेडियो एक्सेस नेटवर्क’ (आरएएन) स्थापित करने का फैसला किया.’’
मोदी ने कहा, ‘‘बहुपक्षवाद के प्रारूप में हम प्रशांत द्वीपीय देशों के साथ साझेदारी को विस्तार देंगे.’’ उन्होंने कहा कि भारत प्रशांत द्वीपीय देशों के साथ सहयोग बढ़ाने को तैयार है.
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ‘‘हम बिना किसी हिचकिचाहट के आपके साथ अपनी क्षमताएं एवं अनुभव साझा करने के लिए तैयार हैं, फिर भले ही वह डिजिटल प्रौद्योगिकी हो या अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य सुरक्षा हो या खाद्य सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन हो या पर्यावरणीय सुरक्षा। हम हर तरह से आपके साथ हैं.’’
उन्होंने जी-20 की अपनी अध्यक्षता के तहत भारत की प्राथमिकताओं को भी रेखांकित किया. मोदी ने कहा, ‘‘इस वर्ष जी-20 की हमारी अध्यक्षता का विषय ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ भी इसी विचारधारा पर आधारित है.’’
मोदी ने कहा, ‘‘हमने इस साल जनवरी में ‘वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ समिट’ का आयोजन किया था, जिसमें आपके प्रतिनिधियों ने भाग लिया था और अपने विचार रखे थे.’’ उन्होंने कहा, ‘‘मैं इसके लिए आपको बधाई देता हूं. भारत जी-20 के माध्यम से दुनिया को ‘ग्लोबल साउथ’ की चिंताओं, अपेक्षाओं और आकांक्षाओं से अवगत कराना अपना कर्तव्य समझता है.’’
प्रधानमंत्री मोदी ने पापुआ न्यू गिनी के अपने समकक्ष जेम्स मारापे के साथ इस शिखर सम्मेलन की सह अध्यक्षता की.
मोदी ने ट्वीट किया, “पापुआ न्यू गिनी की मेरी यात्रा ऐतिहासिक रही है. मैं इस अद्भुत राष्ट्र के लोगों से मिले स्नेह को बहुत संजो कर रखूंगा. मुझे हिंद-प्रशांत द्वीप सहयोग मंच (एफआईपीआईसी) के सम्मानित नेताओं के साथ बातचीत करने और उनके देशों के साथ संबंधों को गहरा करने के तरीकों पर चर्चा करने का भी अवसर मिला.”
भारत का 14 प्रशांत द्वीप देशों (पीआईसी) के साथ जुड़ाव उसकी ‘एक्ट ईस्ट’ नीति का हिस्सा है.
प्रधानमंत्री मोदी ने फिजी की अपनी यात्रा के दौरान 19 नवंबर, 2014 में सुवा में पहले एफआईपीआईसी शिखर सम्मेलन की मेजबानी की थी. एफआईपीआईसी का दूसरा शिखर सम्मेलन 21 अगस्त, 2015 को जयपुर में हुआ था, जिसमें सभी 14 पीआईसी ने भाग लिया था.
(पीटीआई-भाषा)
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