लाहौर : पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में स्थित इस गुरुद्वारे को दो दशक पहले एक पुस्तकालय में तब्दील कर दिया गया था. जिसका सिख समूहों ने पुरजोर विरोध किया था. फिलहाल यह गुरुद्वारा खैबर पख्तूनख्वा (केपीके) प्रांत की सरकार के नियंत्रण में है. इवैक्यूई ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड (ईटीपीबी) के अध्यक्ष आमेर अहमद ने कहा कि पूरी तरह से विचार-विमर्श के बाद, केपीके सरकार ने आखिरकार बोर्ड के रुख को स्वीकार कर लिया और मनसेहरा जिले में स्थित गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा का कब्जा ईटीपीबी को देने पर सहमति जता दी.
ईपीटीबी एक वैधानिक बोर्ड है जो उन हिंदुओं और सिखों की धार्मिक संपत्तियों व तीर्थस्थलों का प्रबंधन करता है जो विभाजन के बाद भारत चले गए थे. अहमद ने कहा कि अपनी मूल वास्तुकला और आकार में बरकरार ऐतिहासिक व शानदार गुरुद्वारे को जरूरी मरम्मत के बाद कुछ महीनों में सिखों के लिए खोल दिया जाएगा. अध्यक्ष ने कहा कि ईटीपीबी पर इसका नियंत्रण एक मील का पत्थर साबित होगा क्योंकि यह देश के उत्तरी क्षेत्रों में (पूजा के लिए खुलने वाला) पहला गुरुद्वारा होगा, जिसके परिणामस्वरूप धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा.
प्रांतीय सरकार ने 20 साल पहले स्थानीय सिख समुदाय के विरोध के बावजूद गुरुद्वारे को 'नगर पुस्तकालय भवन' में बदल दिया था. विभाजन के बाद से गुरुद्वारा पूजा के लिए बंद कर दिया गया था. हजरो के सिख संत सरदार गोपाल सिंह साथी ने 1905 में गुरुद्वारे की आधारशिला रखी थी.
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साल 1976 में मनसेहरा को एक जिले के रूप में आधिकारिक रूप से सीमांकित करने के बाद, मंदिर को पुलिस विभाग को सौंप दिया गया. जिसने अपने परिसर में एक पुलिस स्टेशन की स्थापना की. 2000 में गुरुद्वारे में एक सार्वजनिक पुस्तकालय स्थापित किया गया था.
(पीटीआई-भाषा)