लखनऊ : उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं. राजनीतिक दल चुनावी गुणा गणित में लग गए हैं. चुनावी माहौल में किसी बड़ी शख्सियत या बड़े नेता के आगमन के सियासी मायने भी निकाले जाते हैं. मौजूदा समय में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद उत्तर प्रदेश प्रवास पर हैं. इस बीच वह अपने गृह जनपद से लेकर लखनऊ तक की यात्रा करेंगे. हालांकि, लखनऊ की उनकी यात्रा राजभवन प्रवास तक ही सीमित है. वहीं इसके राजनीतिक कयास भी लगाए जाने लगे हैं. गृह राज्य होने की वजह से उनकी यात्रा का सियासी असर भी होता दिख रहा है. सियासी गलियारों के जानकार तो यहां तक कहने लगे हैं कि भाजपा राष्ट्रपति की इस यात्रा का राजनीतिक लाभ ले सकती है.
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कानपुर में अपने एक उद्बोधन के दौरान कहा था कि मैं राजनीतिक बातें नहीं करता. संवैधानिक पद मिलने के बाद मेरा किसी भी राजनीतिक दल से लगाव नहीं रहा. मेरे लिए कांग्रेस, जनता दल यूनाइटेड, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी आदि दल बराबर हैं. कभी-कभी संतोष होता है कि शायद मेरे से अधिक, जो दूसरे दल के लोग हैं, वो मेरे लिए ज्यादा प्यार और आत्मीयता रखते हैं. एक सच यह भी है कि उनके राष्ट्रपति बनने से पहले के इतिहास को भुलाया नहीं जा सकता. तमाम राजनीतिक कार्यकर्ता उनके साथ रहे हैं. कानपुर से लेकर लखनऊ तक उनके साथ काम किए हैं. इसलिए उनके कानपुर प्रवास के दौरान हर वर्ग के लोगों के बीच राष्ट्रपति से जुड़े तमाम संस्मरणों की चर्चा हो रही है.
'दलित समाज पर पड़ेगा खास असर'
राजनीतिक विश्लेषक सियाराम पांडेय कहते हैं कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की यात्रा यूं ही नहीं है. ऐसा नहीं है कि वह अपने मित्र से मिलने के लिए ही केवल आए हैं. इसके तमाम मायने हैं. वह कहते हैं कि भाजपा हमेशा चौंकाने वाला कदम उठाती रही है. अटल बिहारी वाजपेई की सरकार के समय में मिसाइल मैन डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम को राष्ट्रपति के लिए आगे करके बड़ी चाल चली थी. उस वक्त देश में लोग भाजपा को मुस्लिम विरोधी कहते थे. ऐसे में भाजपा का वह कदम लोगों को चौंकाने वाला ही रहा. उसके बाद 2014 में एनडीए की फिर से केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार आई. इस बार भाजपा ने उस वर्ग के चेहरे को राष्ट्रपति के लिए चुना जिसे भाजपा से दूर बताया जाता है. खासकर उत्तर प्रदेश में यह बात और भी महत्त्वपूर्ण हो जाती है. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भले ही संवैधानिक पद पर हों, लेकिन उनका यह दौरा सूबे की सियासत पर जरूर असर डालेगा.
अंबेडकर महासभा के अध्यक्ष, दलित चिंतक व योगी सरकार में अनुसूचित जाति वित्त एवं विकास निगम के चेयरमैन डॉ. लाल जी निर्मल कहते हैं कि देश में अगर किसी ने दलितों के लिए काम किया है तो वह भाजपा है. बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर से जुड़े स्थलों को मान्यता दिलाने और उन्हें विकसित करने का काम नरेंद्र मोदी सरकार ने किया है. उत्तर प्रदेश की अगर बात करें तो भाजपा ने पूर्व आईपीएस बृजलाल को राज्यसभा भेजा. विधान परिषद में दलित चेहरे के रूप में विद्यासागर सोनकर भेजे गए. वहीं सपा ने किसी भी दलित को राज्यसभा नहीं भेजा है. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी दलित समाज से ही आते हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मुसहर जाति को नया जीवन दिया. मुसहरों को तो संवैधानिक अधिकार तक नहीं था. इसलिए हम यह कह सकते हैं कि अगर कोई दलितों का कोई सच्चा हितैषी है तो वह भाजपा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दलितों के सच्चे हितैषी नेता हैं. दलितों ने पिछले चुनावों में भाजपा का साथ दिया था. आने वाले चुनाव में भी यह समाज भाजपा के साथ ही रहेगा.
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