नई दिल्ली : प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट कर कहा कि 86वें जन्मदिन पर मैंने दलाई लामा से फोन पर बात की और उन्हें शुभकामनाएं दीं. हम उनके लंबे व स्वस्थ जीवन की कामना करते हैं. एक तिब्बती कार्यकर्ता लोबसंग वांग्याल इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि पीएम मोदी का संदेश भारत द्वारा अपनी ताकत दिखाने का संकेत है और यह चीन के लिए बहुत कड़ा संदेश है.
तिब्बती संसद की सदस्य डोल्मा त्सेरिंग ने कहा कि परम पावन (दलाई लामा) को जन्मदिन की बधाई देने का पीएम मोदी का यह एक सकारात्मक कदम है. पीएम मोदी यह संदेश देना चाहते हैं कि भारत अब तिब्बत के बारे में बात करने में ज्यादा सतर्क नहीं रहने वाला है. यह चीन को एक बहुत कड़ा संदेश भेजता है.
इससे पहले तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने मंगलवार को अपने 86वें जन्मदिन पर कहा कि उन्होंने भारत की स्वतंत्रता और धार्मिक सद्भाव का पूरा लाभ लिया और वह प्राचीन भारतीय ज्ञान को पुनर्जीवित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. उन्होंने कहा कि मैं धर्मनिरपेक्ष मूल्यों जो धर्म पर आश्रित नहीं है, ऐसी ईमानदारी, करुणा और अहिंसा के भारतीय विचार का वाकई में सराहना करता हूं.
उन्होंने कहा कि अब यही मेरा जन्मदिन है. मैं अपने उन सभी मित्रों का दिल से धन्यवाद करना चाहता हूं जिन्होंने मेरे प्रति वाकई में प्यार, सम्मान और विश्वास दिखाया. मैं आपको भरोसा दे सकता हूं कि मैं मानवता की सेवा और जलवायु परिवर्तन की रक्षा के लिए काम करने को लेकर प्रतिबद्ध हूं. उन्होंने कहा कि मैं सिर्फ एक इंसान हूं. बहुत से लोग मेरे प्रति वास्तव में अपना प्रेम दर्शाते हैं और बहुत से लोग वास्तव में मेरी मुस्कान से प्यार करते हैं. मेरी बढ़ती उम्र के बावजूद मेरा मैं अब भी सुंदर महसूस करता हूं.
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बहुत से लोग वास्तव में मेरे प्रति सच्ची मित्रता दिखाते हैं. उन्होंने कहा कि मैं अपनी मृत्यु तक अहिंसा और करुणा के लिए प्रतिबद्ध रहूंगा. यह मेरी ओर से मेरे मित्रों को भेंट है. मेरे सभी भाइयों और बहनों को इन दो बातों को ध्यान में रखना चाहिए- अहिंसा और करुणा. मेरे जन्मदिन पर, यही मेरा उपहार है.
दलाई लामा का जन्म छह जुलाई 1935 को उत्तरी तिब्बत में आमदो के एक छोटे से गांव तकछेर में एक कृषक परिवार में हुआ था. उनके बचपन का नाम ल्हामो दोनडुब था. उन्हें 1989 में शांति का नोबेल सम्मान मिला था.
इससे पहले बिहार के गया और हिमाचल में दलाई लामा का जन्मदिन मनाया गया. भगवान बुद्ध की पावन ज्ञान भूमि बोधगया में तिब्बतियों के शीर्ष धर्मगुरु परम पावन दलाई लामा (Dalai Lama ) का 86 वां जन्मदिन बौद्ध श्रद्धालुओं द्वारा मनाया गया. बोधगया के तिब्बत मोनेस्ट्री में बौद्ध धर्म गुरुओं ने सर्वप्रथम दलाई लामा की लंबी उम्र की कामना को लेकर बौद्ध परंपरा के अनुसार मंत्रोच्चारण किया. इसके बाद केक काटकर एक-दूसरे को खिलाया गया. इस मौके पर विभिन्न देशों के बौद्ध धर्मगुरू व लामा शामिल हुए.
कार्यक्रम में शामिल तिब्बत मोनेस्ट्री के प्रभारी आंचु लामा ने कहा कि आज हमलोग अपने धर्मगुरु दलाई लामा का 86 वां जन्मदिन मना रहे हैं. आज हमारे लिए बहुत ही खुशी का मौका है. कार्यक्रम में बोधगया के विभिन्न मोनेस्ट्री के बौद्ध धर्मगुरुओं और लामाओं को बुलाया गया है. हमलोग दलाई लामा की लंबी उम्र की कामना कर रहे हैं.
दलाई लामा का मूल नाम
हिमाचल के धर्मशाला में भी दलाई लामा का जन्मदिन मनाया गया. तिब्बत के ल्हासा में आधिकारिक महल पोटाला से दूर भारत में यह उनकी 62वीं जन्मतिथि है. दलाई लामा का मूल नाम तेनजिन ग्यात्सो है. तेनजिन ग्यात्सो को जिस समय दलाई लामा के तौर पर मान्यता मिली थी, उस वक्त वे मात्र दो वर्ष के थे. दलाई लामा शब्द मंगोल भाषा से लिया गया है. इसका अर्थ है ज्ञान का सागर.
15 साल की उम्र में बातचीत के लिए गए थे बीजिंग
दलाई लामा केवल 15 वर्ष के थे तो उन्होंने अपनी सरकार के वरिष्ठ होने के नाते राजनीतिक जिम्मेदारियों का निर्वाहन शुरू कर दिया था. 1954 में चीनी नेताओं से बातचीत करने चीन की राजधानी बीजिंग गए. चीन तिब्बत के बारे में असहयोगपूर्ण रवैया अपनाए हुए था. वर्ष 1956 में दलाई लामा महात्मा बुद्ध की 2500वीं वर्षगांठ पर भारत आए. इस दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से तिब्बत की दुर्दशा पर लंबी बातचीत की थी. तिब्बत में चीन का दमन जारी था. तिब्बती सेना में 8 हजार सैनिक थे. ये चीनी सेना के सामने कुछ भी नहीं थे.
1959 में छोड़ा था तिब्बत
तिब्बत में चीन सरकार के बढ़ते आतंक से उत्पन्न खतरे को भांपकर दलाई लामा 17 मार्च 1959 की रात को ल्हासा में अपने पोटला महल से निकले और 31 मार्च को भारत के तवांग इलाके में पहुंचे. इसके बाद दलाई लामा धर्मशाला आ गए. अब दलाई लामा भारत को अपना दूसरा घर मानते हैं. कोरोना के चलते दलाई लामा मार्च 2020 से मैक्लोडगंज में अपने महल में अकेले रह रहे हैं.
(पीटीआई-भाषा)