नई दिल्ली : तमिलनाडु के मंत्री वी सेंथिल बालाजी की मुश्किलें कम नहीं हो रही हैं. गिरफ्तारी के बावजूद मंत्री पद पर बने रहने के खिलाफ याचिका पर विचार करने से मद्रास उच्च न्यायालय के इनकार करने के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है.
शीर्ष अदालत के समक्ष एक्टिविस्ट एमएल रवि ने याचिका दायर की है. राज्यपाल ने 29 जून, 2023 को एक पत्र जारी किया था, जिसमें भारत के संविधान के अनुच्छेद 154, 163 और 164 के तहत प्रदत्त शक्तियों के तहत मंत्री बालाजी को तत्काल प्रभाव से बर्खास्त कर दिया गया और उसी दिन देर रात गृह मंत्रालय ने एक और पत्र जारी कर पहले से जारी आदेश को स्थगित रखने का हवाला देते हुए महाधिवक्ता से राय लेने की सलाह दी.
याचिका में कहा गया है कि 'यह मनमाना, अधिकारातीत और संविधान के विरुद्ध है, जहां वह अपना आदेश वापस नहीं ले सकते क्योंकि वह कार्यात्मक है.' याचिका में कहा गया कि मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद का संवैधानिक कार्य राज्यपाल को उनके कार्यों के अभ्यास में सहायता और सलाह देना है, हालांकि, यदि सार्वजनिक कार्यालय में संवैधानिक उल्लंघन या विचलित व्यवहार होता है, राज्यपाल अपने विवेक से कार्य कर सकते हैं.
याचिकाकर्ता ने अदालत से यह निर्देश देने का अनुरोध किया कि बालाजी के मामले में नैतिक अधमता के कारण आनंद को रोकने के राज्यपाल के 29 जून, 2023 के पत्र को वापस लेने को मामले के निपटारे तक स्थगित रखा जाना चाहिए.
हाईकोर्ट ने किया था इनकार : 5 सितंबर को उच्च न्यायालय ने प्रवर्तन निदेशालय द्वारा 14 जून को गिरफ्तारी के बाद भी तमिलनाडु कैबिनेट में बिना पोर्टफोलियो के मंत्री के रूप में बालाजी की निरंतरता पर सवाल उठाने वाली याचिकाओं पर कोई भी निर्देश जारी करने से इनकार कर दिया था.
याचिका में तर्क दिया गया कि न तो संविधान और न ही जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 किसी व्यक्ति को हिरासत में होने या आरोप तय होने के बाद मुकदमे से गुजरने के बाद राज्य विधान सभा का सदस्य बनने के लिए अयोग्य ठहराता है. याचिका में कहा गया, 'अगर मंत्री हिरासत में हैं तो ऐसी स्थिति में उन्होंने खुद को कोई भी काम करने से अक्षम कर लिया है.'
इसमें कहा गया है कि मंत्री सरकारी खजाने की कीमत पर सुविधाओं और भत्तों का आनंद लेते हैं. चूंकि हिरासत में लिया गया व्यक्ति कोई काम नहीं कर सकता है इसलिए न ही उन्हें फाइलें भेजी जा सकती हैं. ऐसे में वह एक मंत्री के रूप में कार्य करने में अक्षम हैं. ऐसे में सरकारी खजाने पर बोझ पड़ता है. इस प्रकार वह व्यक्ति मंत्री के रूप में नहीं रह सकता है.
याचिका में कहा गया कि उच्च न्यायालय ने यह ध्यान देने में गलती की कि राज्यपाल द्वारा संविधान के अनुच्छेद 154, 163 और 164 के तहत तत्काल प्रभाव से मंत्री को बर्खास्त करने के लिए 29 जून, 2023 को जारी पत्र और कुछ घंटों बाद बर्खास्तगी आदेश को बरकरार रखने के लिए एक और पत्र जारी किया गया.
याचिका में दावा किया गया कि उच्च न्यायालय का यह कहना सही नहीं है कि हिरासत में बंद मंत्री को हटाने के लिए कोई कानून नहीं है, जहां मिसाल के तौर पर अदालत को व्याख्या करनी होती है और कानून बनने तक शून्य को भरना होता है.