जयपुर: राजस्थान में कांग्रेस की कलह किसी से छिपी नहीं है. गहलोत बनाम पायलट की जंग कई बार कांग्रेस आलाकमान के दर पर भी पहुंच चुकी है लेकिन अब तक इसका कोई हल नहीं निकल पाया है. इस बीच एक और कांग्रेस के बड़े नेता सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर 'कांग्रेस आ रही है' नाम से ट्रेंड करवा रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर सचिन पायलट समर्थकों ने भी अपनी ताकत दिखाते हुए एक नया ट्रेंड शुरू किया है और वह है 'पायलट आ रहा है'.
ट्विटर पर पहले नंबर पर ट्रेंड कर रहा 'पायलट आ रहा है'
पायलट समर्थकों को ट्रेंड में आम लोगों का इतना जबरदस्त रिस्पांस मिला है कि 'पायलट आ रहा है' ट्विटर की ट्रेंडिग लिस्ट में पहले नंबर पर है. मंगलवार 22 जून की सुबह सचिन पायलट के समर्थक ताबड़तोड़ ट्वीट और रीट्वीट कर इसे ट्रेंड में बनाए हुए हैं. हालांकि, इसमें पायलट समर्थक अलग-अलग बातें लिख रहे हैं, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण बात पायलट समर्थक यह लिख रहे हैं कि पायलट मुख्यमंत्री के ही नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री पद के भी योग्य उम्मीदवार हैं.
कुछ समर्थकों ने सचिन पायलट को इस ट्रेंड के साथ कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने की मांग की है तो कुछ लोगों ने उन्हें राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाने की बात की है. फिलहाल, यह ट्रेंड ट्विटर पर नंबर एक पर चल रहा है, #पायलट_आ_रहा_है को लेकर दोपहर एक बजे तक 66 हजार से अधिक ट्वीट हो चुके हैं.
" #पायलटआरहाहै" के क्या मायने हैं ?
सचिन पायलट कैंप के विधायक और चाकसू एमएलए वेद प्रकाश सोलंकी के सरकारी निवास के बाहर रखे बैनर ने मंगलवार को सियासी हलकों में चर्चाओं का बाजार गर्म कर दिया था. इस बैनर में राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और सोनिया गांधी को तरजीह दी गई थी. जहां सचिन पायलट की जनसमूह के बीच की तस्वीर के साथ लिखा गया नारा सुर्खियां बंटोरने लगा. इस बैनर पर लिखा गया था कि 'राजस्थान ने देखा है, हम सबने देखा है'. माना जा रहा है कि ये बैनर जी-19 की रणनीति के खिलाफ टीम पायलट का जवाब था. यही वजह है कि कांग्रेस की अंदरूनी सियासी तकरार फिर से सड़कों पर जाहिर हो रही है. इस बीच चर्चा है कि सचिन पायलट 22 जून की शाम या फिर 23 जून गुरुवार की सुबह जयपुर पहुंच सकते हैं.
जानिये क्या है G-19? जो पहली बैठक से पहले ही अलग हो गया
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बीते दो कार्यकाल से अपने संख्या बल को मजबूत करने के लिये प्रदेश में निर्दलीय व अन्य विधायकों को साथ लेकर सरकार चला रहे हैं. इस बार भी बसपा के सिंबल से जीतकर आये 6 विधायकों ने पाला बदलकर अशोक गहलोत सरकार को समर्थन देते हुए कांग्रेस ज्वॉइन कर ली थी. जब 2020 में सरकार के खिलाफ जाकर सचिन पायलट ने अपने साथी विधायकों के साथ अज्ञातवास बिताया था. तब बसपा के 6 विधायकों के साथ निर्दलीय 13 विधायकों ने अशोक गहलोत सरकार की परेड में हिस्सा लेकर संकट के दौर में बहुमत साबित करने में मदद की थी.
ऐसे में संकटमोचक बने इन विधायकों को ग्रुप-19 यानि जी-19 का नाम दिया गया है. इस समूह में बसपा छोड़कर आये विधायकों ने बीते दिनों पायलट समर्थित विधायकों के खिलाफ ना सिर्फ तीखी बयानबाजी की थी, बल्कि उन्हें हर तरह से आड़े हाथ भी लिया था. वहीं निर्दलीय विधायकों में से सिरोही एमएलए संयम लोढा भी सोशल मीडिया पर लगातार पायलट कैंप को निशाना बनाते रहे हैं. ऐसे में सचिन पायलट टीम की सियासी भागीदारी की मांग को देखते हुए खुद के लिये सरकार में हिस्सा मांगने की जद्दोजहद के रूप में गैर कांग्रेसी विधायकों के समूह को ये पहचान मिली थी.
क्यों जी-19 में शामिल नहीं हो रहे हैं 6 विधायक
बहुजन समाज पार्टी को छोड़कर कांग्रेस में शामिल होने वाले छह विधायकों ने पहले तो जी-19 में खुद को शामिल होना बताया था, परंतु बैठक वाले दिन सुबह उन्होंने इस बात से इनकार कर दिया कि वे अब इस चर्चा में शामिल नहीं हो रहे हैं. सियासी गलियारों में चर्चा है कि बीते दिनों दिल्ली में पार्टी के प्रदेश प्रभारी अजय माकन ने कहा था कि सत्ता में भागीदारी सिर्फ उन विधायकों को मिलेगी, जो पार्टी के अनुशासन में रहेंगे. ऐसे में निर्दलीय विधायकों के साथ बैठकों में जाने का मसला भी पायलट कैंप अनुशासनहीनता से जोड़ सकता है. लिहाजा दलबदल करने वाले यह 6 विधायक आखिरी मौके पर खुद को इस सियासी संग्राम की बाजी से दूर करते हुए दिखाई पड़े.
ट्विटर से पहले समर्थकों का पोस्टर
इससे पहले समर्थकों ने सचिन पायलट के पोस्टर बैनर लगाए. जिनमें कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए तत्कालीन भाजपा सरकार के खिलाफ किए गए संघर्ष और आंदोलनों की तस्वीरें दिखाई गईं हैं. इन पोस्टरों पर राजस्थान कांग्रेस के किसी नेता की तस्वीर नहीं लगा कर सचिन पायलट के साथ प्रियंका गांधी, राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की तस्वीर लगाई गई है. इन पर लिखा गया है 'राजस्थान ने देखा है हम सब ने देखा है' और नीचे लिखा गया है- टीम सचिन पायलट. अभी यह बैनर पायलट कैम्प के विधायक वेद सोलंकी के निवास के बाहर रखे हैं, जो जल्द ही शहर के अन्य इलाकों में लगा दिए जाएंगे.
पायलट बनाम गहलोत की जंग
वैसे तो कहानी पुरानी है लेकिन जिस मोड़ पर राजस्थान कांग्रेस पहुंच गई है उसकी शुरुआत पिछले विधानसभा चुनाव के बाद हुई. जब कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई, चुनाव जीतने के बाद मुख्यमंत्री कौन के सवाल के जवाब में गहलोत और सचिन पायलट का नाम आगे आया लेकिन बाजी फिर से गहलोत के हाथ लगी. गहलोत राजस्थान के 'पायलट' यानी सीएम बन गए और सचिन 'को-पायलट' यानि उप मुख्यमंत्री बना दिए गए.
लेकिन बीते साल सचिन पायलट ने बगावत का झंडा बुलंद कर लिया. एक बार लग रहा था कि बीजेपी राजस्थान में भी मध्य प्रदेश दोहरा लेगी. पायलट अपने विधायकों के साथ होटल के कमरों में बंद हो गए और कांग्रेस की सांसे फूलती रही. लेकिन ऐन वक्त पर आलाकमान ने पायलट को मना लिया, पर तब तक गहलोत खेल कर चुके थे. पायलट की उपमुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष दोनों कुर्सियां गई, साथ ही उनके विधायकों की भी कैबिनेट से छुट्टी हो गई.
अब पायलट चाहते हैं कि उनके विधायकों को कैबिनेट से लेकर तमाम नियुक्तियों में जगह दी जाए, बगावत के बवंडर के बाद कांग्रेस आलाकमान की तरफ से 3 सदस्यों की कमेटी भी बनाई गई. ताकि गहलोत और पायलट का झगड़ा सुलझाया जा सके लेकिन आज तक पायलट के हाथ कुछ नहीं लगा है. ऐसे में एक बार फिर पायलट खेमे में हलचल तेज हो गई है, यहां भी कांग्रेस आलाकमान की सुस्ती मुसीबत को बढ़ा सकती है. वो भी उस वक्त में जब ज्योतिरादित्य सिंधिया के बाद जितिन प्रसाद भी कांग्रेस का हाथ छोड़कर बीजेपी में चले गए हैं.
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