श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर में बारिश में उल्लेखनीय कमी के कारण क्षेत्र में लंबे समय तक सूखा पड़ा है. इससे जंगल में आग लगने, जल स्तर में गिरावट, कृषि और बिजली उत्पादन पर संभावित प्रभावों को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं. अधिकारियों ने चेतावनी दी है कि आने वाले हफ़्तों में स्थिति और भी खराब हो सकती है, क्योंकि साल की शुरुआत से अब तक कोई उल्लेखनीय वर्षा नहीं हुई है.
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार केंद्र शासित प्रदेश में 1 जनवरी से 12 फरवरी तक 79 प्रतिशत कम बारिश हुई है, जिसमें अपेक्षित 140 मिमी के मुकाबले केवल 29.8 मिमी वर्षा हुई. जम्मू और उधमपुर में क्रमश 94 प्रतिशत और 92 फीसदी की कमी देखी गई, जबकि सबसे अधिक प्रभावित जिले कठुआ में 97 प्रतिशत कम बारिश हुई.
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क्षेत्र की ग्रीष्मकालीन राजधानी श्रीनगर में 82 फीसदी बारिश की कमी थी, जबकि शोपियां, रियासी, रामबन, कुलगाम, डोडा, बडगाम और अनंतनाग ऐसे जिलों में शामिल हैं, जहां 80से 89 प्रतिश तक की कमी रही. वहीं, बांदीपुरा, बारामुल्ला, कुपवाड़ा और पुलवामा में 70 से 79 फीसदी तक कम वर्षा हुई. यहां तक कि पुंछ, राजौरी, किश्तवाड़ और गंदेरबल जैसे बेहतर प्रदर्शन करने वाले जिलों में भी 60 से 69 पर्सेंट तक कम बारिश हुई.
जंगल में आग लगने का जोखिम
इतना ही नहीं पिछले दो महीनों में दो दर्जन से ज़्यादा जंगल में आग लगने की घटनाएं भी दर्ज की गई हैं, जो दर्शाता है कि शुष्क मौसम ने जंगल में आग लगने के जोखिम को बढ़ा दिया है. अधिकारी इस वृद्धि का कारण बारिश की कमी और तेज़ हवाओं को मानते हैं, जिसने आग लगने के लिए अतिसंवेदनशील वातावरण बना दिया है.
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'सूखे की स्थिति पैदा हो रही'
इस संबंध में मुख्य वन संरक्षक सुरेश कुमार गुप्ता ने कहा, "एक छोटी सी चिंगारी भी विनाशकारी जंगल की आग में बदल सकती है. हम हाई अलर्ट पर हैं और स्थिति को नियंत्रित करने के लिए अग्निशमन दल तैनात किए हैं." उन्होंने बताया कि ज़्यादातर आग की घटनाएं त्राल, उधमपुर, रियासी और पुंछ में हुई हैं. ये वे क्षेत्र हैं, जहां आमतौर पर जंगल में आग लगने की घटनाएं अधिक होती हैं. एक्स्पर्ट चेतावनी दे रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन ने कश्मीर के जंगलों को और भी ज्यादा कमजोर बना दिया है, जहां वर्षा के पैटर्न में बदलाव के कारण सूखे की स्थिति पैदा हो रही है.
जलस्तर में कमी
इस बीच प्रमुख नदियों और नालों के रिकॉर्ड निम्न स्तर पर चले जाने के परिणामस्वरूप जल संकट और भी बदतर होता जा रहा है. कश्मीर की जीवन रेखा मानी जाने वाली झेलम नदी का जलस्तर काफी कम हो गया है. संगम का जलस्तर भी कघट गया है, जबकि राम मुंशी बाग और आशम के जलस्तर में भी कमी आई है. सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण विभाग ने जलस्तर में गिरावट का कारण अपर्याप्त बर्फबारी को बताया, जो आमतौर पर जलाशयों को भरती है
बिजली उत्पादन में कमी
सामान्य से नीचे बहने वाली अन्य सहायक नदियों में लिद्दर, रामबियारा, फिरोजपोरा और पोहरू शामिल हैं. जम्मू और कश्मीर में पानी की कमी के कारण जलविद्युत उत्पादन में भी काफी कमी आई है. अधिकारियों की रिपोर्ट है कि कुल बिजी उत्पादन में 84.17 फीसदी की कमी आई है. जनवरी में विद्युत विकास विभाग (PDD) ने लगभग 250 मेगावाट (MW) बिजली पैदा की, लेकिन तब से यह आंकड़ा घटकर सिर्फ 190 मेगावाट रह गया है.
PDD के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, "बर्फबारी की अवधि कम होने और तापमान बढ़ने के कारण बिजली उत्पादन के लिए पानी की उपलब्धता कम हो रही है. हम उत्पादन को अनुकूलित करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन चीजों को अप्रत्याशित बना रहा है." बता दें कि इस क्षेत्र की कुल जलविद्युत उत्पादन क्षमता 1,200 मेगावाट है, जिसमें से 900 मेगावाट बगलिहार जलविद्युत परियोजना से आती है.
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सेब के बाग हो सकते हैं प्रभावित
हालांकि, पानी की कमी के कारण वर्तमान उत्पादन पूरी क्षमता से काफी कम है. सूखे मौसम का असर फल उत्पादकों पर भी पड़ रहा है.विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि बढ़ते तापमान और नमी की कमी के कारण फलों के पेड़ों में फूल जल्दी आ सकते हैं. यह घटना कश्मीर के बागवानी उद्योग की रीढ़, सेब के बागों को बुरी तरह प्रभावित कर सकती है. SKUAST-कश्मीर के वैज्ञानिक डॉ. परवेज ने कहा, "अगर 20 फरवरी के बाद भी सूखा जारी रहा, तो समय से पहले फूल आ सकते हैं और उसके बाद अनियमित मौसम परागण को बाधित कर सकता है, जिससे फलों की पैदावार कम हो सकती है."
एक अन्य विशेषज्ञ डॉ तारिक ने कहा कि गर्म मौसम फफूंद जनित बीमारियों को कम करता है, लेकिन यह पेड़ों को कीटों के संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील बनाता है. उन्होंने कहा, "लंबे समय तक गर्मी रहने से फलों और पेड़ों के तने पर सनबर्न हो सकता है, जिससे समग्र गुणवत्ता प्रभावित होती है. किसानों को जोखिम कम करने के लिए मिट्टी की नमी बनाए रखने और मल्चिंग पर ध्यान देना चाहिए."
जल संकट के बावजूद अधिकारियों ने आश्वासन दिया कि क्षेत्र की आर्द्रभूमि, जो प्रवासी पक्षियों की मेजबानी करती है, स्थिर बनी हुई है. आर्द्रभूमि प्रबंधन की देखरेख करने वाले एक अधिकारी ने कहा, "हमारे पास होकरसर, शालबाग और अन्य आर्द्रभूमि में पर्याप्त पानी है, हालांकि मिरगुंड में थोड़ी चिंताएं हैं." इसी तरह, दाचीगाम राष्ट्रीय उद्यान में वन्यजीव अप्रभावित रहते हैं, जानवर ऊंचाई पर पानी तक पहुंचने में सक्षम हैं. एक वरिष्ठ वन्यजीव अधिकारी ने कहा, "गुलमर्ग, सोनमर्ग और बालटाल में पर्याप्त बर्फबारी हुई है, जिससे जंगली जानवरों के लिए पानी की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित हो रही है."
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खेलो इंडिया विंटर गेम्स स्थगित
अपर्याप्त बर्फबारी के कारण खेलो इंडिया विंटर गेम्स (KIWG) के पांचवें एडिशन को भी स्थगित कर दिया गया है. मूल रूप से, यह आयोजन 22 से 25 फरवरी, 2025 तक गुलमर्ग में होने वाले थे. जम्मू-कश्मीर खेल परिषद के एक वरिष्ठ अधिकारी ने ईटीवी भारत को बताया, "गुलमर्ग में अपर्याप्त बर्फबारी को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है. बर्फबारी की स्थिति में सुधार होने के बाद नए सिरे से आकलन किया जाएगा और तदनुसार संशोधित कार्यक्रम की घोषणा की जाएगी."
उन्होंने बताया कि तकनीकी समिति के परामर्श से इस आयोजन को स्थगित करने का निर्णय लिया गया है, क्योंकि अफ़रवत के प्रमुख स्की ढलानों में पर्याप्त बर्फ नहीं है. अगला निर्णय 19 फरवरी के बाद लिया जाएगा, क्योंकि मौसम विभाग ने गीले मौसम की स्थिति की भविष्यवाणी की है, जिससे गुलमर्ग में ताजा बर्फबारी होने की उम्मीद है.
बारिश की उम्मीद
इस बीच मौसम विभाग ने थोड़ी राहत की भविष्यवाणी की है, 19 और 20 फरवरी के बीच एक नए पश्चिमी विक्षोभ के कारण जम्मू कश्मीर में बारिश और बर्फबारी होने की उम्मीद है. मौसम विभाग के निदेशक डॉ. मुख्तार अहमद ने कहा, "कश्मीर और जम्मू के मैदानी इलाकों में हल्की से मध्यम बारिश हो सकती है, जबकि चिनाब घाटी और दक्षिण कश्मीर के ऊंचे इलाकों में 10 इंच तक बर्फबारी हो सकती है."
स्वतंत्र मौसम पूर्वानुमानकर्ता फैजान आरिफ केंग ने भी व्यापक वर्षा का अनुमान लगाया है, खास तौर पर चेनाब घाटी और पीर पंजाल रेंज में. हालांकि, उन्होंने आगाह किया कि तापमान में तेज गिरावट से कुछ मैदानी इलाकों में बर्फबारी हो सकती है, जबकि भूस्खलन और पत्थर गिरने से जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर यात्रा बाधित हो सकती है.
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