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कानून बनाने से 60 दिन पहले मसाैदा सार्वजनिक को दायर जनहित याचिका - सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर

किसान आंदोलन को महीने भर से ज्यादा हो चुके हैं, लेकिन अभी तक कोई रास्ता नहीं निकल पाया है. इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है. जिसमें यह मांग की गई है कि कोई भी कानून पास करने से 60 दिन पहले उसे सार्वजनिक किया जाए, ताकि लोग कानून को जान व समझ सकें. जानें और क्या कहती है दायर की गई जनहित याचिका.

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Published : Jan 2, 2021, 3:44 PM IST

नई दिल्ली : महीने भर से अधिक समय से चल रहे किसानों के विरोध के मद्देनजर अब सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई है, जिसमें केंद्र और राज्यों की विधानसभा को कोई भी कानून बनाने से 60 दिन पहले उसका मसाैदा अपनी वेबसाइटों पर प्रकाशित करने के निर्देश देने की मांग की गई है, ताकि प्रस्तावित कानूनों पर पर्याप्त बहस, चर्चा और विश्लेषण किया जा सके. जिससे कानून पास होने के बाद किसी तरह के कानूनी पचड़े में पड़ने से बचा जा सके.

पहले बना था ऐसा विकल्प

जनहित याचिका में कहा गया है कि 2014 में केंद्र सरकार ने स्वयं एक पूर्व-विधायी परामर्श नीति की कल्पना की थी. जिससे मंत्रालयों और संबंधित विभागों के लिए कम से कम 30 दिनों की अवधि के लिए कानून की जानकारी सार्वजनिक करना व प्रकाशित करना अनिवार्य था, लेकिन इसका पालन नहीं किया गया. जनहित याचिका वापस लिए गए निर्णयों के अनुपालन के लिए आग्रह करती है.

रातों रात कानून पास करना उचित नहीं

याचिकाकर्ता व भाजपा सदस्य एडवाेकेट अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि उन्नत मीडिया और प्रौद्योगिकी के साथ आज की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सरकार के लिए किसी भी बहस या परामर्श के बिना रातों रात कानून पारित करना उचित नहीं है. याचिकाकर्ता का कहना है कि पूर्व में चर्चा के अभाव के कारण किसानों का विरोध प्रदर्शन भी थम नहीं रहा है. याचिकाकर्ता को लगता है कि तीनों कृषि कानून मध्यम वर्ग आदमी के खिलाफ और किसानों के कल्याण के लिए हैं.

यह भी पढ़ें-नए साल में भी नहीं बदले किसानों के हौसले और इरादे, आंदोलन जारी

कानून को लेकर गुमराह हुए लोग

कानून भले ही ठीक हो, लेकिन स्वार्थी राजनेता लोगाें को गुमराह करने में सफल रहे, क्योंकि संसद में पेश करने से पहले व्यापक परामर्श और प्रतिक्रिया के लिए मसौदा प्रकाशित नहीं किया गया. इससे गलत जानकारी लोगों तक पहुंची और विरोध हुआ. किसानों और राजनीतिक दलों ने इसका उपयोग अपनी स्वार्थ सिद्धी के लिए किया. किसानों को एक मोर्चे के रूप में तैयार कर उनका उपयोग किया गया.

क्षेत्रीय भाषाओं में भी हो प्रकाशन
याचिकाकर्ता ने यह सुनिश्चित करने के लिए केंद्र से दिशा-निर्देश भी मांगे हैं. जिसके माध्यम से सभी मसौदे और प्रस्तावित कानून को सरकारी वेबसाइटों पर और सार्वजनिक क्षेत्र सहित 8वीं अनुसूची में सूचीबद्ध सभी क्षेत्रीय भाषाओं में उपलब्ध कराया जाना चाहिए, जिससे लोगों की व्यापक समझ बन सके.

नई दिल्ली : महीने भर से अधिक समय से चल रहे किसानों के विरोध के मद्देनजर अब सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई है, जिसमें केंद्र और राज्यों की विधानसभा को कोई भी कानून बनाने से 60 दिन पहले उसका मसाैदा अपनी वेबसाइटों पर प्रकाशित करने के निर्देश देने की मांग की गई है, ताकि प्रस्तावित कानूनों पर पर्याप्त बहस, चर्चा और विश्लेषण किया जा सके. जिससे कानून पास होने के बाद किसी तरह के कानूनी पचड़े में पड़ने से बचा जा सके.

पहले बना था ऐसा विकल्प

जनहित याचिका में कहा गया है कि 2014 में केंद्र सरकार ने स्वयं एक पूर्व-विधायी परामर्श नीति की कल्पना की थी. जिससे मंत्रालयों और संबंधित विभागों के लिए कम से कम 30 दिनों की अवधि के लिए कानून की जानकारी सार्वजनिक करना व प्रकाशित करना अनिवार्य था, लेकिन इसका पालन नहीं किया गया. जनहित याचिका वापस लिए गए निर्णयों के अनुपालन के लिए आग्रह करती है.

रातों रात कानून पास करना उचित नहीं

याचिकाकर्ता व भाजपा सदस्य एडवाेकेट अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि उन्नत मीडिया और प्रौद्योगिकी के साथ आज की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सरकार के लिए किसी भी बहस या परामर्श के बिना रातों रात कानून पारित करना उचित नहीं है. याचिकाकर्ता का कहना है कि पूर्व में चर्चा के अभाव के कारण किसानों का विरोध प्रदर्शन भी थम नहीं रहा है. याचिकाकर्ता को लगता है कि तीनों कृषि कानून मध्यम वर्ग आदमी के खिलाफ और किसानों के कल्याण के लिए हैं.

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कानून को लेकर गुमराह हुए लोग

कानून भले ही ठीक हो, लेकिन स्वार्थी राजनेता लोगाें को गुमराह करने में सफल रहे, क्योंकि संसद में पेश करने से पहले व्यापक परामर्श और प्रतिक्रिया के लिए मसौदा प्रकाशित नहीं किया गया. इससे गलत जानकारी लोगों तक पहुंची और विरोध हुआ. किसानों और राजनीतिक दलों ने इसका उपयोग अपनी स्वार्थ सिद्धी के लिए किया. किसानों को एक मोर्चे के रूप में तैयार कर उनका उपयोग किया गया.

क्षेत्रीय भाषाओं में भी हो प्रकाशन
याचिकाकर्ता ने यह सुनिश्चित करने के लिए केंद्र से दिशा-निर्देश भी मांगे हैं. जिसके माध्यम से सभी मसौदे और प्रस्तावित कानून को सरकारी वेबसाइटों पर और सार्वजनिक क्षेत्र सहित 8वीं अनुसूची में सूचीबद्ध सभी क्षेत्रीय भाषाओं में उपलब्ध कराया जाना चाहिए, जिससे लोगों की व्यापक समझ बन सके.

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