नई दिल्ली: संसद की एक समिति ने मंगलवार को प्रतिस्पर्धा कानून संशोधन विधेयक में विभिन्न बदलावों की सिफारिश की. इसमें व्यावहारिक उपाय के रूप में साठगांठ के मामलों को निपटान की संभावना के दायरे में लाना शामिल है. वित्त पर संसद की स्थायी समिति ने लोकसभा में पेश अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा कि मामले में राय बनाने के लिये मौजूदा प्रथम दृष्ट्या समयसीमा और विलय के अनुमोदन के लिए आदेश पारित करने की समयसीमा में कोई बदलाव नहीं होना चाहिए.
कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय ने पांच अगस्त को संसद में पेश किये गये प्रतिस्पर्धा (संशोधन) विधेयक, 2022 के तहत, सीसीआई को किसी मामले पर प्रथम दृष्ट्या राय बनाने के लिए समयसीमा को 30 दिन से घटाकर 20 दिन करने का प्रस्ताव दिया है. साथ ही, इसने विलय के अनुमोदन के लिए समयसीमा को 210 दिन से घटाकर 150 दिन करने का प्रस्ताव किया है. इस संबंध में समिति ने कहा कि भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) और अंशधारकों ने आशंका जताई है कि समयसीमा कम होने से यह प्राधिकरण को एक कठिन और मुश्किल स्थिति में डाल देगा.
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रिपोर्ट में कहा गया है, 'समिति की राय है कि समयसीमा को कम करना, पहले से ही कर्मचारियों की कमी का सामना कर रहे आयोग के बोझ को और बढ़ा सकता है.' समिति ने अन्य सिफारिशों में कहा कि सीसीआई को साठगांठ मामले को पूरी प्रक्रिया के लिए व्यावहारिक उपाय के रूप में निपटान की संभावना के दायरे में लाने पर विचार करना चाहिए. विधेयक में मंत्रालय ने मुकदमेबाजी को कम करने के लिए निपटान और प्रतिबद्धता ढांचे की शुरुआत का प्रस्ताव दिया है.
(पीटीआई-भाषा)