नई दिल्ली : देश के कई राज्यों में बारहमासी बाढ़ की समस्या को देखते हुए संसद की एक समिति ने सरकार को इस मसले को हल करने के लिए एक एकीकृत नदी बेसिन प्रबंधन योजना बनाने का सुझाव दिया है. जल संसाधन संबंधी स्थायी समिति की लोकसभा में प्रस्तुत अपनी 17वीं रिपोर्ट में यह सिफारिश की गई है. संसदीय समिति ने कहा है कि एक एकीकृत नदी बेसिन प्रबंधन योजना समय की आवश्यकता है, जिसमें सभी प्रमुख बाढ़ प्रभावित भारतीय राज्यों और पड़ोसी देशों की सामूहिक भागीदारी की आवश्यकता होती है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि बार-बार बाढ़ आने के लिए विभिन्न कारकों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है जैसे समय और स्थान दोनों में वर्षा में व्यापक भिन्नता, सामान्य पैटर्न से बार-बार प्रस्थान के साथ, नदियों की अपर्याप्त वहन क्षमता, नदी के किनारे का कटाव, नदी के तल की गाद, भूस्खलन, खराब प्राकृतिक जल निकासी, बर्फ का पिघलना और हिमनद झील में विस्फोट होना भी है. साथ ही कहा गया है कि विभिन्न नदियों के अंतरराज्यीय और अंतरराष्ट्रीय विस्तार के कारण भी बाढ़ की समस्या विकट हो जाती है.
इसमें राष्ट्रीय बाढ़ आयोग के आंकड़ों का जिक्र कर कहा गया है कि देश में बाढ़ के प्रभाव वाले इलाकों का कुल क्षेत्रफल चार करोड़ हेक्टेयर है. वर्ष 1953 से 2018 तक बाढ़ के कारण 4,00,097 करोड़ रुपये की फसलों, घरों, सार्वजनिक संपत्तियों के नुकसान का अनुमान है. आयोग के आंकड़ों के अनुसार, इन 65 वर्षों में लगभग 1,09,374 लोगों और 61,09,628 मवेशियों के मारे जाने का अनुमान है.
इस संबंध में लोकसभा सांसद डॉ संजय जायसवाल की अध्यक्षता वाली समिति ने कहा, हर साल बाढ़ कंट्रोल की कमजोर योजना के फेल होने से काफी नुकसान होता है. समिति के मुताबिक चूंकि बाढ़ हर साल तबाही मचाती है, जिससे लोगों को आर्थिक नुकसान होने के साथ ही अन्य कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इसलिए समय की आवश्यकता है कि केंद्र और राज्य सरकार दोनों को एक स्थायी समाधान निकालना चाहिए.
जल संसाधन मंत्रालय ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि बाढ़ नियंत्रण सहित आपसी लाभ के लिए पड़ोसी राज्यों की आम नदियों के पानी का उपयोग करने की योजना है. समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा, जहां तक पड़ोसी देशों से बहने वाली सीमा पार नदियों के संबंध में बाढ़ प्रबंधन का सवाल है, द्विपक्षीय तंत्र के माध्यम से नियमित रूप से विचार-विमर्श किया जा रहा है.
वहीं जल संसाधन मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि केंद्र सरकार के 'जल शक्ति अभियान' ने पारंपरिक जल निकायों और आर्द्रभूमि के पुनरुद्धार, कायाकल्प और संरक्षण की आवश्यकता पर भी जोर दिया है जो पानी के संरक्षण के अलावा बाढ़ नियंत्रण में भी सहायता करते हैं. समिति ने कहा कि मंत्रालय की राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (एनपीपी) के अनुसार, जल अधिशेष बेसिन से पानी की कमी वाले बेसिन से अंतर बेसिन हस्तांतरण के माध्यम से विकास के लिए, राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (एनडब्ल्यूडीए) ने 30 लिंक (16 प्रायद्वीपीय घटक और 14 के तहत) की पहचान की है.
रिपोर्ट में कहा गया है, नदियों को आपस में जोड़ने से सिंचाई, बिजली उत्पादन, बाढ़ नियंत्रण, सूखा, जल आपूर्ति, मत्स्य पालन और प्रदूषण नियंत्रण आदि के लाभ के अलावा काफी लाभ होंगे. इस बारे में असम से लोकसभा के सांसद नबा कुमार सरनिया (Naba Hira Kumar Sarania) ने कहा कि केंद्र सरकार को राज्य की बाढ़ की समस्या को नियंत्रित करने के लिए कड़े कदम उठाने चाहिए.
सरनिया ने कहा, लगभग हर साल हम बाढ़ की समस्या का सामना करते हैं जिससे राज्य भर में गंभीर नुकसान होता है. यह न केवल लोगों के घर नष्ट हो जाते हैं वहीं लाखों हेक्टेयर कृषि भूमि भी नष्ट हो जाती है. वर्तमान मानसून में, असम, बिहार, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, केरल सहित भारत भर के कई राज्य गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं.
ये भी पढ़ें - भारत ने वैश्विक कार्बन बजट में अपने हिस्से से बहुत कम इस्तेमाल किया: सरकार