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पाक समर्थित अलगाववादी खालिस्तानी संगठन अमेरिका में हो रहा मजूबत : रिपोर्ट

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Published : Sep 15, 2021, 1:03 PM IST

Updated : Sep 15, 2021, 9:46 PM IST

एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पाक समर्थित अलगाववादी खालिस्तानी संगठन अमेरिका में मजूबत हो रहा है. रिपोर्ट में इन समूहों के भारत में उग्रवादी और आतंकवादी संगठनों के साथ संबंधों और दक्षिण एशिया में अमेरिकी विदेश नीति पर उनकी गतिविधियों के संभावित हानिकारक प्रभावों पर गौर किया गया है. पढ़ें पूरी खबर...

पाक समर्थित अलगाववादी खालिस्तानी संगठन
पाक समर्थित अलगाववादी खालिस्तानी संगठन

वॉशिंगटन : अमेरिका की एक शीर्ष वैचारिक संस्था (थिंक टैंक) ने चेताया है कि पाकिस्तान समर्थित अलगाववादी खालिस्तानी समूह अमेरिका में धीरे-धीरे अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है. उसने यह भी कहा कि अमेरिकी सरकार इन संगठनों की भारत को अस्थिर करने वाली गतिविधियों को रोकने के लिए नई दिल्ली द्वारा की गई अपीलों के प्रति अब तक उदासीन रही है.

अमेरिका स्थित सिख्स फॉर जस्टिस (एसएफजे) एक खालिस्तानी समर्थक समूह है. भारत सरकार ने 2019 में कथित राष्ट्र विरोधी गतिविधियों के लिये इसे प्रतिबंधित कर दिया था.

एसएफजे ने अपने अलगाववादी एजेंडे के तहत सिख जनमत संग्रह 2020 पर जोर दिया था. वह खुले तौर पर खालिस्तान का समर्थन करता है और ऐसा करते हुए भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को चुनौती देता है. इस गैरकानूनी समूह का प्राथमिक उद्देश्य पंजाब में एक 'स्वतंत्र और संप्रभु देश' की स्थापना करना है.

'हडसन इंस्टीट्यूट' ने मंगलवार को प्रकाशित अपनी रिपोर्ट 'पाकिस्तान का अस्थिरता का षड्यंत्र : अमेरिका में खालिस्तान की सक्रियता' में पाकिस्तान द्वारा इन संगठनों को दिए जा रहे समर्थन की जांच करने के लिए 'अमेरिका के भीतर खालिस्तान और कश्मीर अलगाववादी समूहों' के आचरण को आंका है.

रिपोर्ट में इन समूहों के भारत में उग्रवादी और आतंकवादी संगठनों के साथ संबंधों और दक्षिण एशिया में अमेरिकी विदेश नीति पर उनकी गतिविधियों के संभावित हानिकारक प्रभावों पर गौर किया गया है.

रिपोर्ट दर्शाती है कि 'पाकिस्तान स्थित इस्लामी आतंकवादी संगठनों की तरह, खालिस्तानी संगठन नए नामों के साथ सामने आ सकते हैं.''

इसमें कहा गया, 'दुर्भाग्य से, अमेरिकी सरकार ने खालिस्तानियों द्वारा की गई हिंसा में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है, जबकि खालिस्तान अभियान के सबसे कट्टर समर्थक ब्रिटेन, कनाडा और अमेरिका जैसे पश्चिमी देशों में हैं.'

रिपोर्ट में कहा गया, 'जब तक अमेरिकी सरकार खालिस्तान से संबंधित उग्रवाद और आतंकवाद की निगरानी को प्राथमिकता नहीं देती, तब तक उन समूहों की पहचान होने की संभावना नहीं है जो वर्तमान में भारत में पंजाब में हिंसा में लिप्त हैं या ऐसा करने की तैयारी कर रहे हैं.'

हडसन इंस्टीट्यूट का कहना है कि पूर्वानुमान राष्ट्रीय सुरक्षा योजना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, और इसलिए,उत्तरी अमेरिका में स्थित खालिस्तानी संगठनों की गतिविधियों की कानून द्वारा निर्धारित सीमाओं के भीतर जांच करना 1980 के दशक में खालिस्तान आंदोलन के दौरान हुई हिंसा फिर से न होने देने के लिए महत्वपूर्ण है.'

रिपोर्ट में कहा गया कि महत्त्वपूर्ण यह भी है कि अमेरिका के भीतर खालिस्तान से संबंधित भारत विरोधी सक्रियता हाल में बढ़ी है और वह भी तब जब अमेरिका और भारत चीन के बढ़ते प्रभाव खासकर हिंद-प्रशांत में, उसका सामना करने के लिए सहयोग कर रहे हैं.

यह भी पढ़ें- अफगानिस्तान : मुल्ला बरादर होगा नई सरकार का मुखिया, ईरान की तर्ज पर पूरी व्यवस्था

रिपोर्ट कहती है, 'खालिस्तान आंदोलन के इतिहास और हालिया लामबंदी को एक चेतावनी के रूप में काम करना चाहिए कि, जब तक कि इससे उत्पन्न होने वाले खतरे का किसी तरह से पूर्वाभास नहीं किया जाता है, यह उस स्तर तक विस्तारित हो सकता है जब बड़े पैमाने पर जान के नुकसान को रोकने के लिए कार्रवाई के लिहाज से बहुत देर हो चुकी हो.'

रिपोर्ट अमेरिकी सरकार से भारत की चिंताओं को गंभीरता से लेने का आह्वान करती है और भारत को इन चिंताओं को दूर करने में मदद करने के लिए आवश्यक खुफिया और कानून प्रवर्तन संसाधनों को उपलब्ध कराने का आग्रह करती है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिकी सरकार को भारत में आतंकवादी हमलों के लिए जिम्मेदार सभी संगठनों को वैश्विक आतंकवादी संगठनों की सूची में शामिल करना चाहिए और उन विभिन्न व्यक्तियों को आतंकवादी के रूप में नामित करना चाहिए जिनकी भारत और अमेरिकी खुफिया और कानून प्रवर्तन एजेंसियों ने आतंकवादी संस्थाओं से जुड़े होने के रूप में पहचान की है.

इसने कहा, 'कश्मीरी और खालिस्तान अलगाववाद का समर्थन करने वाले विभिन्न संगठनों के खिलाफ आतंकवाद को धन मुहैया कराने के कानूनों और नियमों को लागू करें; विदेशों से प्राप्त होने वाली मदद से संबंधित अमेरिकी कानूनों के संभावित उल्लंघन के लिए कश्मीरी और खालिस्तान अलगाववाद का समर्थन करने वाले अमेरिका स्थित संगठनों की जांच करें.'

रिपोर्ट में कहा गया है, 'संदिग्ध कश्मीरी और खालिस्तान आतंकवाद के समर्थकों और उनके पैरोकारों की निगरानी के लिए विशेष रूप से आतंकवाद से निपटने के लिए स्थापित कानूनी साधनों का उपयोग किया जाए जिसमें 'एफआईएसए' वारंट शामिल हैं.'

सिख कट्टरपंथी समूह न्यूयॉर्क और कैलिफोर्निया में सक्रिय होने का जिक्र करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत विरोधी प्रचार प्रसार के अलावा, इन संगठनों का लक्ष्य खालिस्तान के उद्देश्य की पैरोकारी करना है और इसके लिये समर्थन जुटाने को वे स्थानीय राजनेताओं, अमेरिकी वैचारिक संस्थाओं व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को जोड़ने की कोशिश करते हैं.

खालिस्तान के कार्यकर्ता सिख पूजा स्थलों, गुरुद्वारों का उपयोग अनुयायियों को आकर्षित करने के लिए भी करते हैं, पंजाब में आतंकवादियों की 'शहादत' के उपलक्ष्य में विशेष कार्यक्रम आयोजित करते हैं.

रिपोर्ट कहती है, 'वे ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार और 1984 के सिख विरोधी दंगों को भी याद करते हैं ताकि युवा सिखों को यह विश्वास दिलाया जा सके कि सिखों और अन्य भारतीयों के बीच एक धार्मिक टकराव है.'

(पीटीआई-भाषा)

वॉशिंगटन : अमेरिका की एक शीर्ष वैचारिक संस्था (थिंक टैंक) ने चेताया है कि पाकिस्तान समर्थित अलगाववादी खालिस्तानी समूह अमेरिका में धीरे-धीरे अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है. उसने यह भी कहा कि अमेरिकी सरकार इन संगठनों की भारत को अस्थिर करने वाली गतिविधियों को रोकने के लिए नई दिल्ली द्वारा की गई अपीलों के प्रति अब तक उदासीन रही है.

अमेरिका स्थित सिख्स फॉर जस्टिस (एसएफजे) एक खालिस्तानी समर्थक समूह है. भारत सरकार ने 2019 में कथित राष्ट्र विरोधी गतिविधियों के लिये इसे प्रतिबंधित कर दिया था.

एसएफजे ने अपने अलगाववादी एजेंडे के तहत सिख जनमत संग्रह 2020 पर जोर दिया था. वह खुले तौर पर खालिस्तान का समर्थन करता है और ऐसा करते हुए भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को चुनौती देता है. इस गैरकानूनी समूह का प्राथमिक उद्देश्य पंजाब में एक 'स्वतंत्र और संप्रभु देश' की स्थापना करना है.

'हडसन इंस्टीट्यूट' ने मंगलवार को प्रकाशित अपनी रिपोर्ट 'पाकिस्तान का अस्थिरता का षड्यंत्र : अमेरिका में खालिस्तान की सक्रियता' में पाकिस्तान द्वारा इन संगठनों को दिए जा रहे समर्थन की जांच करने के लिए 'अमेरिका के भीतर खालिस्तान और कश्मीर अलगाववादी समूहों' के आचरण को आंका है.

रिपोर्ट में इन समूहों के भारत में उग्रवादी और आतंकवादी संगठनों के साथ संबंधों और दक्षिण एशिया में अमेरिकी विदेश नीति पर उनकी गतिविधियों के संभावित हानिकारक प्रभावों पर गौर किया गया है.

रिपोर्ट दर्शाती है कि 'पाकिस्तान स्थित इस्लामी आतंकवादी संगठनों की तरह, खालिस्तानी संगठन नए नामों के साथ सामने आ सकते हैं.''

इसमें कहा गया, 'दुर्भाग्य से, अमेरिकी सरकार ने खालिस्तानियों द्वारा की गई हिंसा में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है, जबकि खालिस्तान अभियान के सबसे कट्टर समर्थक ब्रिटेन, कनाडा और अमेरिका जैसे पश्चिमी देशों में हैं.'

रिपोर्ट में कहा गया, 'जब तक अमेरिकी सरकार खालिस्तान से संबंधित उग्रवाद और आतंकवाद की निगरानी को प्राथमिकता नहीं देती, तब तक उन समूहों की पहचान होने की संभावना नहीं है जो वर्तमान में भारत में पंजाब में हिंसा में लिप्त हैं या ऐसा करने की तैयारी कर रहे हैं.'

हडसन इंस्टीट्यूट का कहना है कि पूर्वानुमान राष्ट्रीय सुरक्षा योजना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, और इसलिए,उत्तरी अमेरिका में स्थित खालिस्तानी संगठनों की गतिविधियों की कानून द्वारा निर्धारित सीमाओं के भीतर जांच करना 1980 के दशक में खालिस्तान आंदोलन के दौरान हुई हिंसा फिर से न होने देने के लिए महत्वपूर्ण है.'

रिपोर्ट में कहा गया कि महत्त्वपूर्ण यह भी है कि अमेरिका के भीतर खालिस्तान से संबंधित भारत विरोधी सक्रियता हाल में बढ़ी है और वह भी तब जब अमेरिका और भारत चीन के बढ़ते प्रभाव खासकर हिंद-प्रशांत में, उसका सामना करने के लिए सहयोग कर रहे हैं.

यह भी पढ़ें- अफगानिस्तान : मुल्ला बरादर होगा नई सरकार का मुखिया, ईरान की तर्ज पर पूरी व्यवस्था

रिपोर्ट कहती है, 'खालिस्तान आंदोलन के इतिहास और हालिया लामबंदी को एक चेतावनी के रूप में काम करना चाहिए कि, जब तक कि इससे उत्पन्न होने वाले खतरे का किसी तरह से पूर्वाभास नहीं किया जाता है, यह उस स्तर तक विस्तारित हो सकता है जब बड़े पैमाने पर जान के नुकसान को रोकने के लिए कार्रवाई के लिहाज से बहुत देर हो चुकी हो.'

रिपोर्ट अमेरिकी सरकार से भारत की चिंताओं को गंभीरता से लेने का आह्वान करती है और भारत को इन चिंताओं को दूर करने में मदद करने के लिए आवश्यक खुफिया और कानून प्रवर्तन संसाधनों को उपलब्ध कराने का आग्रह करती है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिकी सरकार को भारत में आतंकवादी हमलों के लिए जिम्मेदार सभी संगठनों को वैश्विक आतंकवादी संगठनों की सूची में शामिल करना चाहिए और उन विभिन्न व्यक्तियों को आतंकवादी के रूप में नामित करना चाहिए जिनकी भारत और अमेरिकी खुफिया और कानून प्रवर्तन एजेंसियों ने आतंकवादी संस्थाओं से जुड़े होने के रूप में पहचान की है.

इसने कहा, 'कश्मीरी और खालिस्तान अलगाववाद का समर्थन करने वाले विभिन्न संगठनों के खिलाफ आतंकवाद को धन मुहैया कराने के कानूनों और नियमों को लागू करें; विदेशों से प्राप्त होने वाली मदद से संबंधित अमेरिकी कानूनों के संभावित उल्लंघन के लिए कश्मीरी और खालिस्तान अलगाववाद का समर्थन करने वाले अमेरिका स्थित संगठनों की जांच करें.'

रिपोर्ट में कहा गया है, 'संदिग्ध कश्मीरी और खालिस्तान आतंकवाद के समर्थकों और उनके पैरोकारों की निगरानी के लिए विशेष रूप से आतंकवाद से निपटने के लिए स्थापित कानूनी साधनों का उपयोग किया जाए जिसमें 'एफआईएसए' वारंट शामिल हैं.'

सिख कट्टरपंथी समूह न्यूयॉर्क और कैलिफोर्निया में सक्रिय होने का जिक्र करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत विरोधी प्रचार प्रसार के अलावा, इन संगठनों का लक्ष्य खालिस्तान के उद्देश्य की पैरोकारी करना है और इसके लिये समर्थन जुटाने को वे स्थानीय राजनेताओं, अमेरिकी वैचारिक संस्थाओं व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को जोड़ने की कोशिश करते हैं.

खालिस्तान के कार्यकर्ता सिख पूजा स्थलों, गुरुद्वारों का उपयोग अनुयायियों को आकर्षित करने के लिए भी करते हैं, पंजाब में आतंकवादियों की 'शहादत' के उपलक्ष्य में विशेष कार्यक्रम आयोजित करते हैं.

रिपोर्ट कहती है, 'वे ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार और 1984 के सिख विरोधी दंगों को भी याद करते हैं ताकि युवा सिखों को यह विश्वास दिलाया जा सके कि सिखों और अन्य भारतीयों के बीच एक धार्मिक टकराव है.'

(पीटीआई-भाषा)

Last Updated : Sep 15, 2021, 9:46 PM IST
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