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हमारे उत्पाद, हमारी परंपरा और हमारा बाजार - पूमालाई कॉम्प्लेक्स में बाजार

वर्तमान समय में ऑर्गेनिक फार्मिंग की मांग लगातार बढ़ती जा रही है. इसी को देखते हुए जिलाधिकारी शनमुगसुंदरम ने नाम समधाई (हमारा बाजार) की शुरुआत की. जहां केवल जैविक खेती के उत्पादों को सस्ते दामों पर बेचा जाता है.

नम समधाई
नम समधाई
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Published : Feb 5, 2021, 1:37 PM IST

चेन्नई : किसानों और उपभोक्ताओं दोनों, वेल्लोर में शुरू हुए 'नम समधाई' (हमारा बाजार) से लाभ उठाते हैं. यहां पर केवल जैविक खेती के उत्पादों को सस्ते दामों पर बेचा जाता है, जिससे उपभोक्ताओं सस्ते दामों पर उत्पाद खरीदते हैं और किसानों को भी अच्छा मुनाफा मिल जाता है.

वर्तमान समय में ऑर्गेनिक फार्मिंग की धूम है, जो सब्जियों और फलों में लाभ के लिए उपयोग किए जाने वाले कृत्रिम उर्वरक और कृत्रिम कीटनाशकों के बुरे प्रभाव के बारे में लोगों की बढ़ती जागरूकता को दर्शाता है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

इसलिए इस बात में कोई हैरानी नहीं है कि लोग सस्ती कीमतों पर उपलब्ध जैविक खेती के उत्पाद खरीदने के लिए इच्छा और उत्सुकता दिखा रहे हैं.

ऐसे समय में जब वेल्लोर के जैविक किसान अपनी सामान को बेचने के लिए संघर्ष कर रहे थे. ऐसे में वेल्लोर के जिलाधिकारी शनमुगसुंदरम ने नाम समधाई (हमारा बाजार) की शुरुआत की.

फिलहाल महिला विकास योजना के तहत तमिलनाडु राज्य ग्रामीण और शहरी आजीविका मिशन किसानों के साथ संयुक्त रूप से जैविक किसानों के लिए इस विशेष बाजार का संचालन कर रहा है.

इसके अलावा बाजार में एक रिवॉलविंग लाइब्रेरी भी काम कर रही है, जहां किसानों और उपभोक्ताओं को जैविक खेती संबंधित जानकारी देती है. यहां कृषि और सरल देशी दवाओं की किस्मों के बारे में बहुत सारी किताबें उपलब्ध हैं.

प्रत्येक रविवार को सुबह 6 बजे से 11 बजे तक वेल्लोर में पूमालाई कॉम्प्लेक्स में बाजार लगता है. अब तक यह बाजार 53 बार लग चुका है.

बाजार के समन्वयक सेंथमीज सेलवन का कहना है कि यह 'नम समधाई' कोरोना के समय भी काम कर रहा था. जाहिर है, इस दौरान कोरोना संबंधित सभी सुरक्षा उपाय का पालन किया गया.

कोरोना को देखते हुए सब्जियों और फलों को लोगों के घर पर बेचा गया. कई शिक्षित युवा स्वयंसेवकों बाजार का समर्थन कर रहे हैं.

पर्यावरण संरक्षण की पहल के हिस्से के रूप में, प्लास्टिक की थैलियों को बाजार में लाने की अनुमति नहीं है. उपभोक्ताओं को अपने साथ कपड़े के थैले लाने के निर्देश दिए गए हैं.

सेंथमीज सेलवन ने कहा कि जैविक किसान बड़े पैमाने पर इस 'नम समधाई' का समर्थन कर रहे हैं, निम्नलिखित आंकड़ों से स्पष्ट है: अब तक 170 किसानों ने बाजार के साथ पंजीकरण किया है.

हर हफ्ते 40-50 किसान कार्यवाही में भाग लेते हैं, जो 50000 रुपये की रिकॉर्ड बिक्री करते हैं. महीने में एक बार बाजार परिसर में आयोजित होने वाली बैठक में बड़ी संख्या में किसान हिस्सा लेते हैं.

जैविक किसान साधनांथम ने कहा, 'मैं पिछले डेढ़ साल से यहां अपनी उपज बेच रहा हूं. उपभोक्ता हमारे उत्पादों को लगातार खरीदते रहते हैं, वह गुणवत्ता से आकर्षित होते हैं, हम अपने कठिन श्रम के लिए अच्छे दाम मिलते हैं.'

उन्होंने कहा कि प्राकृतिक रूप से लाभकारी खेती, जो हम बड़े उत्साह के साथ कर रहे हैं, महानगरों में भी इसकी डिमांड बढ़ गई है और इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि हमें चेन्नई, बेंगलुरु आदि जगहों के भी उपभोक्ता मिल गए हैं.

एक अन्य जैविक किसान विग्नेश ने अपनी उपज के बारे में बात करते हुए कहा, 'मैं अपनी पारंपरिक अनाज की फसलों की खेती कर रहा हूं.'

इनमें चावल की किस्में जैसे मपिलाई संपा, किचिली संपा, करुप्पु कावुनी आदि गर्म शामिल हैं.

पढ़ें - दिल्ली के अस्पताल में फेफड़े के दुर्लभ कैंसर से पीड़ित बच्चे की बचाई गई जान

यहां तक कि धान खरीद केंद्रों ने भी हमारी वंशानुगत उपज पर पानी फेर दिया, लेकिन, लोगों द्वारा समर्थितनम इस बाजार को धन्यवाद, जहां हमारे पास उत्पाद बेचने के लिए जगह है.

हालांकि, असिसटेंट प्रोफेसर एग्रीकल्चर, सुदर्शनजी का कहना है कि किसानों और उपभोक्ताओं और बाजार के बीच काफी गैप है.

यदि गैर-सरकारी संगठन और स्वयं सहायता समूह मधाई को लोकप्रिय बनाने के लिए कोई रणनीति बनाएं, तो यह अधित लोकप्रिय हो सकता है.

उन्होंने कहा कि इन रणनीतियों को इस तरह से तैयार और कार्यान्वित किया जाना चाहिए कि यह सुनिश्चित किया जा सके कि बाजार में रखी गई सभी उपज कुछ ही समय में बिक जाए. साथ ही भविष्य में बाजार की कई शाखाएं खोली जा सकें.

इस नम समधाई की बढ़ती सफलता से प्रेरित होकर, जैविक किसानों और उपभोक्ताओं सहित सभी हितधारकों को इस बाजार को पूरे तमिलनाडु में दोहराया जाना चाहिए.

चेन्नई : किसानों और उपभोक्ताओं दोनों, वेल्लोर में शुरू हुए 'नम समधाई' (हमारा बाजार) से लाभ उठाते हैं. यहां पर केवल जैविक खेती के उत्पादों को सस्ते दामों पर बेचा जाता है, जिससे उपभोक्ताओं सस्ते दामों पर उत्पाद खरीदते हैं और किसानों को भी अच्छा मुनाफा मिल जाता है.

वर्तमान समय में ऑर्गेनिक फार्मिंग की धूम है, जो सब्जियों और फलों में लाभ के लिए उपयोग किए जाने वाले कृत्रिम उर्वरक और कृत्रिम कीटनाशकों के बुरे प्रभाव के बारे में लोगों की बढ़ती जागरूकता को दर्शाता है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

इसलिए इस बात में कोई हैरानी नहीं है कि लोग सस्ती कीमतों पर उपलब्ध जैविक खेती के उत्पाद खरीदने के लिए इच्छा और उत्सुकता दिखा रहे हैं.

ऐसे समय में जब वेल्लोर के जैविक किसान अपनी सामान को बेचने के लिए संघर्ष कर रहे थे. ऐसे में वेल्लोर के जिलाधिकारी शनमुगसुंदरम ने नाम समधाई (हमारा बाजार) की शुरुआत की.

फिलहाल महिला विकास योजना के तहत तमिलनाडु राज्य ग्रामीण और शहरी आजीविका मिशन किसानों के साथ संयुक्त रूप से जैविक किसानों के लिए इस विशेष बाजार का संचालन कर रहा है.

इसके अलावा बाजार में एक रिवॉलविंग लाइब्रेरी भी काम कर रही है, जहां किसानों और उपभोक्ताओं को जैविक खेती संबंधित जानकारी देती है. यहां कृषि और सरल देशी दवाओं की किस्मों के बारे में बहुत सारी किताबें उपलब्ध हैं.

प्रत्येक रविवार को सुबह 6 बजे से 11 बजे तक वेल्लोर में पूमालाई कॉम्प्लेक्स में बाजार लगता है. अब तक यह बाजार 53 बार लग चुका है.

बाजार के समन्वयक सेंथमीज सेलवन का कहना है कि यह 'नम समधाई' कोरोना के समय भी काम कर रहा था. जाहिर है, इस दौरान कोरोना संबंधित सभी सुरक्षा उपाय का पालन किया गया.

कोरोना को देखते हुए सब्जियों और फलों को लोगों के घर पर बेचा गया. कई शिक्षित युवा स्वयंसेवकों बाजार का समर्थन कर रहे हैं.

पर्यावरण संरक्षण की पहल के हिस्से के रूप में, प्लास्टिक की थैलियों को बाजार में लाने की अनुमति नहीं है. उपभोक्ताओं को अपने साथ कपड़े के थैले लाने के निर्देश दिए गए हैं.

सेंथमीज सेलवन ने कहा कि जैविक किसान बड़े पैमाने पर इस 'नम समधाई' का समर्थन कर रहे हैं, निम्नलिखित आंकड़ों से स्पष्ट है: अब तक 170 किसानों ने बाजार के साथ पंजीकरण किया है.

हर हफ्ते 40-50 किसान कार्यवाही में भाग लेते हैं, जो 50000 रुपये की रिकॉर्ड बिक्री करते हैं. महीने में एक बार बाजार परिसर में आयोजित होने वाली बैठक में बड़ी संख्या में किसान हिस्सा लेते हैं.

जैविक किसान साधनांथम ने कहा, 'मैं पिछले डेढ़ साल से यहां अपनी उपज बेच रहा हूं. उपभोक्ता हमारे उत्पादों को लगातार खरीदते रहते हैं, वह गुणवत्ता से आकर्षित होते हैं, हम अपने कठिन श्रम के लिए अच्छे दाम मिलते हैं.'

उन्होंने कहा कि प्राकृतिक रूप से लाभकारी खेती, जो हम बड़े उत्साह के साथ कर रहे हैं, महानगरों में भी इसकी डिमांड बढ़ गई है और इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि हमें चेन्नई, बेंगलुरु आदि जगहों के भी उपभोक्ता मिल गए हैं.

एक अन्य जैविक किसान विग्नेश ने अपनी उपज के बारे में बात करते हुए कहा, 'मैं अपनी पारंपरिक अनाज की फसलों की खेती कर रहा हूं.'

इनमें चावल की किस्में जैसे मपिलाई संपा, किचिली संपा, करुप्पु कावुनी आदि गर्म शामिल हैं.

पढ़ें - दिल्ली के अस्पताल में फेफड़े के दुर्लभ कैंसर से पीड़ित बच्चे की बचाई गई जान

यहां तक कि धान खरीद केंद्रों ने भी हमारी वंशानुगत उपज पर पानी फेर दिया, लेकिन, लोगों द्वारा समर्थितनम इस बाजार को धन्यवाद, जहां हमारे पास उत्पाद बेचने के लिए जगह है.

हालांकि, असिसटेंट प्रोफेसर एग्रीकल्चर, सुदर्शनजी का कहना है कि किसानों और उपभोक्ताओं और बाजार के बीच काफी गैप है.

यदि गैर-सरकारी संगठन और स्वयं सहायता समूह मधाई को लोकप्रिय बनाने के लिए कोई रणनीति बनाएं, तो यह अधित लोकप्रिय हो सकता है.

उन्होंने कहा कि इन रणनीतियों को इस तरह से तैयार और कार्यान्वित किया जाना चाहिए कि यह सुनिश्चित किया जा सके कि बाजार में रखी गई सभी उपज कुछ ही समय में बिक जाए. साथ ही भविष्य में बाजार की कई शाखाएं खोली जा सकें.

इस नम समधाई की बढ़ती सफलता से प्रेरित होकर, जैविक किसानों और उपभोक्ताओं सहित सभी हितधारकों को इस बाजार को पूरे तमिलनाडु में दोहराया जाना चाहिए.

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