नई दिल्ली : नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने शनिवार को नागालैंड पर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन का प्रबंधन नहीं करने के लिए 200 करोड़ रुपये का पर्यावरणीय मुआवजा लगाया. जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की पीठ ने आदेश पारित करते हुए कहा कि सीवेज उत्पादन और उपचार में अंतर और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में अंतर के बारे में बयान पर विचार करते हुए, "कानून के जनादेश विशेष रूप से सर्वोच्च न्यायालय और इस न्यायाधिकरण के निर्णयों के उल्लंघन में वैज्ञानिक रूप से तरल और ठोस कचरे के प्रबंधन में अपनी विफलता के लिए प्रदूषक भुगतान सिद्धांत पर राज्य पर 200 करोड़ रुपये का मुआवजा लगाया जाता है."
पीठ ने यह भी कहा, "उक्त टिप्पणियों के आलोक में केवल राज्य में अपशिष्ट प्रबंधन के लिए मुख्य सचिव के निर्देशों के अनुसार संचालित होने के लिए राशि को रिंग-फेंस खाते में रखा जा सकता है. ठोस अपशिष्ट प्रसंस्करण सुविधाओं की स्थापना, पुराने कचरे के उपचार और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स (एसटीपी) और एफएसएसटीपी की स्थापना के लिए 200 करोड़ रुपये का उपयोग किया जाना चाहिए ताकि कोई अंतर न रहे.
आदेश में कहा गया, "हम आशा करते हैं कि मुख्य सचिव के साथ बातचीत के आधार पर, नागालैंड राज्य एक अभिनव दृष्टिकोण और कड़ी निगरानी के माध्यम से इस मामले में आगे के उपाय करेगा. यह सुनिश्चित करेगा कि ठोस और तरल अपशिष्ट उत्पादन और उपचार में अंतर जल्द से जल्द पाटा जाए. ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिए दो सितंबर 2014 और तरल अपशिष्ट प्रबंधन के लिए 22 फरवरी 2017 को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये आदेश अनुसार, प्राधिकरण ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन के मुद्दों की निगरानी कर रहा है. अन्य संबंधित मुद्दों में 351 नदी खंडों का प्रदूषण, वायु गुणवत्ता के मामले में 124 गैर-प्राप्ति वाले शहर, 100 प्रदूषित औद्योगिक क्लस्टर, अवैध रेत खनन आदि शामिल हैं, जिन्हें पहले भी निपटाया गया है."
बता दें कि एनजीटी ने पिछले सप्ताह आंध्र प्रदेश को ठोस और तरल कचरे के निपटान के संबंध में जुर्माने से छूट दी थी, जब आंध्र प्रदेश ने एक कार्य योजना शुरू करने के बाद दी गई प्रतिबद्धता से आश्वस्त कराया था.