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नेत्रदान या वरदान : ...ताकि आपकी नजर से भी काेई देख सके दुनिया....

मनुष्य काे ईश्वर की दी हुई सबसे खूबसूरत और कीमती उपहार आंखें हाेती हैं जाे हमें इस खूबसूरत दुनिया काे देखने की क्षमता प्रदान करती हैं, इसलिए मानव जीवन में आंखों के महत्व से इनकार नहीं किया जा सकता है. आइये नेत्रदान पखवाड़े के माैके पर जानें नेत्रदान से जुड़ीं कुछ काम की बातें......

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Published : Aug 25, 2021, 12:23 PM IST

हैदराबाद : इस वर्ष हम राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़े की 36वीं वर्षगांठ मना रहे हैं. यह हर साल 25 अगस्त से 8 सितंबर तक मनाया जाता है. दुर्घटना या किन्हीं अन्य कारणाें से आंखाें की राेशनी खाेने वाले लाेगाें के लिए नेत्रदान किसी वरदान से कम नहीं हाेता. यदि हम ये कहें इससे उन्हें दूसरा जीवन मिल जाता है ताे भी यह कम नहीं हाेगा. क्याेंकि नेत्र के बिना सबकुछ फीका है, सबकुछ अधूरा है.

राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़ा (National Eye Donation Fortnight) क्या है?

यह एक अभियान है जिसका उद्देश्य नेत्रदान के महत्व के बारे में जन जागरूकता पैदा करना और लोगों को मृत्यु के बाद अपनी आंखें दान करने के लिए प्रेरित करना है. विकासशील देशों में अंधापन प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्याओं में से एक है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, मोतियाबिंद और ग्लूकोमा के बाद, कॉर्नियल रोग (आंख के सामने को कवर करने वाले ऊतक को नुकसान, जिसे कॉर्निया कहा जाता है) दृष्टि दाेष और अंधापन के प्रमुख कारणों में शामिल है. ऐसे ज्यादातर मामलों में 'नेत्रदान' के माध्यम से लाेगाें की मदद की जाती है. किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद विभिन्न अंगों को दान किया जा सकता है और इन अंगाें काे उन रोगियों को शल्य चिकित्सा द्वारा प्रत्यारोपित किया जा सकता है जिन्हें उनकी आवश्यकता है. ऐसा ही एक अंग है आंखें. नेत्रदान की वजह से एक नेत्रहीन व्यक्ति भी फिर से इस दुनिया काे देख सकता है.

इतिहास

इस महत्वपूर्ण अभियान राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़े की शुरुआत वर्ष 1985 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW), भारत सरकार द्वारा किया गया था.

नेत्रदान के बारे में जरूरी बातें जाे सभी को पता होनी चाहिए

  • नेत्रदान मतलब किसी की मृत्यु के बाद उसकी आंखें दान करना.
  • दान की गई आंखों से केवल कॉर्नियल नेत्रहीन (corneal blind) लोगों को लाभ होता है.
  • कॉर्नियल ब्लाइंडनेस (Corneal blindness) आंख के सामने के हिस्से को कवर करने वाले ऊतक में क्षति के कारण दृष्टि की हानि है जिसे कॉर्निया कहा जाता है.
  • कोई भी व्यक्ति अपनी आयु, लिंग और रक्त ग्रुप (blood group) की परवाह किए बिना अपनी आंखें दान कर सकता है.
  • मृत्यु के एक घंटे के भीतर कॉर्निया को हटा देना चाहिए.
  • दान किए गए व्यक्ति की आंखें दो कॉर्नियल नेत्रहीन लोगों की दृष्टि बचा सकती है.
  • आंखों को हटाने में केवल 10-15 मिनट लगते हैं और इससे चेहरे पर कोई निशान या विकृति नहीं आती है.
  • दान की गई आंखें कभी भी खरीदी या बेची नहीं जाती हैं.
  • पंजीकृत नेत्र दाता बनने के लिए नेत्र बैंक से संपर्क करें.
  • राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़े का लक्ष्य लोगों को मृत्यु के बाद अपनी आंखें दान करने के लिए प्रोत्साहित करना है. लोगों को बतायें कि मृत्यु के बाद नेत्रदान से कोई नुकसान नहीं होता.

नेत्रदान का डेटा

  • वर्ष 2021 में आंखों में चोट लगने के कारण एक वर्ष में अंधेपन के 20,000 से अधिक नए मामले सामने आए हैं.
  • इसके अलावा विटामिन ए की कमी, संक्रमण, कुपोषण और कई अन्य समस्याएं भी इसके लिए जिम्मेदार हैं.

इसे भी पढ़ें : काशीपुर की तीन बेटियों ने जन्मदिन पर लिया फैसला, करेंगी नेत्रदान

2019 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में लगभग 70 लाख व्यक्ति विभिन्न नेत्र दोषों के कारण आंशिक अंधेपन से पीड़ित हैं. इनमें से 2 लाख से अधिक व्यक्तियों को अपनी सामान्य, स्वस्थ दृष्टि के लिए हर साल एक या दोनों आंखों में कॉर्नियल ट्रांसप्लांट सर्जरी की आवश्यकता होती है.

हैदराबाद : इस वर्ष हम राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़े की 36वीं वर्षगांठ मना रहे हैं. यह हर साल 25 अगस्त से 8 सितंबर तक मनाया जाता है. दुर्घटना या किन्हीं अन्य कारणाें से आंखाें की राेशनी खाेने वाले लाेगाें के लिए नेत्रदान किसी वरदान से कम नहीं हाेता. यदि हम ये कहें इससे उन्हें दूसरा जीवन मिल जाता है ताे भी यह कम नहीं हाेगा. क्याेंकि नेत्र के बिना सबकुछ फीका है, सबकुछ अधूरा है.

राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़ा (National Eye Donation Fortnight) क्या है?

यह एक अभियान है जिसका उद्देश्य नेत्रदान के महत्व के बारे में जन जागरूकता पैदा करना और लोगों को मृत्यु के बाद अपनी आंखें दान करने के लिए प्रेरित करना है. विकासशील देशों में अंधापन प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्याओं में से एक है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, मोतियाबिंद और ग्लूकोमा के बाद, कॉर्नियल रोग (आंख के सामने को कवर करने वाले ऊतक को नुकसान, जिसे कॉर्निया कहा जाता है) दृष्टि दाेष और अंधापन के प्रमुख कारणों में शामिल है. ऐसे ज्यादातर मामलों में 'नेत्रदान' के माध्यम से लाेगाें की मदद की जाती है. किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद विभिन्न अंगों को दान किया जा सकता है और इन अंगाें काे उन रोगियों को शल्य चिकित्सा द्वारा प्रत्यारोपित किया जा सकता है जिन्हें उनकी आवश्यकता है. ऐसा ही एक अंग है आंखें. नेत्रदान की वजह से एक नेत्रहीन व्यक्ति भी फिर से इस दुनिया काे देख सकता है.

इतिहास

इस महत्वपूर्ण अभियान राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़े की शुरुआत वर्ष 1985 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW), भारत सरकार द्वारा किया गया था.

नेत्रदान के बारे में जरूरी बातें जाे सभी को पता होनी चाहिए

  • नेत्रदान मतलब किसी की मृत्यु के बाद उसकी आंखें दान करना.
  • दान की गई आंखों से केवल कॉर्नियल नेत्रहीन (corneal blind) लोगों को लाभ होता है.
  • कॉर्नियल ब्लाइंडनेस (Corneal blindness) आंख के सामने के हिस्से को कवर करने वाले ऊतक में क्षति के कारण दृष्टि की हानि है जिसे कॉर्निया कहा जाता है.
  • कोई भी व्यक्ति अपनी आयु, लिंग और रक्त ग्रुप (blood group) की परवाह किए बिना अपनी आंखें दान कर सकता है.
  • मृत्यु के एक घंटे के भीतर कॉर्निया को हटा देना चाहिए.
  • दान किए गए व्यक्ति की आंखें दो कॉर्नियल नेत्रहीन लोगों की दृष्टि बचा सकती है.
  • आंखों को हटाने में केवल 10-15 मिनट लगते हैं और इससे चेहरे पर कोई निशान या विकृति नहीं आती है.
  • दान की गई आंखें कभी भी खरीदी या बेची नहीं जाती हैं.
  • पंजीकृत नेत्र दाता बनने के लिए नेत्र बैंक से संपर्क करें.
  • राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़े का लक्ष्य लोगों को मृत्यु के बाद अपनी आंखें दान करने के लिए प्रोत्साहित करना है. लोगों को बतायें कि मृत्यु के बाद नेत्रदान से कोई नुकसान नहीं होता.

नेत्रदान का डेटा

  • वर्ष 2021 में आंखों में चोट लगने के कारण एक वर्ष में अंधेपन के 20,000 से अधिक नए मामले सामने आए हैं.
  • इसके अलावा विटामिन ए की कमी, संक्रमण, कुपोषण और कई अन्य समस्याएं भी इसके लिए जिम्मेदार हैं.

इसे भी पढ़ें : काशीपुर की तीन बेटियों ने जन्मदिन पर लिया फैसला, करेंगी नेत्रदान

2019 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में लगभग 70 लाख व्यक्ति विभिन्न नेत्र दोषों के कारण आंशिक अंधेपन से पीड़ित हैं. इनमें से 2 लाख से अधिक व्यक्तियों को अपनी सामान्य, स्वस्थ दृष्टि के लिए हर साल एक या दोनों आंखों में कॉर्नियल ट्रांसप्लांट सर्जरी की आवश्यकता होती है.

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