मुंबई : महाराष्ट्र सरकार ने बृहस्पतिवार को बम्बई उच्च न्यायालय को बताया कि उसने मुंबई के पूर्व पुलिस प्रमुख परमबीर सिंह के खिलाफ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत प्राथमिकी दर्ज की थी, क्योंकि इस मामले में एक निरीक्षक द्वारा दी गई शिकायत में प्रथम दृष्टया संज्ञेय अपराधों की बात सामने आई थी.
पुलिस उपायुक्त (जोन तीन) ठाणे, विवेक पनसारे द्वारा दायर एक हलफनामे में सिंह की प्राथमिकी को रद्द करने के अनुरोध वाली अर्जियों का विरोध किया गया और कहा कि यह विचार योग्य नहीं है, क्योंकि इसमें कोई आधार नहीं उल्लेखित किया गया है.
अदालत में दायर हलफनामे के अनुसार, सिंह के खिलाफ प्राथमिकी पुलिस निरीक्षक भीमराव घाडगे द्वारा शिकायत के बाद दर्ज की गई थी, जिसमें संज्ञेय अपराध किए जाने की बात कही गई थी और यह कि मामले में 32 आरोपी हैं.
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हलफनामे में कहा गया है, 'मैं कहता हूं कि शिकायत प्रथम दृष्टया अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम और आईपीसी (भारतीय दंड संहिता) की संबंधित धाराओं के तहत अपराध किये जाने का खुलासा करती है.'
पिछले हफ्ते, उच्च न्यायालय की एक अवकाशकालीन पीठ ने सिंह की याचिका पर सुनवाई 21 मई को करना तय किया था, जिसमें प्राथमिकी रद्द करने का अनुरोध किया गया है.
महाराष्ट्र सरकार ने तब अदालत को आश्वासन दिया था कि वह 21 मई तक सिंह को गिरफ्तार नहीं करेगी, जो अब महाराष्ट्र होमगार्ड के महानिदेशक हैं.
सिंह ने इस महीने की शुरुआत में दायर अपनी याचिका में दावा किया था कि उन्हें महाराष्ट्र सरकार द्वारा झूठे आपराधिक मामलों के साथ निशाना बनाया जा रहा है, क्योंकि उन्होंने गत मार्च में पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए मुख्यमंत्री को एक पत्र लिखा था.
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देशमुख ने अप्रैल की शुरुआत में तब कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था, जब उच्च न्यायालय ने सिंह द्वारा लगाए गए भ्रष्टाचार और कदाचार के आरोपों पर सीबीआई को उनके खिलाफ प्रारंभिक जांच करने का निर्देश दिया था.
पुलिस ने अपने हलफनामे में कहा कि यह आरोप गलत हैं कि सिंह के खिलाफ प्राथमिकी और शिकायत बदले की कार्रवाई के तहत दर्ज की गई है.