पटना : भारत में इंजीनियरिंग विचार प्रक्रिया और प्रौद्योगिकी के सही संयोजन से खेती की कला तेजी से बदल रही है. इसका एक उदाहरण बिहार के गया क्षेत्र का है, जहां एक व्यक्ति ने खेती को लेकर अपने जुनून को आगे बढ़ाने के लिए इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ दी.
छत्तीसगढ़ में नौकरी कर रहे आशीष कुमार धांगी ने तीन साल पहले अपनी नौकरी छोड़ दी और खेती करने लगे, वह खेती से 10 से 12 लाख रुपये की कमाई की.
दरअसल, आशीष अपनी जमीन पर जो गेहूं कुछ पैदा करते हैं, वह कोई सामान्य गेहूं नहीं है, बल्कि काले, पीले और बैंगनी रंग की फसल का मिश्रण है, जो पहले ही जिले में किसानों के बीच एक प्रतिष्ठिता प्राप्त कर चुका है.
गया के युवाओं और किसानों के लिए आशीष ने रंगीन गेहूं की खेती कर, उससे कमाई कर एक मिसाल कायम की है और इलाके में इस गेहूं की खेती कर एक नया ट्रेंड शुरू किया है.
ईटीवी भारत से बात करते हुए आशीष ने कहा कि उन्हें पंजाब के राष्ट्रीय कृषि-खाद्य जैव प्रौद्योगिकी संस्थान (एनएबीआई) से गेहूं की फसल के लिए बीज मिले हैं, जिन्हें किसानों ने अपने खेतों में खेती के लिए खरीदा है.
आशीष की तकनीक अब तक बिहार के नवादा, औरंगाबाद और अरवल इलाकों तक पहुंच चुकी है. इस तरह की गेहूं की खेती करने की तकनीक वही है, जो नियमित गेहूं के लिए होती है.
यह बीज 15-16 क्विंटल गेहूं पैदा करता है और एक किसान इसे 45-50 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बाजार में बेच सकता है.
आशीष ने बताया कि इस अलग रंग के गेहूं की खेती करने के लिए, उन्हें न केवल किसानों को जागरूक करना होगा, बल्कि इसके बीजों को भी उपलब्ध करवाना होगा.
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इस गेहूं पर वैज्ञानिकों द्वारा शोध किया गया है. वैज्ञानिकों ने कहा है कि इस विशेष प्रकार के गेहूं में अधिक प्रोटीन और एंटीऑक्सिडेंट होते हैं. यह मधुमेह और रक्तचाप वाले लोगों के लिए फायदेमंद हैं.
आशीष ने दावा किया कि इसका इस्तेमाल शरीर को अधिकतम लौह स्तर भी प्रदान करता है.
पंजाब के NABI की डॉ मोनिका गर्ग ने पहले ही इस गेहूं पर काफी शोध किया है और अब आशीष ने इसके सही पोषण मूल्य को जानने के लिए अन्य संस्थानों में भी फसल के नमूने भेजे हैं.