भोपाल। आमों की दशहरा, लंगड़ा, चौसा जैसी कई वैरायटियों का स्वाद आपने चखा होगा, लेकिन क्या आपने मध्यप्रदेश के नूरजहां आम को खाया है. ये सवाल इसलिए क्योंकि यह मध्यप्रदेश ही नहीं, बल्कि देश का अनोखा आम है. इसके एक आम के फल का वजन ही 3 किलो तक होता है. इस वजह से यह आम किलो के हिसाब से नहीं, बल्कि नग के हिसाब से बिकता है. यह आम भोपाल के आम महोत्सव में आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है. यहां इस एक आम की कीमत 1200 रुपए रखी गई है.
अब इस आम के सिर्फ 3 पेड़: किसान प्रोड्यूसर कंपनी के संचालक संजय सिंह बताते हैं कि इस आम की उत्पत्ति अफगानिस्तान में हुई थी. मध्यप्रदेश के अलीराजपुर जिले के कठ्ठीवाड़ा इलाके में इस नूरजहां आम के पहले 10 पेड़ पाए जाते थे, लेकिन आज इसके तीन पेड़ रह गए हैं. गुजरात से सटा यह इलाका इंदौर से करीबन 250 किलोमीटर दूर है. आमतौर पर आम 300 से 400 ग्राम तक ही होता है, लेकिन यह आम किलो के हिसाब से नहीं, बल्कि एक नग के हिसाब से बिकता है. इसकी वजह यह है कि इस एक आम का वजन ही 3 किलो तक होता है. इस आम की वैरायटी विलुप्त होती जा रही है. संजय सिंह बताते हैं कि इस वैरायटी के आम के नए पौधों को तैयार करने के कई प्रयास किए गए, लेकिन इसमें अभी तक कोई सफलता नहीं मिल सकी है. इससे कई दूसरे आम के पौधों में ग्राफ्टिंग करने के दर्जनों प्रयास किए गए, लेकिन हर बार निराशा ही हाथ लगी है.
आम उत्सव में बेहद खास नूरजहां: इस नूरजहां आम को भोपाल में नाबार्ड द्वारा लगाए गए आम उत्सव में लाया गया है. यह आम लोगों के आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है. यह आम कितना खास है, वह उसकी कीमत से ही समझा जा सकता है. इस एक आम की कीमत 12 सौ रुपए रखी गई है. आम उत्सव में इस वैरायटी के 10 आमों को लाया गया है. वे बताते हैं कि एक पेड़ पर 50 से 60 आम लगते हैं, लेकिन आखिर तक सिर्फ 25 से 30 आम ही पेड़ पर रह जाते हैं.
हर साल सिर्फ 100 आमों की पैदावार: इस आम के उत्पादक रवीन्द्र गोयल बताते हैं कि हर साल 80 से 100 नूरजहां आम हो जाते हैं. इस आम को खरीदने के लिए मुंबई, दिल्ली, इंदौर आदि कई स्थानों से डिमांड आती है. हालांकि बेहद खास इस आम को खाने से किसान परहेज करते हैं. वे कहते हैं कि वह सिर्फ वही आम खाते हैं, जिसका कुछ हिस्सा खराब हो जाता है और उसे बेचा नहीं जा सकता.
क्यों पड़ा नूरजहां नाम: बताया जाता है कि इस आम की सबसे पहले पैदावार अफगानिस्तान में हुई थी. 1577 से 1645 के दौरान वहां नूरजहां रानी थी, जिनके नाम पर इस आम का नामकरण हुआ था, क्योंकि उन्हें यह आम बेहद पसंद था. बाद में इस आम के कुछ पौधों को मध्यप्रदेश के अलीराजपुर में लाया गया था.