नई दिल्ली: वैवाहिक रेप को जब तक अपराध नहीं करार दिया जाएगा, तब तक इसे बढ़ावा मिलता रहेगा. दिल्ली हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति की ओर से वकील करुणा नंदी ने कहा कि शादी सहमति को नजरअंदाज करने का लाइसेंस नहीं देता है. इस मामले पर अगली सुनवाई 1 फरवरी को होगी.
सुनवाई के दौरान करुणा नंदी ने कहा कि जब तक वैवाहिक रेप को अपराध करार नहीं दिया जाता, इसे बढ़ावा मिलता ही रहेगा. उन्होंने कहा कि ये मामला एक शादीशुदा महिला की ओर से बलपूर्वक यौन संबंध बनाने को नहीं करने के नैतिक अधिकार से जुड़ा हुआ है. वैवाहिक रेप किसी पत्नी को ना कहने के अधिकार को मान्यता देने की है. नंदी ने कहा कि संविधान के तहत महिलाओं को मताधिकार मिला है. महिलाओं को पूजा करने का अधिकार, बिना यौन प्रताड़ना के काम करने का अधिकार और तीन तलाक के खिलाफ अधिकार मिले हैं.
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पूछा कि क्या धारा 375 के अपवाद को हटा देना एक नए अपराध को जन्म नहीं देगा. जस्टिस राजीव शकधर ने कहा जोसेफ शाइन और शायरा बानो के फैसले में कहा गया है कि कोर्ट एक नए अपराध को जन्म नहीं दे सकता है. कोर्ट ने कहा कि जहां एक पक्ष ये कह रहा है कि धारा 375 का अपवाद मनमाना है, जबकि दूसरा पक्ष कह रहा है कि कोर्ट को इसमें दखल नहीं देना चाहिए.
28 जनवरी को हाईकोर्ट को ये बताया गया कि इस मामले में दलील रखने वाले वकीलों को आलोचना झेलनी पड़ रही है. वकील जे साईं दीपक और करुणा नंदी ने ये बातें कहीं. 27 जनवरी को सांई दीपक ने कहा था कि इस मामले को कोर्ट के क्षेत्राधिकार से बाहर रखा जाना चाहिए. उन्होंने कहा था कि मेरा ये साफ मानना है कि जब विधायिका कोई फैसला नहीं ले रही है, तब न्यायपालिका को अपनी राय रखनी चाहिए, लेकिन जब मामला नीतिगत हो तो कोर्ट को फैसला नहीं करना चाहिए. अगर न्यायपालिका अपनी सीमा को पार करती है तो ये काफी खतरनाक परंपरा साबित होगी. तब कोर्ट ने गुजरात हाईकोर्ट की ओर से इसी मसले पर जारी किए गए नोटिस का जिक्र करते हुए कहा था कि कोर्ट को किसी न किसी तरीके से हल निकालना ही होगा. हमारे लिए हर मसला महत्वपूर्ण है.
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बता दें कि इसके पहले केंद्र सरकार ने वैवाहिक रेप को अपराध करार देने का विरोध किया था. 29 अगस्त 2018 को केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट में दाखिल हलफनामे में कहा था कि वैवाहिक रेप को अपराध की श्रेणी में शामिल करने से शादी जैसी संस्था अस्थिर हो जाएगी और ये पतियों को प्रताड़ित करने का एक जरिया बन जाएगा. केंद्र ने कहा था कि पति और पत्नी के बीच यौन संबंधों के प्रमाण बहुत दिनों तक नहीं रह पाते.
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याचिका एनजीओ आर आरईटी फाउंडेशन, अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति समेत दो और लोगों ने दायर की है. याचिका में भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद को निरस्त करने की मांग की गई है. याचिका में कहा गया है कि यह अपवाद विवाहित महिलाओं के साथ उनके पतियों की ओर से की गई यौन प्रताड़ना की खुली छूट देता है.