नई दिल्ली: विशेषज्ञों का मानना है कि हिंद और प्रशांत महासागरों में चीन के बढ़ते प्रभाव और आक्रामकता की वजह से हिंद-प्रशांत के मामले में भारत और अमेरिका के बीच रक्षा साझेदारी बढ़ रही है. इस बारे में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के पूर्व सदस्य और सेना के उपप्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) सुब्रत साहा ने कहा कि भारत-अमेरिका रक्षा साझेदारी का केंद्र बिंदु हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति और सुरक्षा बनाए रखना है. उन्होंने कोलकाता में अमेरिकी वाणिज्य दूतावास के सहयोग से सीयूटीएस इंटरनेशनल थिंक टैंक द्वारा आयोजित रक्षा समाचार कॉन्क्लेव परियोजना के तहत एक कार्यशाला में उक्त बातें कहीं.
बता दें कि इंडो-पैसिफिक एक ऐसा क्षेत्र है जो जापान के पूर्वी तट से लेकर अफ्रीका के पश्चिमी तट तक फैला हुआ है. वहीं 21वीं सदी में एशिया के नए विकास क्षेत्रों में अमेरिका की बढ़ती भागीदारी के साथ 2013 में भारत-अमेरिका के बीच रणनीतिक वार्ता के दौरान इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक कॉरिडोर (आईपीईसी) का विचार सामने आया था. इस दौरान तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी ने विकास और निवेश के साथ-साथ दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया की अर्थव्यवस्थाओं के बीच व्यापार की संभावनाओं को बदलने में इंडो-पैसिफिक आर्थिक गलियारे की क्षमता का उल्लेख किया था.
हालांकि भारत और अमेरिका वैश्विक रणनीतिक साझेदारी को साझा करते हैं. वहीं पिछले कुछ वर्षों में भारत को अमेरिका के एक प्रमुख रक्षा भागीदार के रूप में नामित किया गया है. इसी कड़ी में रक्षा संबंधी समझौतों पर हस्ताक्षर किए जाने के साथ ही भारत ने प्रशांत क्षेत्र में संयुक्त सैन्य अभ्यासों के साथ अमेरिका के साथ सुरक्षा साझेदारी को आगे बढ़ाया है. इस संबंध में साहा ने कहा कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग शक्ति को बढ़ाने के साथ ही दक्षिण चीन सागर और पूर्वी एशियाई द्वीप राष्ट्र ताइवान के प्रति चीन की आक्रामकता के अलावा ऑस्ट्रेलिया पर आर्थिक दबाव बनाने के साथ ही भारत के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर विस्तारवाद की वजह से नई दिल्ली और वाशिंगटन रक्षा संबंधों को आगे बढ़ा रहे हैं.
वहीं कलिंगा इंस्टीट्यूट ऑफ इंडो-पैसिफिक स्टडीज के संस्थापक और मानद अध्यक्ष चिंतामणि महापात्र ने कहा कि अमेरिका आज दुनिया में एकमात्र महाशक्ति है. उन्होंने कहा कि भारत की पहले की विदेश नीति गुटनिरपेक्ष थी जो काफी हद तक अमेरिका के खिलाफ थी. लेकिन सोवियत संघ के विघटन से छह महीने पूर्व जून 1991 में भारत के आर्थिक खुलेपन की वजह से अमेरिका को महत्वपूर्ण मैसेज गया था कि वह भारत में निवेश कर सकता है.
उन्होंने कहा कि भारत और अमेरिका के लिए स्वतंत्र और समृद्ध इंडो-पैसिफिक के लिए एक साथ खड़ा होना महत्वपूर्ण है. महापात्रा के मुताबिक, सदाबहार दोस्त पाकिस्तान और चीन के बीच गहरे संबंधों के कारण यह जरूरी है कि भारत और अमेरिका साथ रहें. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान आज दुनिया का सबसे खतरनाक देश है.वह चीन से भी अधिक खतरनाक है क्योंकि कट्टरपंथी, आतंकवादी और पाकिस्तानी सेना सभी एक साथ आ गए हैं. उन्होंने कहा कि कट्टरपंथियों ने पाकिस्तानी सेना में कर्नल स्तर तक घुसपैठ कर ली है, इसलिए भारत और अमेरिका को मिलकर काम करना चाहिए. पूर्व रक्षा सचिव और छत्तीसगढ़ के पूर्व राज्यपाल शेखर दत्त के मुताबिक चीन से मुकाबला करने के लिए भारत और अमेरिका दोनों ही रक्षा सहयोग में शामिल होने की इच्छा रखते हैं. उन्होंने कहा कि भारत और अमेरिका दो देश हो सकते हैं लेकिन एक भारत और एक अमेरिका 11 भी हो सकते हैं. दत्त ने कहा कि दोनों देशों को अवसरों का लाभ उठाते हुए मिलकर काम करने चाहिए.
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