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आज पूरा देश मना रहा है तुलसी पूजन दिवस, बदरीनाथ धाम में फूलों की जगह हरिप्रिया से होती है पूजा - तुलसी बनी रोजगार का साधन

Tulsi Puja Day 2023 आज पूरी दुनिया क्रिसमस मना रही है. वहीं हमारे देश भारत में क्रिसमस के साथ ही तुलसी पूजन दिवस मनाया जा रहा है. सनातन धर्म में तुलसी को लक्ष्मी माता का प्रतीक माना जाता है. यही कारण है कि हर हिंदू के घर में तुलसी का पौधा जरूर होता है. आज हम आपको बताते हैं देश के चार धामों में से एक बदरीनाथ धाम की पूजा में क्या है तुलसी का महत्व.

Tulsi Puja Day 2023
तुलसी पूजन दिवस
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Dec 25, 2023, 8:57 AM IST

उत्तराखंड: हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार जब सती बिंद्रा से श्रापित होकर नारायण शालिग्राम यानी पाषाण बन गए तो तब नारायण ने धर्मध्वज की पुत्री बिंद्रा को वचन दिया था कि वे कलियुग में उसे तुलसी के रूप में स्वीकारेंगे. तब से शालिग्राम और तुलसी की पूजा कर भक्त नारायण को खुश करते हैं. यह परंपरा सदियों से उत्तराखंड में स्थित बदरीनाथ धाम में चली आ रही है.

बदरी विशाल के लिए पूजनीय है तुलसी: आपने विभिन्न मंदिरों में पूजा के लिए फूल अर्पित करते हुए देखा होगा. जब आप चारधाम यात्रा के दौरान उत्तराखंड आएंगे और बदरीनाथ धाम में दर्शन करने जाएंगे तो आपको यहां का नजारा अलग ही दिखेगा. बदरीनाथ धाम के बारे में ये मान्यता है कि नारायण भगवान यहां फूल से नहीं बल्कि तुलसी पत्र से खुश होते हैं. यही कारण है कि भू वैकुंठ माने जाने वाले बदरीनाथ धाम में तुलसी से पूजा की जाती है. इस तुलसी को बदरी तुलसी कहते हैं.

कपाट बंद होते समय होता है फूलों से श्रृंगार: 6 महीने की चारधाम यात्रा के बाद जब बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होते हैं तो सिर्फ तभी यहां फूलों से श्रृंगार होता है. जब बदरीनाथ धाम के कपाट खुलते हैं तो तब से लेकर पूरे 6 महीने पद्मासन मुद्रा में विराजमान भगवान नारायण की पूजा तुलसी पत्र से ही की जाती है. पूजा के साथ ही भगवान का श्रृंगार भी तुलसी पत्रों से किया जाता है. बदरीनाथ धाम में यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. मंदिर के अंदर तुलसी की महक मन को बहुत सुकून देती है.

बदरीनाथ में है तुलसी वन: अब आप सोच रहे होंगे कि इतनी ज्यादा मात्रा में तुलसी पत्र कहां से आते होंगे. दरअसल बदरीनाथ दाम तुलसी वन से घिरा है. धाम के चारों ओर तुलसी वन स्थापित हैं. बदरीनाथ के बामणी गांव में तो तुलसी का संरक्षित वन ही है. इसके साथ ही बदरीश एकता वन और भारत के प्रथम गांव माणा के इलाके में स्थित वन में तुलसी ही तुलसी है.

तुलसी बनी रोजगार का साधन: इन गांवों के ग्रामीण भगवान बदरीनाथ की पूजा के लिए तुलसी पत्र लेकर आते हैं. इससे उन्हें चारधाम यात्रा के 6 महीने रोजगार की प्राप्ति होती है. भगवान बदरी विशाल के लिए तुलसी पत्र देने के साथ ही गांव के लोग तुलसी की माला बनाकर विक्रय करते हैं. बदरीनाथ धाम के दर्शन को आने वाले श्रद्धालु तुलसी की माला को खरीदते हैं.

औषधि भी है तुलसी: उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में पाई जाने वाली तुलसी कई प्रकार की होती हैं. बदरीनाथ धाम में पाई जाने वाली तुलसी को बदरी तुलसी कहते हैं. इसकी विशेषता ये है कि ये शीतल जलवायु में उगती है. इसकी खुशबू कई महीने तक बनी रहती है. तुलसी में अद्भुत औषधीय गुण भी होते हैं. तुलसी से दिल से जुड़ी और कैंसर दूर करने वाली दवाइयां बनती हैं. सर्दी जुकाम में तुलसी का काढ़ा तो हर भारतीय घर में प्रचलित है. कुछ समय पहले एफआरआई के वैज्ञानिकों ने बदरी तुलसी पर रिसर्च की तो उन्होंने पाया कि इसकी कार्बन सोखने की क्षमता 12 प्रतिशत ज्यादा है. तापमान बढ़ने पर इसकी क्षमता भी बढ़ जाती है. बदरी तुलसी के पौधे पांच से छह फीट तक ऊंचे होते हैं.

आज है तुलसी पूजन दिवस: आज तुलसी पूजन दिवस है. आज नई तुलसी लगाई जाती है. आज हिंदुओं के घरों में तुलसी की पूजा की जाती है. ऐसी मान्यता है कि तुलसी पूजन से सुख, समृद्धि और खुशहाली आती है. भगवान विष्णु को हरि भी कहते हैं. इसलिए तुलसी का नाम हरिप्रिया भी है.
ये भी पढ़ें: इस साल बदरीनाथ-केदारनाथ में 37 लाख 91 हजार से ज्यादा श्रद्धालुओं ने किए दर्शन, मंदिर समिति की आय पहुंची 70 करोड़

उत्तराखंड: हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार जब सती बिंद्रा से श्रापित होकर नारायण शालिग्राम यानी पाषाण बन गए तो तब नारायण ने धर्मध्वज की पुत्री बिंद्रा को वचन दिया था कि वे कलियुग में उसे तुलसी के रूप में स्वीकारेंगे. तब से शालिग्राम और तुलसी की पूजा कर भक्त नारायण को खुश करते हैं. यह परंपरा सदियों से उत्तराखंड में स्थित बदरीनाथ धाम में चली आ रही है.

बदरी विशाल के लिए पूजनीय है तुलसी: आपने विभिन्न मंदिरों में पूजा के लिए फूल अर्पित करते हुए देखा होगा. जब आप चारधाम यात्रा के दौरान उत्तराखंड आएंगे और बदरीनाथ धाम में दर्शन करने जाएंगे तो आपको यहां का नजारा अलग ही दिखेगा. बदरीनाथ धाम के बारे में ये मान्यता है कि नारायण भगवान यहां फूल से नहीं बल्कि तुलसी पत्र से खुश होते हैं. यही कारण है कि भू वैकुंठ माने जाने वाले बदरीनाथ धाम में तुलसी से पूजा की जाती है. इस तुलसी को बदरी तुलसी कहते हैं.

कपाट बंद होते समय होता है फूलों से श्रृंगार: 6 महीने की चारधाम यात्रा के बाद जब बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होते हैं तो सिर्फ तभी यहां फूलों से श्रृंगार होता है. जब बदरीनाथ धाम के कपाट खुलते हैं तो तब से लेकर पूरे 6 महीने पद्मासन मुद्रा में विराजमान भगवान नारायण की पूजा तुलसी पत्र से ही की जाती है. पूजा के साथ ही भगवान का श्रृंगार भी तुलसी पत्रों से किया जाता है. बदरीनाथ धाम में यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. मंदिर के अंदर तुलसी की महक मन को बहुत सुकून देती है.

बदरीनाथ में है तुलसी वन: अब आप सोच रहे होंगे कि इतनी ज्यादा मात्रा में तुलसी पत्र कहां से आते होंगे. दरअसल बदरीनाथ दाम तुलसी वन से घिरा है. धाम के चारों ओर तुलसी वन स्थापित हैं. बदरीनाथ के बामणी गांव में तो तुलसी का संरक्षित वन ही है. इसके साथ ही बदरीश एकता वन और भारत के प्रथम गांव माणा के इलाके में स्थित वन में तुलसी ही तुलसी है.

तुलसी बनी रोजगार का साधन: इन गांवों के ग्रामीण भगवान बदरीनाथ की पूजा के लिए तुलसी पत्र लेकर आते हैं. इससे उन्हें चारधाम यात्रा के 6 महीने रोजगार की प्राप्ति होती है. भगवान बदरी विशाल के लिए तुलसी पत्र देने के साथ ही गांव के लोग तुलसी की माला बनाकर विक्रय करते हैं. बदरीनाथ धाम के दर्शन को आने वाले श्रद्धालु तुलसी की माला को खरीदते हैं.

औषधि भी है तुलसी: उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में पाई जाने वाली तुलसी कई प्रकार की होती हैं. बदरीनाथ धाम में पाई जाने वाली तुलसी को बदरी तुलसी कहते हैं. इसकी विशेषता ये है कि ये शीतल जलवायु में उगती है. इसकी खुशबू कई महीने तक बनी रहती है. तुलसी में अद्भुत औषधीय गुण भी होते हैं. तुलसी से दिल से जुड़ी और कैंसर दूर करने वाली दवाइयां बनती हैं. सर्दी जुकाम में तुलसी का काढ़ा तो हर भारतीय घर में प्रचलित है. कुछ समय पहले एफआरआई के वैज्ञानिकों ने बदरी तुलसी पर रिसर्च की तो उन्होंने पाया कि इसकी कार्बन सोखने की क्षमता 12 प्रतिशत ज्यादा है. तापमान बढ़ने पर इसकी क्षमता भी बढ़ जाती है. बदरी तुलसी के पौधे पांच से छह फीट तक ऊंचे होते हैं.

आज है तुलसी पूजन दिवस: आज तुलसी पूजन दिवस है. आज नई तुलसी लगाई जाती है. आज हिंदुओं के घरों में तुलसी की पूजा की जाती है. ऐसी मान्यता है कि तुलसी पूजन से सुख, समृद्धि और खुशहाली आती है. भगवान विष्णु को हरि भी कहते हैं. इसलिए तुलसी का नाम हरिप्रिया भी है.
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