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बदल रहा कश्मीर, DDC में जीतने वाली फरवा को राजनीति से ज्यादा विकास की चिंता

जम्मू-कश्मीर बदल रहा है. डीडीसी में जीत हासिल करने वाली फरवा इब्राहिम कहती हैं कि उनके लिए राजनीतिक से ज्यादा मायने विकास रखता है. ईटीवी भारत से विशेष बातचीत में उन्होंने कहा कि वह अपने क्षेत्र के विकास और महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करेंगी.

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Published : Dec 25, 2020, 5:42 PM IST

Updated : Dec 25, 2020, 9:23 PM IST

farwa
फरवा

बांदीपोरा : कश्मीर बदल रहा है. जम्मू और कश्मीर में हाल ही में संपन्न जिला विकास परिषद (डीडीसी) के चुनावों और परिणाम में यह नजर आ रहा है. आम कश्मीरियों ने पहली बार चुनाव लड़ा और लोकतंत्र की ताकत को समझा. इस चुनाव की सबसे खास बात यह रही कि चुनाव में बड़ी संख्या में महिलाओं ने मतदान लिया. काफी संख्या में महिलाओं ने चुनाव भी लड़ा और जीत कर आईं. इन्हीं में से एक हैं फरवा इब्राहिम. फरवा राजनीति की जगह विकास की बातें करतीं हैं.

देखें क्या कहतीं हैं फरवा

स्नातक की पढ़ाई कर रही फरवा इब्राहिम

डीडीसी चुनाव में सरकार ने कुछ सीटों को महिलाओं के लिए आरक्षित कर रखा था. उत्तरी कश्मीर के बांदीपोरा जिले के दूर-दराज के इलाके से ताल्लुक रखने वाली 23 साल की फरवा इब्राहिम डीडीसी चुनाव में विजेता बनीं हैं. स्नातक की पढ़ाई कर रही फरवा ने अपने प्रतिद्वंद्वी को 1971 मतों से हराया. जम्मू-कश्मीर में सबसे कम उम्र की डीडीसी सदस्य फरवा एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ीं. बांदीपोरा के सोनवारी क्षेत्र में स्थित नाउगाम गांव की स्थिति ने फरवा को स्थानीय चुनाव लड़ने के लिए प्रेरित किया. फरवा नाउगाम गांव की ही रहने वाली हैं. शुरुआत में अपनी शिक्षा के कारण चुनाव लड़ने से अनिच्छुक फरवा ने गांव के बुजुर्गों से बहुत विचार-विमर्श के बाद महिलाओं के जीवन को बेहतर बनाने के लिए चुनाव लड़ा.

बेटे और बेटियों में फर्क नहीं करती सरकार

ईटीवी भारत से फरवा ने कहा कि हमारे समाज में महिलाओं के प्रति विरोधी मानसिकता है और उसके खिलाफ काम करना मेरा लक्ष्य है. मैं अपने क्षेत्र के विकास और महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करूंगी. लोग अपनी बेटियों को स्कूल-काॅलेज नहीं भेजते. सरकार बेटे और बेटियों में फर्क नहीं करती. मैं घर-घर जाकर लोगों को समझाऊंगी. मैं अपने गांव के मुद्दों का समाधान करने की कोशिश करूंगी. हमारे गांव में आज भी मूलभूत सुविधाओं का अभाव है और यह महिलाओं को सबसे अधिक प्रभावित करता है. यहां तक कि पानी जैसी बुनियादी आवश्यकता के लिए भी उन्हें मीलों पैदल चलना पड़ता है.

जीत पर पूरा गांव खुश

फरवा की मां ने कहा कि वह इतनी कम उम्र में अपनी बेटी की सफलता पर बहुत खुश हैं. उन्हें आशा है कि वह गरीबों और वंचितों के उत्थान के लिए काम करेगी. उसे समाज के किसी भी वर्ग के प्रति पक्षपात नहीं करना चाहिए और सभी के लिए काम करना चाहिए. फरवा का पूरा गांव उसकी जीत पर खुश है कि वह कश्मीर के इस हिस्से के विकास के लिए काम करेगी.

बांदीपोरा : कश्मीर बदल रहा है. जम्मू और कश्मीर में हाल ही में संपन्न जिला विकास परिषद (डीडीसी) के चुनावों और परिणाम में यह नजर आ रहा है. आम कश्मीरियों ने पहली बार चुनाव लड़ा और लोकतंत्र की ताकत को समझा. इस चुनाव की सबसे खास बात यह रही कि चुनाव में बड़ी संख्या में महिलाओं ने मतदान लिया. काफी संख्या में महिलाओं ने चुनाव भी लड़ा और जीत कर आईं. इन्हीं में से एक हैं फरवा इब्राहिम. फरवा राजनीति की जगह विकास की बातें करतीं हैं.

देखें क्या कहतीं हैं फरवा

स्नातक की पढ़ाई कर रही फरवा इब्राहिम

डीडीसी चुनाव में सरकार ने कुछ सीटों को महिलाओं के लिए आरक्षित कर रखा था. उत्तरी कश्मीर के बांदीपोरा जिले के दूर-दराज के इलाके से ताल्लुक रखने वाली 23 साल की फरवा इब्राहिम डीडीसी चुनाव में विजेता बनीं हैं. स्नातक की पढ़ाई कर रही फरवा ने अपने प्रतिद्वंद्वी को 1971 मतों से हराया. जम्मू-कश्मीर में सबसे कम उम्र की डीडीसी सदस्य फरवा एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ीं. बांदीपोरा के सोनवारी क्षेत्र में स्थित नाउगाम गांव की स्थिति ने फरवा को स्थानीय चुनाव लड़ने के लिए प्रेरित किया. फरवा नाउगाम गांव की ही रहने वाली हैं. शुरुआत में अपनी शिक्षा के कारण चुनाव लड़ने से अनिच्छुक फरवा ने गांव के बुजुर्गों से बहुत विचार-विमर्श के बाद महिलाओं के जीवन को बेहतर बनाने के लिए चुनाव लड़ा.

बेटे और बेटियों में फर्क नहीं करती सरकार

ईटीवी भारत से फरवा ने कहा कि हमारे समाज में महिलाओं के प्रति विरोधी मानसिकता है और उसके खिलाफ काम करना मेरा लक्ष्य है. मैं अपने क्षेत्र के विकास और महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करूंगी. लोग अपनी बेटियों को स्कूल-काॅलेज नहीं भेजते. सरकार बेटे और बेटियों में फर्क नहीं करती. मैं घर-घर जाकर लोगों को समझाऊंगी. मैं अपने गांव के मुद्दों का समाधान करने की कोशिश करूंगी. हमारे गांव में आज भी मूलभूत सुविधाओं का अभाव है और यह महिलाओं को सबसे अधिक प्रभावित करता है. यहां तक कि पानी जैसी बुनियादी आवश्यकता के लिए भी उन्हें मीलों पैदल चलना पड़ता है.

जीत पर पूरा गांव खुश

फरवा की मां ने कहा कि वह इतनी कम उम्र में अपनी बेटी की सफलता पर बहुत खुश हैं. उन्हें आशा है कि वह गरीबों और वंचितों के उत्थान के लिए काम करेगी. उसे समाज के किसी भी वर्ग के प्रति पक्षपात नहीं करना चाहिए और सभी के लिए काम करना चाहिए. फरवा का पूरा गांव उसकी जीत पर खुश है कि वह कश्मीर के इस हिस्से के विकास के लिए काम करेगी.

Last Updated : Dec 25, 2020, 9:23 PM IST
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