ETV Bharat / bharat

मजदूरी करने वाले चलपथी के हौसले ने बच्चों में भरा उत्साह, देखें रिपोर्ट

आंध्र प्रदेश के कडपा जिले के तुमककोंडा गांव के रहने वाले चलपथी ने एक पुल का निर्माण कराया, ताकि बच्चों के लिए निर्बाध रूप से स्कूली शिक्षा जारी रखना आसान हो जाए.

chalpathi
chalpathi
author img

By

Published : Mar 17, 2021, 9:37 PM IST

अमरावती : आंध्र प्रदेश के कडपा जिले के रहने वाले चलपथी ने कभी स्कूल में कदम तक नहीं रखा है, और न ही वह शब्दों को ठीक से उच्चारण करने में सक्षम हैं. लेकिन उन्होंने अपने गांव के दूसरे बच्चों को अपने जैसा नहीं बनने दिया.

दरअसल, कडपा जिले के तुमककोंडा गांव के बच्चों को नजदीकी स्कूल जाने के लिए तीन किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ता है. यह सड़क जंगल से सटे नहर से होकर जाती है. विशेष रूप से, जब उस क्षेत्र में बारिश होती है, तो नहर में पानी का स्तर लगभग किसी व्यक्ति की गर्दन की गहराई तक होता है.

चलपथी ने किया पुल का निर्माण

इस वजह से बच्चों का अपने स्कूलों में जाना मुश्किल हो जाता है. बरसात के मौसम में, यह नहर पानी के साथ बह जाती थी, जिसके कारण छात्रों का स्कूल जाना भी मुश्किल हो जाता था. उन्हें इस मौसम में अपनी पढ़ाई रोकनी पड़ती थी. जिस कारण, बच्चों का शैक्षणिक वर्ष बिना स्कूल जाए ही बीत जाता थी. नहर पार करते समय इन बच्चों के कपड़े और जूते भी हर दिन गीले हो जाते थे.

बच्चों की इस समस्या को देख कर चलापथी से रहा नहीं गया. उन्होंने निर्णय लिया कि कोई समाधान खोजा जाना चाहिए, ताकि बच्चों को इस परेशानी के कारण अपनी पढ़ाई से पीछे न हटना पड़े. वो चाहते हैं कि गांव के सभी बच्चे, जीवन में अधिक से अधिक ऊंचाइयों पर पहुंचें.

इसके लिए उन्होंने उक्त नहर पर एक पुल का निर्माण कराया, ताकि बच्चों के लिए निर्बाध रूप से स्कूली शिक्षा जारी रखना आसान हो जाए.

पढ़ें : सपनों के आड़े नहीं आती कोई बाधा, व्हीलचेयर पर स्टंट करते हैं रईस

कौन हैं चलपथी?
मजदूरी करने वाले चलपथी की तीन बेटियां हैं. चलपथी की बेटियां भी उन छात्रों में शामिल हैं, जो अपनी शिक्षा के लिए पड़ोसी गांव जाते हैं. अपने बच्चों को गीले कपड़ों में घर आते देख चलपथी काफी मायूस होते थे.

ये सब देख कर वह जंगल में चले गए, और वहां से जलाऊ लकड़ी लाकर 50 दिनों में नहर पर पुल का निर्माण किया. उन्होंने खेतों के चारों ओर पड़े बेकार नारियल के पेड़ के ढेर को खंभों में बदल दिया, जिन पर उन्होंने लगभग 20 फीट लंबा एक पुल बनाया था. परिणामस्वरूप, उनकी बेटियों के साथ गांव के छात्रों को काफी हद तक कठिनाइयों से छुटकारा मिला.

पुल का निर्माण होने के बाद छात्रों में काफी उत्साह नजर आ रहा है. मजदूरी के साथ चलपथी खेती का काम भी करते हैं. इतना ही नहीं चलपथी एक कलाकार भी हैं.

पढ़ें - मास्क नहीं पहनने पर एलायंस एयर ने चार यात्रियों को नो-फ्लाई लिस्ट में डाला

चलपथी का कहना है, 'मेरी इच्छा है कि सरकार आगे आए और नहर के ऊपर एक स्थायी पुल का निर्माण करवाए, मैं रोजाना बच्चों की दुर्दशा देख रहा था. मैंने एक छोटा सा पुल बनाया, क्योंकि मैं उनकी पीड़ा नहीं देख सकता था.'

अमरावती : आंध्र प्रदेश के कडपा जिले के रहने वाले चलपथी ने कभी स्कूल में कदम तक नहीं रखा है, और न ही वह शब्दों को ठीक से उच्चारण करने में सक्षम हैं. लेकिन उन्होंने अपने गांव के दूसरे बच्चों को अपने जैसा नहीं बनने दिया.

दरअसल, कडपा जिले के तुमककोंडा गांव के बच्चों को नजदीकी स्कूल जाने के लिए तीन किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ता है. यह सड़क जंगल से सटे नहर से होकर जाती है. विशेष रूप से, जब उस क्षेत्र में बारिश होती है, तो नहर में पानी का स्तर लगभग किसी व्यक्ति की गर्दन की गहराई तक होता है.

चलपथी ने किया पुल का निर्माण

इस वजह से बच्चों का अपने स्कूलों में जाना मुश्किल हो जाता है. बरसात के मौसम में, यह नहर पानी के साथ बह जाती थी, जिसके कारण छात्रों का स्कूल जाना भी मुश्किल हो जाता था. उन्हें इस मौसम में अपनी पढ़ाई रोकनी पड़ती थी. जिस कारण, बच्चों का शैक्षणिक वर्ष बिना स्कूल जाए ही बीत जाता थी. नहर पार करते समय इन बच्चों के कपड़े और जूते भी हर दिन गीले हो जाते थे.

बच्चों की इस समस्या को देख कर चलापथी से रहा नहीं गया. उन्होंने निर्णय लिया कि कोई समाधान खोजा जाना चाहिए, ताकि बच्चों को इस परेशानी के कारण अपनी पढ़ाई से पीछे न हटना पड़े. वो चाहते हैं कि गांव के सभी बच्चे, जीवन में अधिक से अधिक ऊंचाइयों पर पहुंचें.

इसके लिए उन्होंने उक्त नहर पर एक पुल का निर्माण कराया, ताकि बच्चों के लिए निर्बाध रूप से स्कूली शिक्षा जारी रखना आसान हो जाए.

पढ़ें : सपनों के आड़े नहीं आती कोई बाधा, व्हीलचेयर पर स्टंट करते हैं रईस

कौन हैं चलपथी?
मजदूरी करने वाले चलपथी की तीन बेटियां हैं. चलपथी की बेटियां भी उन छात्रों में शामिल हैं, जो अपनी शिक्षा के लिए पड़ोसी गांव जाते हैं. अपने बच्चों को गीले कपड़ों में घर आते देख चलपथी काफी मायूस होते थे.

ये सब देख कर वह जंगल में चले गए, और वहां से जलाऊ लकड़ी लाकर 50 दिनों में नहर पर पुल का निर्माण किया. उन्होंने खेतों के चारों ओर पड़े बेकार नारियल के पेड़ के ढेर को खंभों में बदल दिया, जिन पर उन्होंने लगभग 20 फीट लंबा एक पुल बनाया था. परिणामस्वरूप, उनकी बेटियों के साथ गांव के छात्रों को काफी हद तक कठिनाइयों से छुटकारा मिला.

पुल का निर्माण होने के बाद छात्रों में काफी उत्साह नजर आ रहा है. मजदूरी के साथ चलपथी खेती का काम भी करते हैं. इतना ही नहीं चलपथी एक कलाकार भी हैं.

पढ़ें - मास्क नहीं पहनने पर एलायंस एयर ने चार यात्रियों को नो-फ्लाई लिस्ट में डाला

चलपथी का कहना है, 'मेरी इच्छा है कि सरकार आगे आए और नहर के ऊपर एक स्थायी पुल का निर्माण करवाए, मैं रोजाना बच्चों की दुर्दशा देख रहा था. मैंने एक छोटा सा पुल बनाया, क्योंकि मैं उनकी पीड़ा नहीं देख सकता था.'

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.