नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश का ब्राह्मण चेहरा और मनमोहन सिंह सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे जितिन प्रसाद (jitin prasada) ने भाजपा का दामन थाम लिया. जितिन कांग्रेस के 'जी 23' नेताओं में भी शामिल थे जिन्होंने पिछले साल कांग्रेस में सक्रिय नेतृत्व और संगठनात्मक चुनाव की मांग को लेकर पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखा था.
राहुल ब्रिगेड के करीबी नेताओं में से ज्योतिरादित्य सिंधिया, प्रियंका चतुर्वेदी (शिवसेना), टॉम वडक्कन, रीता बहुगुणा जोशी, हिमंत बिस्वा सरमा, पेमा खांडू, एन बिरेन सिंह सहित लगभग 30 ऐसे सांसद और विधायक हैं जिन्होंने पिछले 7 साल में कांग्रेस का साथ छोड़ा है. इनमें से कई ने भाजपा तो कुछ ने दूसरी पार्टियों का दामन थामा. ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि क्या राहुल गांधी का साम्राज्य पार्टी में अंदरूनी तौर पर भरभरा कर गिर रहा है ?
यूपी में जितिन के परिवार का है राजनीतिक रसूख
एक के बाद एक कई युवा नेता जिनके पिता भी कभी राहुल गांधी और उनके पिता राजीव गांधी के खास और करीबी लोगों में शुमार थे, एक के बाद एक पार्टी से अपना दामन छुड़ाते जा रहे हैं. इन्हीं में से एक नाम अब उत्तर प्रदेश के नेता जितिन प्रसाद का भी जुड़ गया है, जिन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया. हालांकि जितिन पिछले दो लोक सभा चुनाव जीत नहीं पाए थे, बावजूद इसके उत्तर प्रदेश में उनके परिवार का एक राजनीतिक रसूख है.
जी23 नेताओं में शामिल थे, हुई थी कार्रवाई
पिछले साल 23 नेताओं ने पार्टी में संगठन चुनाव की जरूरत पर सोनिया गांधी को पत्र लिखा था. इन नेताओं ने सक्रिय नेतृत्व की मांग की थी. इन नेताओं में जितिन प्रसाद भी थे. इसके लिए उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने जितिन प्रसाद के खिलाफ राज्य स्तर पर अनुशासनात्मक कार्रवाई भी की थी. तभी से चर्चा थी कि वह पार्टी छोड़ सकते हैं और अंततः 2022 के उत्तर प्रदेश चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश के कांग्रेस के युवा ब्राह्मण चेहरा ने भारतीय जनता पार्टी का साथ देना ज्यादा उचित समझा.
ब्राह्मण चेहरे की भरपाई या बंगाल की राह पर भाजपा
जितिन को पार्टी में शामिल करने को दो तरह से देखा जा सकता है. पश्चिम बंगाल चुनाव से 2 साल पहले से भाजपा ने लगातार दूसरी पार्टी के नेताओं को शामिल करना शुरू कर दिया था, इससे बंगाल में पार्टी का कैडर खासा नाराज रहा, जिसका असर चुनाव परिणाम में भी दिखा. क्या भाजपा ने एक बार फिर उत्तर प्रदेश चुनाव में जितिन प्रसाद के साथ इसी तरह के प्रयोग की शुरुआत की है, या फिर यह मात्र उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण चेहरा की कमी को देखते हुए भरपाई की गई है ?
क्या ब्राह्मणों को मनाने की है कवायद?
हाल के कुछ दिनों से भाजपा ने केंद्र में प्रधानमंत्री कार्यालय में पूर्व अधिकारी और पार्टी के एमएलसी बनाए गए एके शर्मा जो ब्राह्मण चेहरा हैं उन्हें भी पार्टी में राज्य में काफी सक्रिय किया है. पूर्वांचल में कोविड-19 संबंधी टास्क फोर्स की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी गई है. ऐसे समय में दूसरे ब्राह्मण चेहरा जितिन प्रसाद को पार्टी में शामिल किया जाना क्या भाजपा को ऐसा लग रहा है कि उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण, पार्टी से दूर हो चुके हैं या फिर जरूरत है ब्राह्मणों को मनाने की ?
कांग्रेस से युवा नेता तोड़ रही भाजपा
वहीं, दूसरी तरफ एक के बाद एक राहुल ब्रिगेड के युवा नेताओं पर भाजपा निशाना साध रही है. इसमें काफी हद तक वह सफल भी रही है. ऐसा नहीं है कि अभी इस ब्रिगेड से नेताओं के आने पर विराम लग चुका है बल्कि कुछ और भी ऐसे नाम हैं जिन पर चर्चाओं का बाजार गर्म है इनमें सचिन पायलट और मिलिंद देवरा जैसे नाम भी शुमार हैं.
राष्ट्रवाद के मुद्दे पर राजनीति करने से क्षुब्ध हैं नेता : देश रतन निगम
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक देश रतन निगम से इस मुद्दे पर बात की. उन्होंने कहा कि जिस तरह की तुष्टीकरण की राजनीति कांग्रेस करती आई है और चुनाव से पहले मुद्दों को भड़काने की कोशिश करती है. चाहे वह किसानों का मुद्दा हो या शाहीन बाग का मुद्दा हो, जिस तरह का रोल इसमें कांग्रेस का रहा उससे कहीं ना कहीं अंदर से उनके नेता काफी क्षुब्ध हैं. आम जनता की राय से जुड़े नेताओं का कहना था कि ऐसा नहीं होना चाहिए क्योंकि यह राष्ट्रवाद के मुद्दे हैं और इस पर सबकी सहमति है लेकिन कुछ लोग ओछी राजनीति कर रहे हैं और ऐसी पार्टियां अलग-थलग हो रहीं हैं.
'जाति, धर्म, संप्रदाय से हटकर भाजपा को दिया था वोट'
देश रतन निगम ने कहा कि जितिन प्रसाद भी पार्टी के अंदर अलग-थलग ही थे और यदि देखा जाए तो उत्तर प्रदेश में कांग्रेस कोई बहुत ज्यादा मायने नहीं रखती. कुछ दिनों पहले राहुल गांधी ने अमेठी की बुराई भी की थी. एक तरह से कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश से उम्मीदें छोड़ ही दी हैं. प्रियंका गांधी का भी कोई खास प्रभाव नहीं दिखता है.
जहां तक बात ब्राह्मण चेहरे की है तो उत्तर प्रदेश के पिछले चुनाव में लोगों ने जाति, धर्म, संप्रदाय से अलग हटकर भाजपा को वोट दिया था. हर जाति संप्रदाय के लोगों ने वोट दिया था वरना इतनी सीटें नहीं आतीं.
'संतुलन बनाकर चलना होगा'
उन्होंने कहा कि अब राजनीति जात-पात से आगे निकल रही है. जो विकास के मुद्दे हैं, अभी जैसे राशन देने की घोषणा को प्रधानमंत्री ने आगे बढ़ाया. यह बातें आम जनता पर असर डालती हैं. चाहे वह आयुष्मान भारत हो या फिर किसानों के लिए सम्मान निधि योजना हो. उन्होंने कहा कि भाजपा को भी यह ध्यान में रखना चाहिए कि जो बाहर से नेता आ रहे हैं उन्हें संतुलित करके पार्टी को चलना होगा. यदि बाहर से आ रहे नेताओं को ज्यादा तरजीह देगी और जमीनी स्तर के कार्यकर्ता जो पार्टी से काफी सालों से जुड़े हैं उन्हें अनदेखा करती है तो इसका असर वितरीत पड़ सकता है. जैसा बंगाल में हुआ. हालांकि देश रतन निगम का कहना है कि कुछ नेता तो उधर से आएंगे और उन्हें आने देना भी चाहिए, ऐसा नहीं है कि कांग्रेस में सभी खराब हैं.
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उन्होंने कहा कि 'यहां यह बात भी कहना गलत नहीं होगा कि जितिन प्रसाद के पिता हों या फिर सचिन पायलट के पिता, दोनों ही बहुत मशहूर व्यक्तित्व थे और उन्हें तब की राजनीति में यह कहा जा रहा था कि यह भावी प्रधानमंत्री हो सकते हैं लेकिन दोनों की ही मृत्यु आकस्मिक हुई. यही नहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता की भी मृत्यु आकस्मिक हुई थी. तीनों ही कहीं ना कहीं प्रधानमंत्री पद के दावेदार थे.'
कांग्रेस नेतृत्व से भरोसा उठता जा रहा : गोपाल अग्रवाल
इस मुद्दे पर भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता गोपाल अग्रवाल ने 'ईटीवी भारत' से बातचीत में कहा कि कांग्रेस डूबती नैय्या है. आज एक और महत्वपूर्ण व्यक्ति ने कांग्रेस से किनारा कर लिया है. जितिन प्रसाद ने भाजपा का दामन थामा है और अपने आपको कांग्रेस से अलग कर लिया है.
उन्होंने कहा कि यदि देखें तो पिछले कुछ समय से एक के बाद एक प्रमुख व्यक्ति कांग्रेस छोड़कर जा रहे हैं. चाहे वह हेमंत विश्व सरमा हों या टॉम वडक्कन या फिर कई महत्वपूर्ण ऐसे नेता जिनमें ज्योतिरादित्य सिंधिया भी शामिल हैं. लोगों का कांग्रेस के नेतृत्व से भरोसा उठता जा रहा है. जो लोग कांग्रेस में हैं वह भी खुश नहीं हैं, इससे यह साफ है कि कांग्रेस में जो प्रजातांत्रिक मूल्य है उसका पूरी तरह से खात्मा हो चुका है.
'गिरता जा रहा कांग्रेस का ग्राफ'
भाजपा प्रवक्ता का कहना है कि कोई भी राजनीतिक पार्टी तभी प्रगति कर सकती है जब पार्टी में अंदरूनी सम्मान हो और अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं को सम्मानजनक स्थान दे. लेकिन कांग्रेस परिवार और गांधी परिवार से आगे कुछ नहीं सोच सकती. गांधी परिवार के हित को साधने में ही सभी नेता लगे हुए हैं और जो प्रजातांत्रिक मूल्यों में विश्वास रखते हैं या जो राजनीति को जनसेवा का माध्यम मानते हैं वह कांग्रेस का साथ छोड़ते जा रहे हैं, जिससे कांग्रेस का ग्राफ गिरता जा रहा है. भाजपा प्रवक्ता का कहना है कि राहुल गांधी के बयानों को देखें तो स्पष्ट रूप से उनके बयानों में निराशा नजर आती है और कांग्रेस डूबती हुई नाव दिख रही है.