ETV Bharat / bharat

दक्षिण पूर्व एशिया में चीन मजबूत कर रहा ढांचागत विकास, भारत के लिए चुनौती - भारत के कंटेनर कॉरपोरेशन के पहले प्रबंध निदेशक

जहां तक बात भारत-चीन संबंध का है, देश के भीतर और विशेषकर सीमावर्ती क्षेत्रों में बुनियादी ढांचा तैयार करना बहुत ही संवेदनशील मुद्दा है. इस मसले पर परिवहन और रसद विशेषज्ञ रघु दयाल जिन्होंने परिवहन से लेकर रेल मंत्रालय और विदेश मंत्रालय तक विभिन्न पदों पर काम किया है, ने ईटीवी भारत के वरिष्ठ पत्रकार संजीब कुमार बरुआ से बात की.

Infrastructure
Infrastructure
author img

By

Published : Mar 25, 2021, 11:01 PM IST

नई दिल्ली : भारत के कंटेनर कॉरपोरेशन के पहले प्रबंध निदेशक रघु दयाल ने भारत-चीन अवसंरचना और उनसे संबंधित रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित करने वाले मुद्दों पर बात की. साथ ही संभावनाओं के बारे में विस्तार से बताया.

सवाल : क्या आपको लगता है कि सिंगापुर, म्यांमार, लाओस, कंबोडिया आदि पूर्वी एशिया के साथ जुड़ने का चीनी प्रयास भारत के प्रमुख बुनियादी ढांचा योजना के लिए खतरा पैदा करते हैं?

जवाब : दोनों दिग्गजों चीन और भारत के आर्थिक और रणनीतिक हित-आसियान ब्लॉक के साथ समान रूप जुड़े हैं. जैसा कि भारत पूर्व की ओर देखता है, यह दक्षिण-पूर्वी देशों के साथ इतिहास, संस्कृति, धर्म और अर्थव्यवस्था के पुराने बंधनों को बढ़ावा देता है. यह आपसी हित में व्यापार और निवेश के नए संबंधों को बढ़ावा देने के लिए दक्षिण-पूर्वी देशों के साथ अपनी संदर्भता को इंगित करता है. भारत के लिए म्यांमार और बांग्लादेश पारंपरिक और ऐतिहासिक रूप से हैं साझेदार हैं. चीन के लिए दस सदस्यीय समूह (आसियान) का तात्पर्य है कि उसकी पूंजी, उद्योग, श्रम के लिए एक बड़ा, आशाजनक बाजार मिले. इसके अलावा यह एक रणनीतिक क्षेत्र भी है. क्षेत्र में चीन द्वारा विकसित की जा रही महत्वाकांक्षी सड़क और रेल परियोजनाएं उसी नीति का प्रतिनिधित्व करती हैं.

सवाल : भारत-चीन के बीच हाल ही में जारी झड़प बड़े पैमाने पर सड़क और रेल नेटवर्क के लिए बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को पूरा करने की दौड़ रही है. क्या वास्तव मुख्य रुप से यही कारण है?

जवाब : वर्तमान में किसी भी राष्ट्र की आर्थिक और सैन्य शक्ति अतीत की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण है. याद रखें कि माओ अक्सर कहते थे कि बिजली बंदूक के बैरल से बहती है. हम जानते हैं कि बंदूक की गति और शक्ति राष्ट्र की आर्थिक ताकत पर आधारित है. यही कारण है कि भारत की उत्तरी सीमाओं पर चीनी घुसपैठ के संदर्भ में चर्चा यह है कि भारत की चीनी साहसिकता के खिलाफ सबसे अच्छी रक्षा जीडीपी विकास दर 8 प्रतिशत है. आर्थिक शक्ति, सैन्य शक्ति की बहुत नजदीकी है. यही कारण है कि बुनियादी ढांचा ही आर्थिक विकास का जीवन रक्त है. चीन की सेना ने पिछले 40 वर्षों में अभूतपूर्व आर्थिक विकास किया है. जो कि सड़क, रेलवे, बंदरगाह, वायुमार्ग नेटवर्क के अभूतपूर्व विस्तार से सुगम हुई है. इसलिए अपेक्षित संसाधनों से लैस, चीन ने अपनी उल्टी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए मसल पावर दिखाना शुरू कर दिया है.

सवाल : आप कितनी गंभीरता से और इसे कहां देखते हैं?

जवाब : यह सामान्य ज्ञान है कि समुद्री परियोजनाओं की एक स्ट्रिंग को विकसित करने में चीन ने आगे है. वह दुनिया के विभिन्न हिस्सों में बंदरगाहों को केवल अपने व्यापार के लिए रसद आपूर्ति के नाम पर विकसित करता है. विशेष रूप से ऊर्जा के क्षेत्र में, जैसा कि मलक्का जलडमरूमध्य के माध्यम में होता है. चीन के लिए उसकी रणनीतिक, नौ सैनिक डॉकयार्ड और युद्धाभ्यास से अलग उसके समुद्री पारगमन मार्ग का स्पष्ट होना है. वहीं भारत प्राकृतिक बंधनों के लिए दक्षिण एशिया में करीबी पड़ोसी होने की अनुमति देता है. भारत से आगे निकलने के इरादे से चीन ने बिल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के तहत इस क्षेत्र में अपने पैरों के निशान स्थापित करने के लिए जोरदार निवेश किया है. जो कि लंबे समय में लाभार्थी देशों को बुरी स्थिति में फंसाता है.

सवाल : हाल ही में जब भारत ने चीन के साथ अपने आगे के क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे को विकसित नहीं करने की एक सचेत नीति का पालन किया. इस उम्मीद में कि ये क्षेत्र बफर क्षेत्र हो सकता हैं. क्या यह नीति गलत थी?

जवाब : मुझे यकीन नहीं है कि भारत ने अपने आगे के क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के निर्माण से परहेज करने की किसी भी नीति का पालन किया है. यह स्पष्ट नहीं है कि 'आगे के क्षेत्र' या 'क्षेत्र' को 'बफर क्षेत्र' कैसे माना जा सकता है. सड़क या रेल द्वारा देश की सीमाओं को जोड़ना सरकारों की एक नीति रही है. देश अपनी सीमाओं के भीतर भूभाग के किसी भी हिस्से को बफर क्षेत्र कैसे मान सकता है? जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम जैसे क्षेत्रों में सड़कों, पुलों, रेलवे लाइनों और चुनिंदा हवाई अड्डों के निर्माण से सीमावर्ती क्षेत्रों सहित सभी क्षेत्रों में पहुंच का प्रावधान किया गया है. उदाहरण के लिए अलग-अलग पूर्वोत्तर राज्यों को राष्ट्र की मुख्यधारा में लाने के लिए इसे गति प्रदान की जा रही है. ऐसा नहीं है कि भारत ने इन क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के निर्माण के संबंध में अपनी प्राथमिकताओं को कम किया है. लेकिन योजनाओं के निष्पादन की उपेक्षा की है. इसी तरह नेपाल, भूटान, म्यांमार के साथ कनेक्टिविटी के लिए परियोजनाओं को समय पर पूरा करना भारत के लिए जरुरी है.

सवाल : भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र से भारतीय मुख्य भूमि को जोड़ने वाली 'चिकन नेक' कितनी कमजोर है? विकल्प विकसित करना कितना महत्वपूर्ण है?

जवाब : करीब 27 किलोमीटर चौड़े संकीर्ण गलियारे की कमजोरी केवल बाहरी खतरे से उपजी है. जैसा कि चीन के PLA द्वारा हालिया डोकलाम घुसपैठ में यह स्पष्ट था. 1947 के बाद का विभाजन, तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के निर्माण के बाद सड़क और रेल संपर्क का विघटन, भारत की पूर्वोत्तर भारत के साथ संपर्क के मामले में यह अत्यधिक प्रभावित हुआ है. जीवनरेखा की सुरक्षा के अलावा लागत और समय के मामले में अक्षम, परिवहन प्रणालियों की क्षमता को लगातार बढ़ाया गया है. साथ ही आगे बढ़ाने की योजना बनाई गई है. अतिरिक्त सड़कों, पुलों, हवाई अड्डों, रेलवे लाइनों का निर्माण किया जा रहा है.

यह भी पढ़ें-मोदी की बांग्लादेश यात्रा, प. बंगाल चुनाव से कैसा कनेक्शन ?

1950 में उच्च प्राथमिकता पर निर्मित पुराने मीटर गेज रेल नेटवर्क को ब्रॉड गेज में परिवर्तित किया जा रहा है. इंट्रा-रीजन लिंकेज के लिए नई रेल लाइनें आ रही हैं. साथ ही रक्षा से संबंधित सड़कें बनाई जा रही हैं और पुरानी सड़कों को बेहतर बनाया जा रहा है.

नई दिल्ली : भारत के कंटेनर कॉरपोरेशन के पहले प्रबंध निदेशक रघु दयाल ने भारत-चीन अवसंरचना और उनसे संबंधित रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित करने वाले मुद्दों पर बात की. साथ ही संभावनाओं के बारे में विस्तार से बताया.

सवाल : क्या आपको लगता है कि सिंगापुर, म्यांमार, लाओस, कंबोडिया आदि पूर्वी एशिया के साथ जुड़ने का चीनी प्रयास भारत के प्रमुख बुनियादी ढांचा योजना के लिए खतरा पैदा करते हैं?

जवाब : दोनों दिग्गजों चीन और भारत के आर्थिक और रणनीतिक हित-आसियान ब्लॉक के साथ समान रूप जुड़े हैं. जैसा कि भारत पूर्व की ओर देखता है, यह दक्षिण-पूर्वी देशों के साथ इतिहास, संस्कृति, धर्म और अर्थव्यवस्था के पुराने बंधनों को बढ़ावा देता है. यह आपसी हित में व्यापार और निवेश के नए संबंधों को बढ़ावा देने के लिए दक्षिण-पूर्वी देशों के साथ अपनी संदर्भता को इंगित करता है. भारत के लिए म्यांमार और बांग्लादेश पारंपरिक और ऐतिहासिक रूप से हैं साझेदार हैं. चीन के लिए दस सदस्यीय समूह (आसियान) का तात्पर्य है कि उसकी पूंजी, उद्योग, श्रम के लिए एक बड़ा, आशाजनक बाजार मिले. इसके अलावा यह एक रणनीतिक क्षेत्र भी है. क्षेत्र में चीन द्वारा विकसित की जा रही महत्वाकांक्षी सड़क और रेल परियोजनाएं उसी नीति का प्रतिनिधित्व करती हैं.

सवाल : भारत-चीन के बीच हाल ही में जारी झड़प बड़े पैमाने पर सड़क और रेल नेटवर्क के लिए बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को पूरा करने की दौड़ रही है. क्या वास्तव मुख्य रुप से यही कारण है?

जवाब : वर्तमान में किसी भी राष्ट्र की आर्थिक और सैन्य शक्ति अतीत की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण है. याद रखें कि माओ अक्सर कहते थे कि बिजली बंदूक के बैरल से बहती है. हम जानते हैं कि बंदूक की गति और शक्ति राष्ट्र की आर्थिक ताकत पर आधारित है. यही कारण है कि भारत की उत्तरी सीमाओं पर चीनी घुसपैठ के संदर्भ में चर्चा यह है कि भारत की चीनी साहसिकता के खिलाफ सबसे अच्छी रक्षा जीडीपी विकास दर 8 प्रतिशत है. आर्थिक शक्ति, सैन्य शक्ति की बहुत नजदीकी है. यही कारण है कि बुनियादी ढांचा ही आर्थिक विकास का जीवन रक्त है. चीन की सेना ने पिछले 40 वर्षों में अभूतपूर्व आर्थिक विकास किया है. जो कि सड़क, रेलवे, बंदरगाह, वायुमार्ग नेटवर्क के अभूतपूर्व विस्तार से सुगम हुई है. इसलिए अपेक्षित संसाधनों से लैस, चीन ने अपनी उल्टी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए मसल पावर दिखाना शुरू कर दिया है.

सवाल : आप कितनी गंभीरता से और इसे कहां देखते हैं?

जवाब : यह सामान्य ज्ञान है कि समुद्री परियोजनाओं की एक स्ट्रिंग को विकसित करने में चीन ने आगे है. वह दुनिया के विभिन्न हिस्सों में बंदरगाहों को केवल अपने व्यापार के लिए रसद आपूर्ति के नाम पर विकसित करता है. विशेष रूप से ऊर्जा के क्षेत्र में, जैसा कि मलक्का जलडमरूमध्य के माध्यम में होता है. चीन के लिए उसकी रणनीतिक, नौ सैनिक डॉकयार्ड और युद्धाभ्यास से अलग उसके समुद्री पारगमन मार्ग का स्पष्ट होना है. वहीं भारत प्राकृतिक बंधनों के लिए दक्षिण एशिया में करीबी पड़ोसी होने की अनुमति देता है. भारत से आगे निकलने के इरादे से चीन ने बिल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के तहत इस क्षेत्र में अपने पैरों के निशान स्थापित करने के लिए जोरदार निवेश किया है. जो कि लंबे समय में लाभार्थी देशों को बुरी स्थिति में फंसाता है.

सवाल : हाल ही में जब भारत ने चीन के साथ अपने आगे के क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे को विकसित नहीं करने की एक सचेत नीति का पालन किया. इस उम्मीद में कि ये क्षेत्र बफर क्षेत्र हो सकता हैं. क्या यह नीति गलत थी?

जवाब : मुझे यकीन नहीं है कि भारत ने अपने आगे के क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के निर्माण से परहेज करने की किसी भी नीति का पालन किया है. यह स्पष्ट नहीं है कि 'आगे के क्षेत्र' या 'क्षेत्र' को 'बफर क्षेत्र' कैसे माना जा सकता है. सड़क या रेल द्वारा देश की सीमाओं को जोड़ना सरकारों की एक नीति रही है. देश अपनी सीमाओं के भीतर भूभाग के किसी भी हिस्से को बफर क्षेत्र कैसे मान सकता है? जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम जैसे क्षेत्रों में सड़कों, पुलों, रेलवे लाइनों और चुनिंदा हवाई अड्डों के निर्माण से सीमावर्ती क्षेत्रों सहित सभी क्षेत्रों में पहुंच का प्रावधान किया गया है. उदाहरण के लिए अलग-अलग पूर्वोत्तर राज्यों को राष्ट्र की मुख्यधारा में लाने के लिए इसे गति प्रदान की जा रही है. ऐसा नहीं है कि भारत ने इन क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के निर्माण के संबंध में अपनी प्राथमिकताओं को कम किया है. लेकिन योजनाओं के निष्पादन की उपेक्षा की है. इसी तरह नेपाल, भूटान, म्यांमार के साथ कनेक्टिविटी के लिए परियोजनाओं को समय पर पूरा करना भारत के लिए जरुरी है.

सवाल : भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र से भारतीय मुख्य भूमि को जोड़ने वाली 'चिकन नेक' कितनी कमजोर है? विकल्प विकसित करना कितना महत्वपूर्ण है?

जवाब : करीब 27 किलोमीटर चौड़े संकीर्ण गलियारे की कमजोरी केवल बाहरी खतरे से उपजी है. जैसा कि चीन के PLA द्वारा हालिया डोकलाम घुसपैठ में यह स्पष्ट था. 1947 के बाद का विभाजन, तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के निर्माण के बाद सड़क और रेल संपर्क का विघटन, भारत की पूर्वोत्तर भारत के साथ संपर्क के मामले में यह अत्यधिक प्रभावित हुआ है. जीवनरेखा की सुरक्षा के अलावा लागत और समय के मामले में अक्षम, परिवहन प्रणालियों की क्षमता को लगातार बढ़ाया गया है. साथ ही आगे बढ़ाने की योजना बनाई गई है. अतिरिक्त सड़कों, पुलों, हवाई अड्डों, रेलवे लाइनों का निर्माण किया जा रहा है.

यह भी पढ़ें-मोदी की बांग्लादेश यात्रा, प. बंगाल चुनाव से कैसा कनेक्शन ?

1950 में उच्च प्राथमिकता पर निर्मित पुराने मीटर गेज रेल नेटवर्क को ब्रॉड गेज में परिवर्तित किया जा रहा है. इंट्रा-रीजन लिंकेज के लिए नई रेल लाइनें आ रही हैं. साथ ही रक्षा से संबंधित सड़कें बनाई जा रही हैं और पुरानी सड़कों को बेहतर बनाया जा रहा है.

For All Latest Updates

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.