हैदराबाद : स्टेट ऑफ द वर्ल्ड ऑफ इंडिजिनस पीपल की रिपोर्ट का नया संस्करण स्थानीय समुदायों को भूमि के अधिकार प्राप्त करने के लिए सामने आने वाली चुनौतियों की पड़ताल कर रहा है. इसमें कृषि व्यवसाय, निष्कर्षण उद्योग, विकास, संरक्षण और पर्यटन शामिल है.
रिपोर्ट के नए संस्करण के मुताबिक स्थानीय लोग भूमि, क्षेत्र और संसाधनों पर अधिकार रखते हैं. रिपोर्ट के अनुसार स्थानीय अधिकार कार्यकर्ताओं को भी भूमि को संरक्षित करने लिए अपराधीकरण और उत्पीड़न से लेकर, मारपीट और हत्याओं तक भारी जोखिम और विद्रोह का सामना करना पड़ा है. इतना ही नहीं रिपोर्ट का नया संस्करण इस समस्या का सामधान भी प्रदान करता और आगे का रास्ता भी बताता है.
संयुक्त राष्ट्र की मुख्य अर्थशास्त्र एलियास हैरिस ने कहा कि भूमि, क्षेत्रों और संसाधनों के लिए स्थानीय लोगों के सामूहिक अधिकारों को सुनिश्चित करना न केवल उनकी भलाई के लिए है, बल्कि वैश्विक जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय गिरावट की चुनौती का सामना करने के लिए भी अहम है.
पृथ्वी के कस्टोडियन
हैरिस संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक मामलों के विभाग (DESA) में एक सहायक-महासचिव हैं और उन्होंने ही यह रिपोर्ट जारी की है. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारत के लोगों को अक्सर पृथ्वी के अनमोल संसाधनों का संरक्षक कहा जाता है. क्योंकि देश जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का सामना कर रहा है, इसलिए भूमि और क्षेत्रीय अधिकारों के बारे में उनका पारंपरिक ज्ञान व्यापक मान्यता रखता है.
इस संबंध में हैरिस ने पत्रकारों से कहा कि पांच साल पहले सरकारों ने सतत विकास के लिए 2030 के एजेंडा को अपनाया, जो सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) के माध्यम से सभी लोगों और ग्रह के लिए एक सुरक्षित और न्यायसंगत भविष्य का रोडमैप तैयार कर रहा है. हालांकि, एसडीजी 17 प्रमुख स्वदेशी चिंताओं को संबोधित करते हैं, लेकिन यह अभी भी काफी कम हैं. उदाहरण के लिए, 2030 का एजेंडा भूमि और संसाधनों, या स्वास्थ्य, शिक्षा, संस्कृति और जीवन जीने के तरीकों में सामूहिक अधिकारों को पूरी तरह से प्रमाणित नहीं करता है और अभी तक सामूहिक अधिकार स्थानीय समुदायों के दिल में बसा हुआ है.
भूमि को लेकर टकराव में वृद्धि
दुनिया के कई हिस्सों में भूमि, क्षेत्र और संसाधनों के लिए स्थानीय लोगों के अधिकार सीमित या गैर-मान्यता प्राप्त हैं. यहां तक कि जहां कानूनी सहायता है वहां उन्हें ठीक से लागू नहीं किया जाता. यह देखते हुए कि हैरिस ने अन्य गंभीर चुनौतियों को रेखांकित किया.
उन्होंने कहा कि स्थानीय अधिकार कार्यकर्ताओं को भी अपनी जमीनों का बचाव करने, अपराधीकरण और उत्पीड़न से लेकर, मारपीट और हत्याओं के लिए भारी जोखिम और विद्रोह का सामना करना पड़ा है.
संयुक्त राष्ट्र स्थायी मंच की अध्यक्ष ऐनी नुओर्गाम ने बताया कि कोविड-19 महामारी के दौरान और उसके बाद लॉकडाउन के दौरान स्वदेशी भूमि और क्षेत्रों पर अतिक्रमण के मामलों में वृद्धि हुई है.
उन्होंने कहा कि कोरोना काल में कई तरह के संघर्ष देखने को मिले, जिसमें संसाधन निष्कर्षण (resource extraction), लॉगिंग, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के लिए भूमि और कृषि व्यवसाय, देहाती पशुपालकों, घुमंतू चरवाहों और किसानों के बीच संघर्ष है.
डेटा की भूमिका
रिपोर्ट में राज्यों को सलाह दी गई है कि वे स्थानीय लोगों के अधिकारों को कस्टमरी अधिकार के रूप में मान्यता दें. साथ ही सरकारों से यह भी आग्रह किया गया है कि वे जातीयता और स्थानीय पहचान का बेहतर डेटा इकट्ठा करें, ताकि विशिष्ट स्वदेशी समुदायों के सामने आने वाली चुनौतियां को अधिक सटीक रूप से परिलक्षित किया जा सके.
विश्वभर में स्वदेशी लोग वैश्विक भूमि सतह के 22 प्रतिशत हिस्से को घर कहते हैं. वे उन क्षेत्रों में रहते हैं, जहां आपको ग्रह की जैव विविधता का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा मिलता है और दुनिया की अधिकांश गैर-व्यावसायिक रूप से शोषित भूमि और इसके शेष खनिज और वन संसाधन, प्रमुख नदियां, जीवाश्म ईंधन और नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोत मौजूद हैं.
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इन लोगों को अक्सर पृथ्वी के अनमोल संसाधनों के संरक्षक के रूप में वर्णित किया जाता है. हालांकि, आज जारी एक नए संयुक्त राष्ट्र DESA के अनुसार, उन्हें भूमि, क्षेत्र और संसाधनों के अपने अधिकारों से वंचित किया जा रहा है.
हैरिस ने कहा कि भूमि, क्षेत्रों और संसाधनों के लिए स्थानीय लोगों के सामूहिक अधिकारों को सुनिश्चित करना न केवल उनकी भलाई के लिए है, बल्कि जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय गिरावट जैसे कुछ सबसे अधिक दबाव वाली वैश्विक चुनौतियों के समाधान के लिए भी अहम है.
इन अधिकारों को बढ़ावा देने जलमार्ग और जैविक विविधता की रक्षा करने का एक प्रभावी तरीका है. सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करना स्थानीय लोगों के अधिकारों को उनकी भूमि, क्षेत्रों और संसाधनों पर पूरा किए बिना संभव नहीं है.