चंडीगढ़ : हादसे में दिव्यांग होने वाले मरीजों के इलाज के लिए पहली एंप्यूटी क्लीनिक की शुरुआत सोमवार को की गई. यह देश की पहली ऐसी क्लीनिक है, जहां एक ही छत के नीचे अलग-अलग विभाग के डॉक्टर दिव्यांग मरीज का इलाज करेंगे.
पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (पीजीआईएमईआर) के निदेशक प्रोफेसर जगत राम ने इसका औपचारिक उद्धाटन किया. उन्होंने कहा कि इसका मूल उद्देश्य अपंगता की वजह से मरीज को सामाजिक उत्पीड़न, दिनचर्या और नौकरी जैसे माहौल में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. लेकिन अब पीजीआइ में शुरू हुई एंप्यूटी क्लीनिक में मरीज को ऐसी जटिल सर्जरी के बाद फालोअप करते हुए जीने का तरीका सिखाया जाएगा. साथ ही उसकी मेडिकल स्थिति पर नजर रखी जाएगी.
गौरतलब है कि सड़क हादसों में अकसर देखने को मिलता है कि किसी व्यक्ति की हाथ या पैर पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया है. लेकिन समय पर इलाज न मिलने के कारण व्यक्ति के हाथ व पैर को काटना पड़ता है. कई बार ऐसे केस देरी से पीजीआई रेफर किए जाते हैं. इसके लिए पीजीआई ने अब विशेष तौर पर एंप्यूटी क्लीनिक शुरू की है. जहां ऐसे मामलों को तत्काल प्रभाव से देखा जाएगा.
इस पहल को अंजाम देने वाले ऑर्थोपेडिक्स विभाग के प्रमुख प्रो. एमएस ढिल्लों ने कहा कि यह देश में अपनी तरह का पहला क्लीनिक है. पिछले कुछ वर्षों में, हमारा प्रयास रहा है कि पोस्ट-ट्रॉमा एम्प्यूटेस में व्यापक देखभाल प्रदान की जाए. बहु-विषयक देखभाल के विभिन्न पहलुओं के साथ हमने सभी विशिष्टताओं के साथ एक छत के नीचे रोगी की देखभाल और पुनर्वसन में मदद करने के लिए पीजीआई एंप्यूटी क्लीनिक का रूप दिया है.
पीजीआई के प्रोफेसर एमएस ढिल्लो ने बताया कि देश में हर साल लाखों लोग अपने शरीर का कोई अंग गंवा बैठते हैं. जिसके कई कारण हो सकते हैं. कई लोग किसी दुर्घटना में अपना अंग गंवा बैठते हैं, जबकि कई लोगों को किसी बीमारी की वजह से अपना अंग कटवाना पड़ता है.
उन्होंने बताया कि पीजीआई में भी लगभग प्रतिदिन एक या दो मामले ऐसे आते हैं. पीजीआई में या अन्य अस्पतालों में इस तरह के लोगों का इलाज कर दिया जाता है. अगर किसी व्यक्ति में अंग बचाने की गुंजाइश हो, तो डॉक्टर्स उसके अंग को बचाने की कोशिश करते हैं, लेकिन कई बार उनको नहीं बचाया जा सकता और उसे काटना पड़ता है. हालांकि, शारीरिक तौर पर व्यक्ति के घाव भर जाते हैं, लेकिन वो मानसिक तौर पर इससे उबर नहीं पाता.
वहीं डॉक्टर अनीश ने बताया कि चोट से उबरने के बाद व्यक्ति मानसिक तौर पर काफी कमजोर हो जाता है. उसे लगता है कि उसकी जिंदगी खत्म हो चुकी है. अब वो कभी कुछ नहीं कर पाएगा. कई मामलों में इस तरह के मरीजों ने आत्महत्या जैसे कदम भी उठाए हैं, इसलिए ये जरूरी हो जाता है कि उसे मानसिक तौर पर फिर से मजबूत बनाया जाए. ऐसे में मरीज को साइक्लोजिकल तौर पर भी इलाज दिया जाता है.