प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिवसीय बांग्लादेश के दौरे पर हैं. कोविड संकट के बाद पीएम मोदी का यह पहला विदेशी दौरा है. भारत 6 दिसंबर 1971 को बांग्लादेश को मान्यता देने वाला पहला देश था. भारत बांग्लादेश के साथ 4096.7 किलोमीटर की लंबी सीमा साझा करता है. इसके बावजूद दोनों देशों ने लैंड और मैरिटाइम सीमा विवाद सुलझा लिया है. 2015 में पीएम मोदी की पहली बांग्लादेश यात्रा से ठीक पहले इस पर सहमति बना ली गई थी. 1974 से ही विवाद चला आ रहा था.
दोनों देशों की साझा सीमाएं दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी सीमा है. दोनों के बीच सामाजिक-सांस्कृति, भाषा और आर्थिक संबंध काफी गहरे हैं. साझी विरासत हैं. इस पृष्ठभूमि में इन रिश्तों को और अधिक मजबूत किया जा रहा है. उद्देश्य यह है कि दोनों के बीच सीमाएं कोई बाधा न बने. ऐतिहासिक और भौगोलिक संबंध बेहतर हों. दोनों के बीच 'सोनार अध्याय' की फिर से शुरुआत हो.
पिछले 50 सालों में दोनों देशों ने कई राजनीतिक उतार और चढ़ाव देखे हैं. द्विपक्षीय संबंधों में प्रमुखता और ऊंचाइयां देखने को मिली. गंगा, पद्मा और तीस्ता नदियों के पानी के बंटवारे पर दोनों के बीच विवाद रहे हैं. दोनों देशों के बीच 54 ऐसी नदियां हैं, जिससे दोनों देशों को पानी मिलता है. ये नदियां दोनों ही देश की सीमाओं पर रहने वाले लोगों के लिए जीवनदायनी हैं. इन नदियों के दलदलीय क्षेत्रों से होकर लोग सीमा पर आर-पार हो जाते हैं. आजीविका कमाने के लिए बड़ी संख्या में बांग्लादेशी भारत में दाखिल होते हैं.
रोजगार की तलाश में बांग्लादेश से बड़ी संख्या में भारतीय सीमा में दाखिल होने की वजह से बांग्लादेश की काफी बदनामी हुई. अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर ने बांग्लादेश को 'बास्केट केस' बताया था. हालांकि, तब से अब तक की स्थिति में बहुत परिवर्तन आ चुका है. बांग्लादेश अब आर्थिक शक्ति के रूप में उभर रहा है. औसत जीडीपी आठ फीसदी है. इन उपलब्धियों का बहुत बड़ा श्रेय बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना को जाता है. शेख हसीना बंगबंधु मुजीबुर रहमान की बेटी हैं. वह 2009 से लगातार सत्ता में हैं.
शेख हसीना और मोदी के नेतृत्व में ही 'सोनार अध्याय' की शुरुआत भूमि सीमा विवाद की समाप्ति के साथ हुई. उसके बाद से दोनों देशों के रिश्तों में लगातार बेहतरी देखी गई.
2019 के लोकसभा चुनाव के बाद बांग्लादेश में भारत के प्रति नकारात्मक धारणाएं बढ़ने लगी थीं. इसे खत्म करने के लिए मोदी सरकार ने बहुत मेहनत की. सीएए को लेकर बांग्लादेशियों के खिलाफ बहु अपमानजनक टिप्पणी की गई थी. सांस्कृतिक संबंधों पर सांप्रदायिक स्वाद का चढ़ना अच्छा नहीं रहा. इसकी वजह से फोकस चेंज हुआ. सार्क देशों में सबसे अधिक आर्थिक गतिविधि भारत और बांग्लादेश के बीच होता है. दोनों के बीच करीब 10 बिलियन डॉलर का वार्षिक कारोबार होता है.
भारत और बांग्लादेश के बीच फिर से संबंधों को बेहतर करने के लिए विश्वास बहाली पहली प्राथमिकता थी. भारत ने इसके लिए कई स्तर पर अथक प्रयास किए. भारत के विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने कहा कि बंगबंधु और बापू के चित्रों की प्रदर्शनी इसी विश्वास बहाली का एक हिस्सा है.
इससे पहले भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपनी ढाका यात्रा के दौरान बांग्लादेश को '360 डिग्री साझेदार' बताया. इसमें रक्षा, सुरक्षा और आर्थिक मुद्दे प्रमुखता से शामिल हैं. भारत की 'एक्ट ईस्ट नीति' और 'सबसे पहले पड़ोसी' की नीति में बांग्लादेश सबसे अहम है.
भारत ने बांग्लादेश को सबसे अधिक कोरोना के टीके भी उपलब्ध करवाए हैं. कई पर्यवेक्षकों का मानना है कि कोरोना टीका की आपूर्ति की वजह ने दोनों देशों के संबंधों में नई जान डाल दी.
बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के विकास के लिए हाल ही में 1.9 किलोमीटर की मैत्री पुल बनाई गई है. यह फेनी नदी पर बनी है. नदी त्रिपुरा के सबरूम और बांग्लादेश के रामगढ़ के बीच बहती है. इसके जरिए रेलवे संपर्क को फिर से खोला गया है. इससे दोनों देशों के बीच कनेक्टिविटी और आर्थिक सुविधा बेहतर होगी. ऐसी परियोजनाएं, सहायता कार्यक्रम, क्रेडिट लाइन ऐसे कदम हैं, जो राजनीतिक क्षति को कम करते हैं. 17 दिसंबर, 2020 को आयोजित दोनों प्रधानमंत्रियों की आभासी शिखर बैठक एक अहम कारक रहा, जिसकी वजह से रिश्ते सामान्य होने में मदद मिली.
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने कहा कि 50 साल पहले 1971 में भारत ने बांग्लादेश की मदद के लिए सीमाएं खोल दी थीं, आज हम दोनों की जवाबदेही है कि हम इस क्षेत्र को और अधिक संपन्न करें.
(लेखक- निलोवा रॉय चौधरी, वरिष्ठ पत्रकार)