बेंगलुरु : इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंसेज (आईआईएससी) की स्टडी में पाया गया है कि कर्नाटक की कावेरी नदी में माइक्रोप्लास्टिक मछलियों को नुकसान (microplastics in cauvery river) पहुंचा रहा है. यह शोध जर्नल इकोटॉक्सिकोलॉजी एंड एन्वॉरनमेंटल सेफ्टी (Ecotoxicology and Environmental Safety) में प्रकाशित हुआ है. इस शोध को इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के मॉल्यूक्यूलर रिप्रोडक्शन, डेवलपमेंट एंड जेनेटिक्स विभाग के प्रोफेसर उपेंद्र नोंगथोम्बा (Upendra Nongthomba) की अगुवाई में किया गया है. प्रोफेसर नोंगथोम्बा मछली खाने के शौकीन हैं और कहते हैं कि वह लंबे समय से मैसूर के कृष्णा सागर बांध के बैकवॉटर में (backwaters of the Krishna Raja Sagara) जाना और कावेरी नदी के तट पर फ्राइड फिश खाना पसंद करते हैं. उन्होंने कहा कि लेकिन हाल में उन्हें कुछ मछलियों के शारीरिक ढांचे में विकृतियां दिखाई देनी लगीं और वे सोचने लगे कि संभवत नदी के पानी की गुणवत्ता के कारण ऐसा हो रहा है.
कावेरी नदी की मछलियों में विकार : शोध के मुताबिक माइक्रोप्लास्टिक कावेरी नदी की मछलियों के विकास में न सिर्फ बाधक बन रहा है बल्कि यह उनके शारीरिक ढांचे को भी विकृत कर रहा है. इस शोध के मुख्य लेखक और प्रोफेसर नोंगथोम्बा के तहत पीएचडी कर रहे अबास तोबा एनिफोवोशे (Abass Toba Anifowoshe) ने कहा कि पानी सबके लिये जरूरी है. अगर पानी प्रदूषित होता है तो इससे कैंसर सहित कई बीमारियां हो सकती हैं. कावेरी नदी की मछलियों में विकार देखे जाने के बाद कृष्णा सागर बांध के प्रदूषण और मछलियों पर इसके प्रभाव के बारे में शोध किया गया. उन्होंने नदी में तीन अलग अलग जगहों से जल का नमूना एकत्रित किया. इन तीनों जगहों पर पानी के प्रवाह की गति भिन्न थी. जिन जगहों पर नदी का वेग कम था या जल स्थिर था, वहां ऑक्सीजन का स्तर कम था. इन नमूनों में जल प्रदूषण के कई लक्षण थे.
माइक्रोप्लास्टिक के कारण मछलियों में बीमारी : शोधकर्ताओं ने रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी के जरिये इन नमूनों में माइक्रोप्लास्टिक की जांच की. उन्होंने इसके मछलियों पर प्रभाव की जांच के लिये जेब्राफिश के भ्रूण पर इसका परीक्षण किया. उन्होंने पाया कि जिन मछलियों पर धीमी वेग वाले पानी और ठहरे हुये पानी का परीक्षण किया गया, उनके ढांचे में विकृति में पायी गयी, उनके डीएनए क्षतिग्रस्त हो गये, कोशिकायें पहले मरने लगीं, दिल संबंधी परेशानी रही और इन मछलियों की मृत्यु दर भी अधिक रही. इन नमूनों से जब अन्य प्रदूषकों को निकाल भी लिया गया तो भी मछलियों की वही स्थिति रही, जिससे पता चलता है कि मछलियों की इस बीमारी के लिये माइक्रोप्लास्टिक ही जिम्मेदार है.
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मानव रक्त में माइक्रोप्लास्टिक : शोधकर्ताओं ने पाया कि माइक्रोप्लास्टिक से प्रभावित मछलियों की कोशिकाओं में अस्थिर अणु आरओएस भी असामान्य रूप से विकसित हो रहा था. आरओएस डीएनए को क्षतिग्रस्त करने का कारक माना जाता है और जानवरों पर उसका ठीक वही प्रभाव होता है, जैसा मछलियों के शारीरिक ढांचे में हुआ है. शोधकर्ता ने कहा कि नीदरलैंड में हाल में किये गये शोध से यह खुलासा हुआ है कि माइक्रोप्लास्टिक मानव के रक्त में पाये गये हैं. मछलियों पर इसके प्रभाव को जाना जा चुका है तो ऐसे में सवाल उठता है कि उन लाखों लोगों का क्या होगा, जो कावेरी नदी का पानी इस्तेमाल करते हैं. हालांकि, अभी मानव शरीर में उसकी मात्रा उतनी नहीं है लेकिन इसके दूरगामी प्रभावों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.
(पीटीआई-भाषा)