कैथल : हमारे देश की सांस्कृतिक विरासत इतनी विराट और विविधता भरी है कि कई बार लोग जानकर चकित हो जाते हैं. आज होलिका दहन का दिन है, जो भगवान शिव की क्रोधाग्नि में कामदेव के भस्म होने और भक्त प्रह्लाद के साथ उनकी बुआ होलिका से जुड़ा है. क्योंकि प्रह्लाद को मारने के चक्कर में होलिका स्वयं आग में भस्म हो गई थी और उस दिन फाल्गुन पूर्णिमा थी, इसलिए हर वर्ष फाल्गुन पूर्णिमा को होलिका दहन होता है. जिसकी बहुत मान्यता है, लेकिन हरियाणा का एक गांव ऐसा भी है, जहां 160 साल से होलिका दहन नहीं हुई.
ये है गांव दुसेरपुर की कहानी
कहानी 160 साल पहले की बताई जाती है, जो हरियाणा के कैथल जिले के गुहला चीका में पड़ने वाले गांव दुसेरपुर से जुड़ी है. उस वक्त इस गांव में स्नेही राम नाम के साधु रहा करते थे. जो कद में काफी छोटे थे. तो हुआ कुछ ऐसा कि होलिका दहन का दिन था और होली जलाई जा रही थी. जैसे ही बाबा वहां पहुंचे तो लोगों ने उनके कद का मजाक उड़ाना शुरू कर दिया. इससे बाबा इतने आहत हुए कि होली की उसी अग्नि में समाधि ले ली.
स्नेही राम बाबा ने दे दिया श्राप
गांव वाले बताते हैं कि समाधि लेते वक्त स्नेही राम बाबा ने गांव वालों को श्राप दिया कि आज से तुम्हारे गांव में कभी होली नहीं मनाई जा सकेगी. ऐसा सुनकर गांव के बुजुर्ग काफी घबरा गए और स्नेही राम बाबा से माफी मांगने लगे. इस पर बाबा ने कहा कि तुम इस श्राप से बच सकते हो, अगर कभी होली के दिन तुम्हारे गांव में किसी गाय को बछड़ा और महिला को पुत्र की प्राप्ति होगी तो तुम्हें इस श्राप से मुक्ति मिल जाएगी. लेकिन 160 साल बीत गए, आज तक ऐसा नहीं हुआ.
गांव वालों को अब भी है विश्वास
दुसेरपुर गांव के लोगों को अभी भी विश्वास है कि एक दिन आएगा जब उन्हें इस श्राप से छुटकारा मिलेगा. इसी गांव में रहने वाले एक बुजुर्ग नीलकंठ सिंह बताते हैं कि वो बाबा स्नेही राम के मंदिर में लगातार दिया जलाते हैं और मन्नत मांगते हैं कि होली वाले दिन गाय को बछड़ा और स्त्री को पुत्र दे दे, ताकि उनका गांव श्रापमुक्त हो सके.
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डर, विश्वास या अंधविश्वास ?
अब इसे दुसेरपुर के लोगों का विश्वास कहें या अंधविश्वास, लेकिन ये 160 वर्षों से चला आ रहा है. गांव वाले बताते हैं कि एक बार किसी ने होली मनाई थी तो उसके घर में काफी नुकसान हुआ था. इसीलिए अब हमारे गांव के लोग ऐसी कोशिश नहीं करते और स्नेही राम बाबा के मंदिर में दीया जलाते हैं.
ईटीवी भारत किसी भी तरह के अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देता और न ही उस पर विश्वास करता है, लेकिन लोगों की धार्मिक मान्यताओं और भावनाओं का सम्मान करता है.