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मोदी कैबिनेट : जानिए दिग्गजों को हटाकर नए लोगों को क्यों दिया मौका?

मोदी सरकार ने बुधवार को मंत्रिमंडल में व्यापक बदलाव किया है. पीढ़ीगत बदलाव का संकेत देते ये सबसे युवा कैबिनेट है. बदलाव के निहतार्थ क्या हैं और ये कितनी कारगर साबित होगी, इस पर वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की खास रिपोर्ट.

मोदी कैबिनेट
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Published : Jul 8, 2021, 7:31 PM IST

नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को कैबिनेट में व्यापक बदलाव किया है. इस जंबो साइज विस्तार (jumbo-size expansion) में 2024 के चुनावों का खास ध्यान रखा गया है. जातिगत आंकड़ें तो कम से कम यही बताते हैं. इस बदलाव में 62 प्रतिशत मंत्री ओबीसी, एससी या एसटी समुदायों से हैं. इन तीन कैटेगरी की देश की आबादी लगभग 66 प्रतिशत है. साफ जाहिर है कि बदलाव का मुख्य उद्देश्य 'लोकलुभावन' है.

मंत्रिपरिषद की औसत आयु भी तीन वर्ष घटकर 61 वर्ष से 58 वर्ष हो गई है जबकि नव-शपथ ग्रहण करने वाले मंत्रियों की औसत आयु 56 वर्ष है. जाहिर है, 'पुराने' गार्ड ने 'नए' को रास्ता दे दिया है.

राजनीति के दिग्गज माने जाने वाले रविशंकर प्रसाद, प्रकाश जावड़ेकर, हर्षवर्धन और संतोष गंगवार जैसे कुछ वरिष्ठों को शामिल न किया जाना आश्चर्यजनक रहा. रमेश पोखरियाल निशंक (Ramesh Pokhriyal Nishank), डीवी सदानंद गौड़ा (D V Sadananda Gowda), थावरचंद गहलोत (Thaawarchand Gehlot ) और बाबुल सुप्रियो (Babul Supriyo) को भी कैबिनेट में जगह नहीं मिली. गौरतलब है कि अटल बिहारी वाजपेयी के साथ दो दशक से भी अधिक 'पुराने गार्ड' से केवल राजनाथ सिंह और मुख्तार अब्बास नकवी ही बचे हैं.

महत्व और निहितार्थ:

1 : कानून और आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद (Ravi Shankar Prasad) को अचानक हटाए जाने को अमेरिकी सरकार, पश्चिम और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया दिग्गजों को शांत करने के कदम के रूप में देखा जा सकता है, जिनके साथ सरकार का काफी आमना-सामना हुआ है. इसके अलावा, अनुच्छेद 370 को निरस्त करने वाले कानून, कश्मीर में इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाने, नागरिकता संशोधन अधिनियम आदि को अमेरिका और पश्चिमी देशों का नजरिया सकारात्मक नहीं रहा है.

जो बाइडेन (Joe Biden) के नेतृत्व वाले अमेरिकी शासन ने अधिकारों के मुद्दों पर भी अपना ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया है. भविष्य में इस मुद्दे पर और ज्यादा ध्यान दिए जाने की उम्मीद है, क्योंकि हाल ही में आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी का निधन हुआ है जिसके बाद अमेरिका सहित अंतरराष्ट्रीय मंच से नकारात्मक टिप्पणियां सामने आई हैं. प्रसाद को हटाना एक आसान तरीका हो सकता है कि इन गंभीर मामलों को शांत किया जाए. प्रधानमंत्री साल के अंत तक अमेरिका यात्रा कर सकते हैं, ऐसे में इस कदम से अनुकूल माहौल बनेगा.

2: स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन (Harshvardhan) और उनके उप मंत्री अश्विनी चौबे का हटाया जाना इस बात का संकेत है कि कोविड महामारी की घातक दूसरी लहर का प्रबंधन उत्तर प्रदेश में होने वाले चुनाव में मुद्दा बन सकता था. इसलिए ये कदम उठाया गया.

3 : डॉ. एस जयशंकर के नेतृत्व वाले विदेश मंत्रालय में अब तीन कनिष्ठ मंत्री हैं. वी मुरलीधरन के अलावा, दो और लोगों मीनाक्षी लेखी और राजकुमार रंजन सिंह ने बुधवार को शपथ ली. ये आने वाले दिनों में मंत्रालय की व्यापक और महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है. वास्तव में विदेश नीति ने बहुत लंबे समय के बाद सरकार में महत्व प्राप्त किया है.

दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास पढ़ाने वाले प्रोफेसर कुमार संजय सिंह कहते हैं. '1971 के युद्ध के पहले और बाद जिस तरह से भारत ने अपना रोल निभाया उसके बाद से भारत के लिए विदेश नीति के लिए अब तक का सबसे महत्वपूर्ण समय है. भारत इस क्षेत्र में बढ़ते चीन को रोकने के लिए जो भूमिका निभाना चाहता है उसमें कई चुनौतियां हैं. एलओसी (पाकिस्तान के साथ वास्तविक सीमा), एलएसी (चीन के साथ वास्तविक सीमा), पश्चिम एशिया जैसे मुद्दे हैं. ऐसे में अमेरिका और यूरोपीय संघ के साथ संबंधों को मजबूत करने की आवश्यकता है. विदेश मंत्रालय में इन कनिष्ठ मंत्रियों का शामिल किया जाना उसी का संकेत है.'

4 : पूर्व आईएएस अधिकारी और ओडिशा से भाजपा के राज्यसभा सदस्य अश्विनी वैष्णव को शामिल करना जो ओडिशा के मुख्यमंत्री और बीजू जनता दल सुप्रीमो नवीन पटनायक के करीबी माने जाते हैं, महत्वपूर्ण है. यह विपक्षी दलों द्वारा भाजपा के खिलाफ एक साझा मोर्चे के रूप में एकजुट होने के कदम को कुंद करने के लिए है.

5 : इसी तरह, नारायण राणे को शामिल करने से महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना के बीच तालमेल की सभी उम्मीदों पर पानी फिर गया. जैसा कि ज्ञात है राणे और उद्धव ठाकरे के बीच ज्यादा मनमुटाव नहीं है. सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) मंत्रालय में मंत्री के रूप में कार्यभार संभालने के दौरान गुरुवार को राणे में जुझारूपन दिखाई दिया. हालांकि महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे ने उन्हें (राणे) को बधाई देने के लिए बड़ा दिल नहीं दिखाया.

6 : नवीनतम मंत्रिस्तरीय विस्तार ने परंपरागत रूप से कम प्रतिनिधित्व वाले पूर्वोत्तर क्षेत्र से अब तक की सबसे बड़ी उपस्थिति देखी है. इस क्षेत्र के पांच मंत्री हैं, जो इस क्षेत्र के सात राज्यों में से चार का प्रतिनिधित्व करते हैं.

पढ़ें- मिशन 2022 को ध्यान में रखकर हुआ है मोदी मंत्रिमंडल का विस्तार

किरेन रिजिजू (कानून और न्याय) और सर्बानंद सोनोवाल (शिपिंग, बंदरगाह और जलमार्ग और आयुष) कैबिनेट मंत्री हैं, रामेश्वर तेली (पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस और श्रम और रोजगार), डॉ. आरके रंजन सिंह (एमईए) और प्रतिमा भौमिक (सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय) तीन कनिष्ठ मंत्री हैं.

पढ़ें- मोदी सरकार के मंत्रियों को 15 अगस्त तक दिल्ली में रहने के निर्देश !

विवादास्पद कृषि कानूनों के लागू होने के कारण 2024 के संसदीय चुनावों में भाजपा और उसके सहयोगियों के लिए तस्वीर बहुत अच्छी नहीं है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब और राजस्थान के कुछ हिस्सों में उसके समर्थन आधार में गिरावट दिखाई दे सकती है. पूर्वोत्तर जो पार्टी के 25 सांसदों को लोकसभा भेजता था, बीजेपी के पास 14 सीटें हैं. यही वजह है कि पार्टी ठोस नींव पर प्रहार करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है.

नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को कैबिनेट में व्यापक बदलाव किया है. इस जंबो साइज विस्तार (jumbo-size expansion) में 2024 के चुनावों का खास ध्यान रखा गया है. जातिगत आंकड़ें तो कम से कम यही बताते हैं. इस बदलाव में 62 प्रतिशत मंत्री ओबीसी, एससी या एसटी समुदायों से हैं. इन तीन कैटेगरी की देश की आबादी लगभग 66 प्रतिशत है. साफ जाहिर है कि बदलाव का मुख्य उद्देश्य 'लोकलुभावन' है.

मंत्रिपरिषद की औसत आयु भी तीन वर्ष घटकर 61 वर्ष से 58 वर्ष हो गई है जबकि नव-शपथ ग्रहण करने वाले मंत्रियों की औसत आयु 56 वर्ष है. जाहिर है, 'पुराने' गार्ड ने 'नए' को रास्ता दे दिया है.

राजनीति के दिग्गज माने जाने वाले रविशंकर प्रसाद, प्रकाश जावड़ेकर, हर्षवर्धन और संतोष गंगवार जैसे कुछ वरिष्ठों को शामिल न किया जाना आश्चर्यजनक रहा. रमेश पोखरियाल निशंक (Ramesh Pokhriyal Nishank), डीवी सदानंद गौड़ा (D V Sadananda Gowda), थावरचंद गहलोत (Thaawarchand Gehlot ) और बाबुल सुप्रियो (Babul Supriyo) को भी कैबिनेट में जगह नहीं मिली. गौरतलब है कि अटल बिहारी वाजपेयी के साथ दो दशक से भी अधिक 'पुराने गार्ड' से केवल राजनाथ सिंह और मुख्तार अब्बास नकवी ही बचे हैं.

महत्व और निहितार्थ:

1 : कानून और आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद (Ravi Shankar Prasad) को अचानक हटाए जाने को अमेरिकी सरकार, पश्चिम और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया दिग्गजों को शांत करने के कदम के रूप में देखा जा सकता है, जिनके साथ सरकार का काफी आमना-सामना हुआ है. इसके अलावा, अनुच्छेद 370 को निरस्त करने वाले कानून, कश्मीर में इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाने, नागरिकता संशोधन अधिनियम आदि को अमेरिका और पश्चिमी देशों का नजरिया सकारात्मक नहीं रहा है.

जो बाइडेन (Joe Biden) के नेतृत्व वाले अमेरिकी शासन ने अधिकारों के मुद्दों पर भी अपना ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया है. भविष्य में इस मुद्दे पर और ज्यादा ध्यान दिए जाने की उम्मीद है, क्योंकि हाल ही में आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी का निधन हुआ है जिसके बाद अमेरिका सहित अंतरराष्ट्रीय मंच से नकारात्मक टिप्पणियां सामने आई हैं. प्रसाद को हटाना एक आसान तरीका हो सकता है कि इन गंभीर मामलों को शांत किया जाए. प्रधानमंत्री साल के अंत तक अमेरिका यात्रा कर सकते हैं, ऐसे में इस कदम से अनुकूल माहौल बनेगा.

2: स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन (Harshvardhan) और उनके उप मंत्री अश्विनी चौबे का हटाया जाना इस बात का संकेत है कि कोविड महामारी की घातक दूसरी लहर का प्रबंधन उत्तर प्रदेश में होने वाले चुनाव में मुद्दा बन सकता था. इसलिए ये कदम उठाया गया.

3 : डॉ. एस जयशंकर के नेतृत्व वाले विदेश मंत्रालय में अब तीन कनिष्ठ मंत्री हैं. वी मुरलीधरन के अलावा, दो और लोगों मीनाक्षी लेखी और राजकुमार रंजन सिंह ने बुधवार को शपथ ली. ये आने वाले दिनों में मंत्रालय की व्यापक और महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है. वास्तव में विदेश नीति ने बहुत लंबे समय के बाद सरकार में महत्व प्राप्त किया है.

दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास पढ़ाने वाले प्रोफेसर कुमार संजय सिंह कहते हैं. '1971 के युद्ध के पहले और बाद जिस तरह से भारत ने अपना रोल निभाया उसके बाद से भारत के लिए विदेश नीति के लिए अब तक का सबसे महत्वपूर्ण समय है. भारत इस क्षेत्र में बढ़ते चीन को रोकने के लिए जो भूमिका निभाना चाहता है उसमें कई चुनौतियां हैं. एलओसी (पाकिस्तान के साथ वास्तविक सीमा), एलएसी (चीन के साथ वास्तविक सीमा), पश्चिम एशिया जैसे मुद्दे हैं. ऐसे में अमेरिका और यूरोपीय संघ के साथ संबंधों को मजबूत करने की आवश्यकता है. विदेश मंत्रालय में इन कनिष्ठ मंत्रियों का शामिल किया जाना उसी का संकेत है.'

4 : पूर्व आईएएस अधिकारी और ओडिशा से भाजपा के राज्यसभा सदस्य अश्विनी वैष्णव को शामिल करना जो ओडिशा के मुख्यमंत्री और बीजू जनता दल सुप्रीमो नवीन पटनायक के करीबी माने जाते हैं, महत्वपूर्ण है. यह विपक्षी दलों द्वारा भाजपा के खिलाफ एक साझा मोर्चे के रूप में एकजुट होने के कदम को कुंद करने के लिए है.

5 : इसी तरह, नारायण राणे को शामिल करने से महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना के बीच तालमेल की सभी उम्मीदों पर पानी फिर गया. जैसा कि ज्ञात है राणे और उद्धव ठाकरे के बीच ज्यादा मनमुटाव नहीं है. सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) मंत्रालय में मंत्री के रूप में कार्यभार संभालने के दौरान गुरुवार को राणे में जुझारूपन दिखाई दिया. हालांकि महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे ने उन्हें (राणे) को बधाई देने के लिए बड़ा दिल नहीं दिखाया.

6 : नवीनतम मंत्रिस्तरीय विस्तार ने परंपरागत रूप से कम प्रतिनिधित्व वाले पूर्वोत्तर क्षेत्र से अब तक की सबसे बड़ी उपस्थिति देखी है. इस क्षेत्र के पांच मंत्री हैं, जो इस क्षेत्र के सात राज्यों में से चार का प्रतिनिधित्व करते हैं.

पढ़ें- मिशन 2022 को ध्यान में रखकर हुआ है मोदी मंत्रिमंडल का विस्तार

किरेन रिजिजू (कानून और न्याय) और सर्बानंद सोनोवाल (शिपिंग, बंदरगाह और जलमार्ग और आयुष) कैबिनेट मंत्री हैं, रामेश्वर तेली (पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस और श्रम और रोजगार), डॉ. आरके रंजन सिंह (एमईए) और प्रतिमा भौमिक (सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय) तीन कनिष्ठ मंत्री हैं.

पढ़ें- मोदी सरकार के मंत्रियों को 15 अगस्त तक दिल्ली में रहने के निर्देश !

विवादास्पद कृषि कानूनों के लागू होने के कारण 2024 के संसदीय चुनावों में भाजपा और उसके सहयोगियों के लिए तस्वीर बहुत अच्छी नहीं है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब और राजस्थान के कुछ हिस्सों में उसके समर्थन आधार में गिरावट दिखाई दे सकती है. पूर्वोत्तर जो पार्टी के 25 सांसदों को लोकसभा भेजता था, बीजेपी के पास 14 सीटें हैं. यही वजह है कि पार्टी ठोस नींव पर प्रहार करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है.

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