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सोनभद्र से लखीमपुर तक, जानिए कैसे पॉलिटिक्स में 'नाइट वॉचमैन' बनकर उभरीं प्रिंयका गांधी

चार अक्टूबर तड़के करीब पौने दो बजे यूपी पुलिस से तीखे सवाल-जवाब करतीं प्रियंका गांधी ने पैदल ही लखीमपुर का रास्ता पकड़ लिया. यह वो वक्त था जब ज्यादातर नेता ट्विटरबाजी, बयानबाजी के बाद आराम फरमा रहे थे. कुछ सुबह होने की राह देख रहे थे. लेकिन ठीक इसी वक्त प्रियंका रात की खामोशी को चीरती जनता की आवाज बुलंद कर रहीं थीं. दरअसल, यह वाकया जुलाई 2019 को यूपी के सोनभद्र में उभ्भा नरसंहार की याद दिला रहा था, जब दबंगों ने 11 आदिवासियों को गोलियों से भून दिया था. तब प्रियंका ऐसी ही स्याह रात में उभ्भा जाने के रास्ते में थीं और उन्हें मिर्जापुर में स्थित ऐतिहासिक चुनार किले में रात बितानी पड़ी थी. पढ़ें यह विशेष रिपोर्ट.

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Published : Oct 4, 2021, 4:37 AM IST

Updated : Oct 4, 2021, 5:24 AM IST

हैदराबाद : राजनीति में मुद्दे किसी के लिए फायदेमंद होते हैं तो किसी के लिए नुकसानदेह साबित होते हैं. फिर भी राजनीति इन्हीं मुद्दों के इर्द-गिर्द ही घूमती रहती है. यूपी के लखीमपुर में हुई हिंसक घटना ने उत्तर प्रदेश की सुस्त पड़ी राजनीतिक इकाईयों को वह मुद्दा दे दिया है, जिसे आगामी विधानसभा चुनाव तक बनाए रखने की जिम्मेदारी अब विपक्षी दल निभाने की कोशिश करेंगे. वहीं सत्तारूढ़ बीजेपी इस मुद्दे से अपना दामन बचाकर विपक्ष को ही कटघरे में खड़ा करने में कोई कोताही नहीं बरतेगी. दरअसल, यही चुनावी राजनीति का तकाजा भी है.

हालांकि, इन सबसे इतर इस पूरे प्रकरण में एक बार फिर प्रियंका गांधी पॉलिटिक्स में 'नाइट वॉचमैन' की भूमिका निभाती दिख रही हैं और अन्य विपक्षी दलों से आगे निकलती जा रही हैं. क्योंकि उन्होंने कांग्रेस के डूबते सूरज को फिर से चमकाने के लिए सुबह तक का इंतजार नहीं किया बल्कि रात में ही रोशनी की मशाल लेकर निकल पड़ीं. खबर लिखे जाने तक प्रियंका गांधी के सीतापुर जिले के सिंधौली पहुंचने की सूचना थी और पुलिस उन्हें जगह-जगह रोकने की असफल कोशिशें कर रही है.

आधिकारिक बयान के अनुसार तीन अक्टूबर को लखीमपुर खीरी की हिंसक घटना में चार किसानों सहित कुल आठ लोगों की मौतें हो चुकी हैं. विपक्ष ने सरकार पर बयानों से हमला बोला, ट्विटर से निशाना साधा और सियासी तीर छोड़ने के लिए चार अक्टूबर की सुबह लखीमपुर कूच का ऐलान भी किया है. हालांकि ऐसे हालातों में सरकार के लिए रात भर का वक्त काफी है कि वह अपनी तैयारियां पूरी कर ले ताकि सुबह जब नेताओं के लाव-लश्कर निकलें तो उन्हें रोका जा सके.

इतना ही नहीं इस रोकथाम में सरकार और विपक्ष को बराबर की 'फुटेज' मिल सके, इसकी व्यवस्था भी रात के वक्त में ही हो जाए. हालांकि राजनीति के इन पारंपरिक हथकंडों से अलग प्रियंका गांधी वाड्रा ने एक नई लकीर खींचने की कोशिश की है जिसे 'नजरअंदाज' तो किया जा सकता है लेकिन 'झुठलाया' नहीं जा सकता.

उभ्भा नरसंहार में क्या हुआ था

कुछ ऐसा ही प्रियंका ने उस वक्त किया था जब सोनभद्र के उभ्भा गांव में जमीन के खूनी विवाद में 11 आदिवासियों की हत्या कर दी गई थी. तब भी विपक्ष ने बयानों के कई सियासी बम फोड़े लेकिन पहाड़ी गांव की पगडंडियों को नापने का काम प्रियंका ने ही किया था. तब वाराणसी से रवाना होने के बाद प्रियंका गांधी को मिर्जापुर जिले में ही पुलिस ने रोक लिया और आगे नहीं जाने दिया गया.

शाम हो चली थी लेकिन प्रियंका जिद पर अड़ी रहीं. धीरे-धीरे रात हो गई और प्रियंका गांधी ने वहीं पर चुनार के ऐतिहासिक किले की प्राचीरों में ही रात गुजारने का फैसला किया. यह सुनकर प्रशासन के होश उड़ गए. आस-पास के जिलों से कांग्रेसी कार्यकर्ता चुनार पहुंचने लगे और वहां इतनी भीड़ जमा हो गई कि प्रशासन के हाथ-पांव फूल गए. किले में गहमागहमी बढ़ गई और गंगा की खामोश लहरें भी शोर करने लगीं.

आदिवासी महिलाएं भी पहुंची मिलने

इसी दरम्यान एक और वाक्या हुआ कि चुनार किले से करीब 60 किमी दूर उभ्भा गांव की कुछ आदिवासी महिलाएं रातभर पैदल चलकर प्रियंका से मिलने चुनार पहुंचे गईं. यह घटनाक्रम सरकार, स्थानीय प्रशासन के लिए गले की हड्डी बन गया और उन्हें प्रियंका को सोनभद्र जाने की इजाजत देनी ही पड़ी. उस वक्त प्रियंका गांधी ने रातभर कार्यकर्ताओं से संवाद किया और मुश्किल से घंटे भर ही आराम किया.

अलसुबह ही उनका काफिला सोनभद्र के लिए रवाना हो गया. वे गांव पहुंची तो आदिवासी बस्ती तक जाने का सिर्फ एक ही रास्ता था जो खेत की पगडंडियों से होकर गुजरता था. प्रियंका ने पैदल ही वह रास्ता तय किया और पीड़ित परिवार की महिलाओं से जाकर मिलीं. आत्मीयता की वह तस्वीरें आज भी लोगों के जेहन में कायम हैं.

लखनऊ में हाई वोल्टेज ड्रामा

प्रियंका गांधी वाड्रा का ऐसा ही रूप लखीमपुर घटना के बाद दिख रहा है. आधी रात को लखनऊ पहुंचने के बाद उन्होंने सीधे लखीमपुर का रूख किया तो पुलिस को घबराहट होने लगी. रोकने की तमाम कोशिशें हुईं लेकिन पॉलिटिक्स की 'नाइट वॉचमैन' को रोक पाना मुश्किल रहा. उन्होंने यह आरोप लगाया कि रास्ते में जगह-जगह पुलिस उन्हें रोकने का प्रयास कर रही है. खबर लिखे जाने तक प्रियंका गांधी के सीतापुर जिले के सिंधौली पहुंचने की सूचना थी.

कांग्रेस की उत्तर प्रदेश इकाई निरंतर ट्विटर के जरिए पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी के काफिले के आगे बढ़ने और पुलिस द्वारा उन्हें रोकने के कथित प्रयास किए जाने संबंधी जानकारी साझा कर रही है. कांग्रेस ट्विटर पर नाकों पर पुलिस द्वारा काफिले को रोके जाने का वीडियो भी साझा कर रही है.

यह भी पढ़ें-यह देश किसानों का है, बीजेपी का नहीं...कहकर पैदल ही निकल पड़ीं प्रियंका, कुछ नेता 'नजरबंद'

गौरतलब है कि इससे पहले पार्टी ने आशंका जताई थी कि प्रियंका को लखीमपुर खीरी जाने से रोकने के लिए उन्हें उत्तर प्रदेश पुलिस नजरबंद कर सकती है लेकिन ऐसा हो न सका क्योंकि यह राजनीति की प्रियंका स्टाइल है जिसकी कॉपी करना मौजूदा समय में किसी अन्य राजनेता के लिए आसान नहीं है.

हैदराबाद : राजनीति में मुद्दे किसी के लिए फायदेमंद होते हैं तो किसी के लिए नुकसानदेह साबित होते हैं. फिर भी राजनीति इन्हीं मुद्दों के इर्द-गिर्द ही घूमती रहती है. यूपी के लखीमपुर में हुई हिंसक घटना ने उत्तर प्रदेश की सुस्त पड़ी राजनीतिक इकाईयों को वह मुद्दा दे दिया है, जिसे आगामी विधानसभा चुनाव तक बनाए रखने की जिम्मेदारी अब विपक्षी दल निभाने की कोशिश करेंगे. वहीं सत्तारूढ़ बीजेपी इस मुद्दे से अपना दामन बचाकर विपक्ष को ही कटघरे में खड़ा करने में कोई कोताही नहीं बरतेगी. दरअसल, यही चुनावी राजनीति का तकाजा भी है.

हालांकि, इन सबसे इतर इस पूरे प्रकरण में एक बार फिर प्रियंका गांधी पॉलिटिक्स में 'नाइट वॉचमैन' की भूमिका निभाती दिख रही हैं और अन्य विपक्षी दलों से आगे निकलती जा रही हैं. क्योंकि उन्होंने कांग्रेस के डूबते सूरज को फिर से चमकाने के लिए सुबह तक का इंतजार नहीं किया बल्कि रात में ही रोशनी की मशाल लेकर निकल पड़ीं. खबर लिखे जाने तक प्रियंका गांधी के सीतापुर जिले के सिंधौली पहुंचने की सूचना थी और पुलिस उन्हें जगह-जगह रोकने की असफल कोशिशें कर रही है.

आधिकारिक बयान के अनुसार तीन अक्टूबर को लखीमपुर खीरी की हिंसक घटना में चार किसानों सहित कुल आठ लोगों की मौतें हो चुकी हैं. विपक्ष ने सरकार पर बयानों से हमला बोला, ट्विटर से निशाना साधा और सियासी तीर छोड़ने के लिए चार अक्टूबर की सुबह लखीमपुर कूच का ऐलान भी किया है. हालांकि ऐसे हालातों में सरकार के लिए रात भर का वक्त काफी है कि वह अपनी तैयारियां पूरी कर ले ताकि सुबह जब नेताओं के लाव-लश्कर निकलें तो उन्हें रोका जा सके.

इतना ही नहीं इस रोकथाम में सरकार और विपक्ष को बराबर की 'फुटेज' मिल सके, इसकी व्यवस्था भी रात के वक्त में ही हो जाए. हालांकि राजनीति के इन पारंपरिक हथकंडों से अलग प्रियंका गांधी वाड्रा ने एक नई लकीर खींचने की कोशिश की है जिसे 'नजरअंदाज' तो किया जा सकता है लेकिन 'झुठलाया' नहीं जा सकता.

उभ्भा नरसंहार में क्या हुआ था

कुछ ऐसा ही प्रियंका ने उस वक्त किया था जब सोनभद्र के उभ्भा गांव में जमीन के खूनी विवाद में 11 आदिवासियों की हत्या कर दी गई थी. तब भी विपक्ष ने बयानों के कई सियासी बम फोड़े लेकिन पहाड़ी गांव की पगडंडियों को नापने का काम प्रियंका ने ही किया था. तब वाराणसी से रवाना होने के बाद प्रियंका गांधी को मिर्जापुर जिले में ही पुलिस ने रोक लिया और आगे नहीं जाने दिया गया.

शाम हो चली थी लेकिन प्रियंका जिद पर अड़ी रहीं. धीरे-धीरे रात हो गई और प्रियंका गांधी ने वहीं पर चुनार के ऐतिहासिक किले की प्राचीरों में ही रात गुजारने का फैसला किया. यह सुनकर प्रशासन के होश उड़ गए. आस-पास के जिलों से कांग्रेसी कार्यकर्ता चुनार पहुंचने लगे और वहां इतनी भीड़ जमा हो गई कि प्रशासन के हाथ-पांव फूल गए. किले में गहमागहमी बढ़ गई और गंगा की खामोश लहरें भी शोर करने लगीं.

आदिवासी महिलाएं भी पहुंची मिलने

इसी दरम्यान एक और वाक्या हुआ कि चुनार किले से करीब 60 किमी दूर उभ्भा गांव की कुछ आदिवासी महिलाएं रातभर पैदल चलकर प्रियंका से मिलने चुनार पहुंचे गईं. यह घटनाक्रम सरकार, स्थानीय प्रशासन के लिए गले की हड्डी बन गया और उन्हें प्रियंका को सोनभद्र जाने की इजाजत देनी ही पड़ी. उस वक्त प्रियंका गांधी ने रातभर कार्यकर्ताओं से संवाद किया और मुश्किल से घंटे भर ही आराम किया.

अलसुबह ही उनका काफिला सोनभद्र के लिए रवाना हो गया. वे गांव पहुंची तो आदिवासी बस्ती तक जाने का सिर्फ एक ही रास्ता था जो खेत की पगडंडियों से होकर गुजरता था. प्रियंका ने पैदल ही वह रास्ता तय किया और पीड़ित परिवार की महिलाओं से जाकर मिलीं. आत्मीयता की वह तस्वीरें आज भी लोगों के जेहन में कायम हैं.

लखनऊ में हाई वोल्टेज ड्रामा

प्रियंका गांधी वाड्रा का ऐसा ही रूप लखीमपुर घटना के बाद दिख रहा है. आधी रात को लखनऊ पहुंचने के बाद उन्होंने सीधे लखीमपुर का रूख किया तो पुलिस को घबराहट होने लगी. रोकने की तमाम कोशिशें हुईं लेकिन पॉलिटिक्स की 'नाइट वॉचमैन' को रोक पाना मुश्किल रहा. उन्होंने यह आरोप लगाया कि रास्ते में जगह-जगह पुलिस उन्हें रोकने का प्रयास कर रही है. खबर लिखे जाने तक प्रियंका गांधी के सीतापुर जिले के सिंधौली पहुंचने की सूचना थी.

कांग्रेस की उत्तर प्रदेश इकाई निरंतर ट्विटर के जरिए पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी के काफिले के आगे बढ़ने और पुलिस द्वारा उन्हें रोकने के कथित प्रयास किए जाने संबंधी जानकारी साझा कर रही है. कांग्रेस ट्विटर पर नाकों पर पुलिस द्वारा काफिले को रोके जाने का वीडियो भी साझा कर रही है.

यह भी पढ़ें-यह देश किसानों का है, बीजेपी का नहीं...कहकर पैदल ही निकल पड़ीं प्रियंका, कुछ नेता 'नजरबंद'

गौरतलब है कि इससे पहले पार्टी ने आशंका जताई थी कि प्रियंका को लखीमपुर खीरी जाने से रोकने के लिए उन्हें उत्तर प्रदेश पुलिस नजरबंद कर सकती है लेकिन ऐसा हो न सका क्योंकि यह राजनीति की प्रियंका स्टाइल है जिसकी कॉपी करना मौजूदा समय में किसी अन्य राजनेता के लिए आसान नहीं है.

Last Updated : Oct 4, 2021, 5:24 AM IST
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