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साइक्लोन : जान का नुकसान तो कम हुआ, पर संपत्ति की क्षति कब तक ?

एक साइक्लोन जाने के बाद हमलोग दूसरे साइक्लोन के आने की आशंका से चिंतित हैं. इसका असर कम से कम हो सके, सरकार ने इसकी पूरी तैयारी की है. सवाल ये है कि ऐसी स्थिति का सामना करने कोई निश्चित तरीका विकसित क्यों नहीं हो पाया है. पूर्व चेतावनी की वजह से जान का नुकसान तो कम हो रहा है, लेकिन संपत्ति को अब भी बड़ी मात्रा में क्षति पहुंच रही है. जिस प्रोजेक्ट को 10 साल पहले तैयार किया गया था, आज तक उसे पूरा नहीं किया गया है. ऐसे में साइक्लोन तो आते रहेंगे, लेकिन हमारा नुकसान कभी कम नहीं होगा.

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साइक्लोन (डिजाइन फोटो)
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Published : May 23, 2021, 4:16 PM IST

हैदराबाद : करीब दो महीने पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्राकृतिक आपदा से लोगों के जीवनयापन को बचाने के लिए ढांचागत तैयारी को मजबूत करने की बात कही थी. इस पर कितना अमल हुआ, पता नहीं. लेकिन हमलोग इस साल एक साइक्लोन जाने के बाद दूसरे के आने की आशंका से चिंतित हैं. देश के पश्चिमी हिस्से में तौकते तूफान के आने की वजह से भारी नुकसान पहुंचा. पूर्व चेतावनी की वजह से जान का नुकसान कम जरूर हुआ, संपत्ति के नुकसान का जायजा अभी लिया जा रहा है.

अनियंत्रित कार्बन उत्सर्जन की वजह से पर्यावरण में बदलाव आ रहा है और इसकी वजह से अरब सागर ज्यादा गर्म हो जा रहा है. इसकी वजह से पश्चिमी भारत पर तूफान का अधिक खतरा मंडराता रहता है. विशेषज्ञों ने पश्चिमी इलाके की तरह पूर्वी इलाके को लेकर भी चेतावनी दी है.

ट्रॉपिकल साइक्लोन का मात्र चार फीसदी ही बंगाल की खाड़ी में निर्माण होता है. लेकिन साइक्लोन की वजह से पूरी दुनिया में जितना नुकसान होता है, उसका 80 फीसदी नुकसान सिर्फ इन तूफानों की वजह से होता है. अनुसंधानकर्ताओं का दावा है कि अरब सागर में उठने वाले साइक्लोन भी उतने ही प्रलंयकारी और नाशक हैं. उनके अनुसार हिंद महासागर पर अभी और अधिक अध्ययन करने की जरूरत है. मेट्रोलॉजी विभाग के महानिदेशक ने कहा कि चेतावनी पहले ही जारी कर देने की वजह से जान का नुकसान तो कम हो रहा है, लेकिन हमारा उद्देश्य अब संपत्ति के कम से कम नुकसान पहुंचने पर केंद्रित है, क्योंकि इससे सामाजिक आर्थिक स्थिति सीधे तौर पर प्रभावित हो जाती है.

दो साल पहले फनी साइक्लोन की वजह से प. बंगाल और बांग्लादेश में 59 हजार करोड़ की संपत्ति का नुकसान हुआ था. पिछले साल प.बंगाल में अंफान की वजह से इसका दोगुना नुकसान पहुंचा था. हमारी समुद्री सीमा 7000 किलोमीटर है. इनमें पांच हजार किलोमीटर तूफान से प्रभावित होता है. करीब 10 साल पहले केंद्र सरकार ने तूफान के दौरान संपत्ति के कम से कम नुकसान होने के उद्देश्य से समुद्र तटीय इलाकों के लिए राष्ट्रीय साइक्लोन रिस्क मिटिगेशन प्रोजेक्ट को लेकर योजना बनाई थी. छह साल बाद मोदी सरकार ने गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केलल और प. बंगाल के लिए इस प्रोजेक्ट को मंजूरी दी. 2361 करोड़ का बजट रखा गया. पिछले साल मार्च तक इस प्रोजेक्ट को पूरा होना था. लेकिन आज तक यह प्रोजेक्ट पूरा नहीं हुआ है. इस प्रोजेक्ट के प्रति उदासीन रवैये की हमलोग कीमत अदा कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें : कैसे रखा जाता है साइक्लोन का नाम, जानें

करीब 20 साल पहले सुपर साइक्लोन से सीख लेते हुए ओडिशा ने अपने इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत किया. इसके बाद साइक्लोन तो आए, लेकिन यहां पर उसका असर पहले ही अपेक्षा कम दिखने लगे हैं. गांव तक वोलंटियर को तैयार किया गया है. राशन किट वितरण व्यवस्था को स्थापित किया गया है. दुनिया के 20 सबसे अधिक साइक्लोन प्रवण इलाकों में से 13 भारत में हैं. इनमें मुंबई और चेन्नई भी हैं. अगर इन शहरों को सुरक्षित करना है, तो उसके लिए बेहतर तैयारी रखने की जरूरत है. अगर भारत को उन देशों के बराबर खड़ा होना है जो समुद्र की संपदा से धन बना रहे हैं, तो उसे तटीय राज्यों के साथ आपदा सुरक्षा तंत्र को मजबूत करना चाहिए. इन चक्रवातों के कारण होने वाले जलवायु परिवर्तन से देश को बचाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को अपनी जिम्मेदारियों को और अधिक समर्पित तरीके से पूरा करना चाहिए.

हैदराबाद : करीब दो महीने पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्राकृतिक आपदा से लोगों के जीवनयापन को बचाने के लिए ढांचागत तैयारी को मजबूत करने की बात कही थी. इस पर कितना अमल हुआ, पता नहीं. लेकिन हमलोग इस साल एक साइक्लोन जाने के बाद दूसरे के आने की आशंका से चिंतित हैं. देश के पश्चिमी हिस्से में तौकते तूफान के आने की वजह से भारी नुकसान पहुंचा. पूर्व चेतावनी की वजह से जान का नुकसान कम जरूर हुआ, संपत्ति के नुकसान का जायजा अभी लिया जा रहा है.

अनियंत्रित कार्बन उत्सर्जन की वजह से पर्यावरण में बदलाव आ रहा है और इसकी वजह से अरब सागर ज्यादा गर्म हो जा रहा है. इसकी वजह से पश्चिमी भारत पर तूफान का अधिक खतरा मंडराता रहता है. विशेषज्ञों ने पश्चिमी इलाके की तरह पूर्वी इलाके को लेकर भी चेतावनी दी है.

ट्रॉपिकल साइक्लोन का मात्र चार फीसदी ही बंगाल की खाड़ी में निर्माण होता है. लेकिन साइक्लोन की वजह से पूरी दुनिया में जितना नुकसान होता है, उसका 80 फीसदी नुकसान सिर्फ इन तूफानों की वजह से होता है. अनुसंधानकर्ताओं का दावा है कि अरब सागर में उठने वाले साइक्लोन भी उतने ही प्रलंयकारी और नाशक हैं. उनके अनुसार हिंद महासागर पर अभी और अधिक अध्ययन करने की जरूरत है. मेट्रोलॉजी विभाग के महानिदेशक ने कहा कि चेतावनी पहले ही जारी कर देने की वजह से जान का नुकसान तो कम हो रहा है, लेकिन हमारा उद्देश्य अब संपत्ति के कम से कम नुकसान पहुंचने पर केंद्रित है, क्योंकि इससे सामाजिक आर्थिक स्थिति सीधे तौर पर प्रभावित हो जाती है.

दो साल पहले फनी साइक्लोन की वजह से प. बंगाल और बांग्लादेश में 59 हजार करोड़ की संपत्ति का नुकसान हुआ था. पिछले साल प.बंगाल में अंफान की वजह से इसका दोगुना नुकसान पहुंचा था. हमारी समुद्री सीमा 7000 किलोमीटर है. इनमें पांच हजार किलोमीटर तूफान से प्रभावित होता है. करीब 10 साल पहले केंद्र सरकार ने तूफान के दौरान संपत्ति के कम से कम नुकसान होने के उद्देश्य से समुद्र तटीय इलाकों के लिए राष्ट्रीय साइक्लोन रिस्क मिटिगेशन प्रोजेक्ट को लेकर योजना बनाई थी. छह साल बाद मोदी सरकार ने गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केलल और प. बंगाल के लिए इस प्रोजेक्ट को मंजूरी दी. 2361 करोड़ का बजट रखा गया. पिछले साल मार्च तक इस प्रोजेक्ट को पूरा होना था. लेकिन आज तक यह प्रोजेक्ट पूरा नहीं हुआ है. इस प्रोजेक्ट के प्रति उदासीन रवैये की हमलोग कीमत अदा कर रहे हैं.

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करीब 20 साल पहले सुपर साइक्लोन से सीख लेते हुए ओडिशा ने अपने इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत किया. इसके बाद साइक्लोन तो आए, लेकिन यहां पर उसका असर पहले ही अपेक्षा कम दिखने लगे हैं. गांव तक वोलंटियर को तैयार किया गया है. राशन किट वितरण व्यवस्था को स्थापित किया गया है. दुनिया के 20 सबसे अधिक साइक्लोन प्रवण इलाकों में से 13 भारत में हैं. इनमें मुंबई और चेन्नई भी हैं. अगर इन शहरों को सुरक्षित करना है, तो उसके लिए बेहतर तैयारी रखने की जरूरत है. अगर भारत को उन देशों के बराबर खड़ा होना है जो समुद्र की संपदा से धन बना रहे हैं, तो उसे तटीय राज्यों के साथ आपदा सुरक्षा तंत्र को मजबूत करना चाहिए. इन चक्रवातों के कारण होने वाले जलवायु परिवर्तन से देश को बचाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को अपनी जिम्मेदारियों को और अधिक समर्पित तरीके से पूरा करना चाहिए.

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