शिवमोग्गा: मुगल बादशाह शाहजहां ने मुमताज की याद में ताजमहल बनवाया था. कर्नाटक के शिवमोग्गा में प्रोफेसर खंडोबाराव ने अपनी दिवंगत पत्नी की स्मृति में एक भव्य संग्रहालय खड़ा कर दिया. यह सिर्फ ईंट-पत्थरों की इमारत नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और इतिहास का एक अनमोल केंद्र भी है. इस वेलेंटाइन डे पर मिलिए उस शख्स से, जिसने अपने प्यार को एक ऐतिहासिक धरोहर में बदल दिया.
प्रोफेसर की प्रेम-कहानीः खंडोबाराव, गांधी नगर शिवमोग्गा के रहनेवाले हैं. उन्होंने इतिहास के व्याख्याता के रूप में कार्य किया. खंडोबाराव की पत्नी का नाम यशोदा था. वह भी इतिहास की प्रोफेसर थीं. खंडोबाराव और यशोदा के बीच प्यार हुआ. 1972 में उनकी शादी हुई. यह अंतरजातीय विवाह था. जब दोनों खुशी-खुशी साथ रह रहे थे, तभी उनकी पत्नी यशोदा की बीमारी से मौत हो गई. पत्नी खांडेबाराव ने पत्नी की याद में कुछ करने को सोचा, और 'अमूल्य शोध' नाम से संग्रहालय बनवाया.
![museum in memory of wife](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/14-02-2025/img-20250214-wa0009_1402newsroom_1739531368_553.jpg)
क्या है उद्देश्यः अमूल्य शोध का उद्देश्य मूल्यवान वस्तुओं को इकट्ठा करना और जानकारी प्रदान करना है. यह केंद्र 16 साल पहले शिवमोग्गा से 15 किलोमीटर दूर लक्किनकोप्पा में करीब डेढ़ एकड़ में बनाया गया. जब आप यहां आएंगे तो सबसे पहले आपको खंडोबाराव की पत्नी का स्मृति कक्ष मिलेगा. यहां यशोदा की तस्वीर के साथ-साथ मैसूर राजाओं के समय इस्तेमाल की जाने वाली विभिन्न वस्तुओं का संग्रह किया गया है. ताड़ के पत्ते पर लिखी लिपि, विभिन्न बंदूकें, प्राचीन वस्तुएं, युद्ध की वस्तुएं, भाले और कई अन्य वस्तुएं रखी गई हैं.
![museum in memory of wife](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/14-02-2025/img-20250214-wa0011_1402newsroom_1739531368_467.jpg)
तीन भागों में बांटा गया हैः अमूल्य शोध को तीन भागों में बांटा गया है. नान्य दर्शिनी, मालेनदा दर्शिनी और भारत दर्शिनी. नान्य दर्शिनी में सिक्कों के आविष्कार से लेकर आज तक के सिक्के हैं. सिक्कों की उत्पत्ति कैसे हुई. अलग-अलग देशों के सिक्के, नोट और प्रतिबंधित नोट प्रदर्शित हैं. किस राजा के शासनकाल में किस तरह के सिक्के बने, इस बारे में भी बताया गया है. सिक्कों से पहले कौड़ी का इस्तेमाल होता था, यह भी बताया गया है.
![museum in memory of wife](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/14-02-2025/img-20250214-wa0006_1402newsroom_1739531368_737.jpg)
मलेनाडा दर्शिनी: मलेनाडा दर्शिनी में शिवप्पनायक महल की प्रतिकृति बनाई गई है. यहां मलेनाडु में इस्तेमाल होने वाली दैनिक वस्तुओं की प्रदर्शनी लगाई गई है और इसके बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है. मलेनाडु में पेड़ों से बनी वस्तुओं का ज़्यादातर इस्तेमाल होता था. चावल भंडारण की वस्तुएं, रोटी बनाने के उपकरण, लकड़ी के बक्से, तांबे के बर्तन, घड़े, पानी भरने के बर्तन, बर्तन, चीनी मिट्टी के बर्तन और कई अन्य वस्तुएं संग्रहित की गई हैं.
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भारत दर्शन: भारत दर्शन में विभिन्न वजन के तराजू, ग्रामोफोन, रेडियो वाला बक्सा, विभिन्न कलाकृतियाँ, पुराने हथियार, विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियां प्रदर्शित हैं. खंडोबाराव ने यह सब अपनी पत्नी की याद में किया है. उन्होंने बिना किसी की मदद लिए यह सब किया, जो उनके सच्चे प्रेम को दर्शाता है. इसके अलावा, प्रांगण में विभिन्न कालखंडों के पत्थर के शिलालेख भी हैं. खंडोबाराव ने शिलालेख में भारतीय संस्कृति के महत्व का संक्षिप्त परिचय लिखा है.
![museum in memory of wife](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/14-02-2025/img-20250214-wa0002_1402newsroom_1739531368_511.jpg)
![museum in memory of wife](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/14-02-2025/img-20250214-wa0004_1402newsroom_1739531368_24.jpg)
"मैंने अपनी पत्नी के निधन के बाद उनकी स्मृति में अमूल्य शोध का निर्माण किया. उनका नाम यशोदा है, इस कारण से, मैंने इसका नाम अमूल्य शोध रखा. यशोदा की याद में बनाए गए स्मारक का नाम 'नेनापु (स्मृति)' रखा गया है. हम दोनों का जीवन विशेष था, यही हमने समाज को दिया है. अमूल्य शोध शुरू किए मुझे 15 साल हो गए हैं. मैं इस अमूल्य शोध के लिए पूरे देश में यात्रा कर रहा हूं. मैंने वहां जो भी कीमती चीजें पाई हैं, उन्हें इकट्ठा करके लाया है. अमूल्य शोध का मतलब है कीमती चीजों को खोजने का संग्रहालय"- खंडोबाराव, सेवानिवृत्त प्रिसिंपल
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