ETV Bharat / business

ट्रंप की टैरिफ वाली चेतावनी, फिर 'मेक इन इंडिया' का क्या होगा ? - RECIPROCAL TARIFF

अगर भारत और अमेरिका के बीच टैरिफ की समानता हो जाए, तो फिर मेक इन इंडिया का क्या होगा. पढ़ें

PM Modi, Trump
पीएम मोदी, डोनाल्ड ट्रंप (X-account, PM Modi)
author img

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Feb 14, 2025, 7:28 PM IST

Updated : Feb 14, 2025, 7:50 PM IST

हैदराबाद : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जब से रेसिप्रोकल टैरिफ की बात कही है, पूरी दुनिया में इसकी चर्चा हो रही है. कनाडा, मेक्सिको और चीन के बाद अब ट्रंप ने भारत समेत उन सभी देशों को आगाह किया है, जहां पर अमेरिकी सामानों पर अधिक टैरिफ लगाया जाता है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में ट्रंप ने कहा कि वह बराबरी का दर्जा चाहते हैं. उन्होंने कहा कि जो कोई भी देश हो, जितना टैरिफ वह हम पर लगाएगा, हम भी उतना ही टैक्स लगाएंगे. अब सवाल ये उठता है कि जब ट्रंप ने कहा कि टैरिफ मामले में वह किसी को भी नहीं छोड़ेंगे, तो फिर डब्लूटीओ का क्या होगा ? सालों के विचार विमर्श और लंबी बहस के बाद दुनिया डब्लूटीओ पर सहमत हुई थी.

रेसिप्रोकल टैरिफ - टैरिफ का सीधा मतलब होता है आयात होने वाले सामानों पर कर का लगाया जाना. इसकी वजह से कीमतें बढ़ जाती हैं. जितना अधिक टैरिफ होगा, उतना ही अधिक उस सामान का दाम बढ़ जाएगा. रेसिप्रोकल का अर्थ हुआ, अगर आप किसी भी वस्तु पर एक निश्चित टैक्स लगाते हैं, तो हम भी आपके यहां से आने वाली वस्तुओं पर उतना ही टैक्स लगा देंगे. ऐसी स्थिति में विकसित और विकासशील देशों के बीच विभेद मिट जाएगा, लेकिन इसका सीधा खामियाजा कम विकसित या फिर विकासशील देशों को भुगतना पड़ सकता है.

डब्लूटीओ का क्या होगा

डब्लूटीओ ने विकसित और विकासशील देशों के बीच होने वाले व्यापारिक असामनता को लेकर बड़ा फैसला किया था. कम विकसित देशों को नुकसान न हो, इसके लिए डब्लूटीओ ने बहुत सारी शर्तों को अंतिम स्वरूप दिया था. इसके अनुसार विकासशील देशों के साथ विशेष तरीके से पेश आना होगा. उनके पास कच्चे माल से लेकर तकनीक और पूंजी का अभाव होता है, लिहाजा विकसित देशों की तरह उनके साथ व्यवहार नहीं किया जा सकता है. उन्हें संरक्षण की जरूरत होगी. अमेरिका जैसे विकसित देशों को कम टैरिफ लगाने होंगे.

डब्लूटीओ की वजह से ही भारत, अमेरिका से आयात होने वाले सामानों पर अधिक कर लगा पाता था, जबकि अमेरिका भारत से निर्यात होने वाले सामानों पर उतना अधिक टैक्स इंपोज नहीं करता था. पर ट्रंप ने सभी कैलकुलेशन को बिगाड़ दिया है.

बोले ट्रंप, मित्र देशों से ही हो रहा बड़ा नुकसान

उन्होंने साफ-साफ कहा है कि उन्हें मित्र देशों से ही नुकसान झेलना पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि मित्र देशों ने अमेरिकी सामानों पर अधिक कर लगाया है. इसलिए अब वे इसे दुरुस्त कर रहे हैं. सरल शब्दों में कहें तो ट्रंप ने अमेरिका में आने वाले सामानों पर उसी स्तर का टैरिफ लगाने की घोषणा की, जैसा कि दूसरे देश अमेरिकी निर्यात पर टैक्स लगा रहे हैं. ट्रंप ने इसे फेयर प्रैक्टिस बताया है.

आप ऐसा भी कह सकते हैं कि यदि भारत अपने निर्यातकों को सब्सिडी प्रदान करता है, तो अमेरिका टैरिफ लेवल का निर्धारण करने के लिए, इसको भी ध्यान में रखेगा और इसे फैक्टरिंग करने के बाद टैरिफ तय करेगा.

पीएलआई योजना पर भी उठ सकते हैं सवाल

एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत ने 2022-24 के बीच प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेटिव (पीएलआई) योजना के तहत करीब 8700 करोड़ रु. की मदद कंपनियों को की है, ताकि वे सस्ते दामों पर निर्यात कर सकें. देश में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ावा मिले, इसके लिए सरकार ने पीएलआई स्कीम की घोषणा की थी. लेकिन ट्रंप के फैसलों ने इस पर भी ग्रहण लगा दिया है.

ट्रंप ने यह भी कहा कि यूरोपियन यूनियन ने अमेरिकी कंपनियों के साथ बराबरी का व्यवहार नहीं किया, यहां तक कि वहां की कोर्ट भी अमेरिकी कंपनियों के प्रति निष्पक्ष नहीं रही है.

ट्रेड घाटा एक रिलेटिव स्ट्रेंथ जैसा

वैसे, एक तथ्य यह भी है कि दुनिया के दूसरे देशों के मुकाबले अमेरिका का व्यापारिक घाटा करीब एक ट्रिलियन डॉलर का रहा है. जबकि चीन एक ट्रिलियन डॉलर के ट्रेड सरप्लस में है. यही वजह है कि ट्रंप ने मीडिया के सामने यह भी कहा कि दूसरे देश अमेरिका में आकर अपनी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगा सकते हैं और यहां से वे निर्यात करें. अन्यथा हम उन पर बराबर का टैरिफ लगाएंगे.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक ट्रेड घाटा को लेकर ट्रंप जानबूझकर हाइपर हो रहे हैं. इसमें बताया गया है कि क्योंकि ट्रेड डेफिसिट और ट्रेड सरप्लस एक तुलनात्मक आंकड़ा है, इसे रिलेटिव स्ट्रेंथ के रूप में देखा जाना चाहिए. इसका ये भी मतलब है कि मैन्युफैक्चरर को सही कीमत घर में नहीं मिल रही है, इसलिए वे इसे दूसरे देशों को बेच रहे हैं. यानी अमेरिका मजबूत देश है, तभी तो वहां पर माल की खपत हो रही है.

साथ ही एक देश, यदि दूसरे देश के साथ ट्रेड सरप्लस में है, तो बहुत संभव है कि वह दूसरे देशों के साथ ट्रेड घाटा में होगा. भारत का ही उदाहरण लीजिए, यह वह अमेरिका के साथ ट्रेड सरप्लस में है, तो चीन के साथ ट्रेड घाटा में है.

जानकार ये भी मानते हैं कि अगर भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड बराबरी का होने लगेगा, तो अभी की तुलना में डॉलर की डिमांड बढ़ेगी, जिसका सीधा अर्थ है कि रुपया और अधिक कमजोर हो सकता है. एक अहम बात यह भी है कि मेक इन इंडिया जैसी कोशिशों को बड़ा झटका लगेगा, क्योंकि टैरिफ कम होने की वजह से उपभोक्ताओं को सस्ते में अमेरिकी सामान उपलब्ध हो जाएंगे.

ये भी पढ़ें : मोदी-ट्रंप मुलाकात का भारत-अमेरिका पर क्या होगा असर? विशेषज्ञों की खास राय

हैदराबाद : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जब से रेसिप्रोकल टैरिफ की बात कही है, पूरी दुनिया में इसकी चर्चा हो रही है. कनाडा, मेक्सिको और चीन के बाद अब ट्रंप ने भारत समेत उन सभी देशों को आगाह किया है, जहां पर अमेरिकी सामानों पर अधिक टैरिफ लगाया जाता है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में ट्रंप ने कहा कि वह बराबरी का दर्जा चाहते हैं. उन्होंने कहा कि जो कोई भी देश हो, जितना टैरिफ वह हम पर लगाएगा, हम भी उतना ही टैक्स लगाएंगे. अब सवाल ये उठता है कि जब ट्रंप ने कहा कि टैरिफ मामले में वह किसी को भी नहीं छोड़ेंगे, तो फिर डब्लूटीओ का क्या होगा ? सालों के विचार विमर्श और लंबी बहस के बाद दुनिया डब्लूटीओ पर सहमत हुई थी.

रेसिप्रोकल टैरिफ - टैरिफ का सीधा मतलब होता है आयात होने वाले सामानों पर कर का लगाया जाना. इसकी वजह से कीमतें बढ़ जाती हैं. जितना अधिक टैरिफ होगा, उतना ही अधिक उस सामान का दाम बढ़ जाएगा. रेसिप्रोकल का अर्थ हुआ, अगर आप किसी भी वस्तु पर एक निश्चित टैक्स लगाते हैं, तो हम भी आपके यहां से आने वाली वस्तुओं पर उतना ही टैक्स लगा देंगे. ऐसी स्थिति में विकसित और विकासशील देशों के बीच विभेद मिट जाएगा, लेकिन इसका सीधा खामियाजा कम विकसित या फिर विकासशील देशों को भुगतना पड़ सकता है.

डब्लूटीओ का क्या होगा

डब्लूटीओ ने विकसित और विकासशील देशों के बीच होने वाले व्यापारिक असामनता को लेकर बड़ा फैसला किया था. कम विकसित देशों को नुकसान न हो, इसके लिए डब्लूटीओ ने बहुत सारी शर्तों को अंतिम स्वरूप दिया था. इसके अनुसार विकासशील देशों के साथ विशेष तरीके से पेश आना होगा. उनके पास कच्चे माल से लेकर तकनीक और पूंजी का अभाव होता है, लिहाजा विकसित देशों की तरह उनके साथ व्यवहार नहीं किया जा सकता है. उन्हें संरक्षण की जरूरत होगी. अमेरिका जैसे विकसित देशों को कम टैरिफ लगाने होंगे.

डब्लूटीओ की वजह से ही भारत, अमेरिका से आयात होने वाले सामानों पर अधिक कर लगा पाता था, जबकि अमेरिका भारत से निर्यात होने वाले सामानों पर उतना अधिक टैक्स इंपोज नहीं करता था. पर ट्रंप ने सभी कैलकुलेशन को बिगाड़ दिया है.

बोले ट्रंप, मित्र देशों से ही हो रहा बड़ा नुकसान

उन्होंने साफ-साफ कहा है कि उन्हें मित्र देशों से ही नुकसान झेलना पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि मित्र देशों ने अमेरिकी सामानों पर अधिक कर लगाया है. इसलिए अब वे इसे दुरुस्त कर रहे हैं. सरल शब्दों में कहें तो ट्रंप ने अमेरिका में आने वाले सामानों पर उसी स्तर का टैरिफ लगाने की घोषणा की, जैसा कि दूसरे देश अमेरिकी निर्यात पर टैक्स लगा रहे हैं. ट्रंप ने इसे फेयर प्रैक्टिस बताया है.

आप ऐसा भी कह सकते हैं कि यदि भारत अपने निर्यातकों को सब्सिडी प्रदान करता है, तो अमेरिका टैरिफ लेवल का निर्धारण करने के लिए, इसको भी ध्यान में रखेगा और इसे फैक्टरिंग करने के बाद टैरिफ तय करेगा.

पीएलआई योजना पर भी उठ सकते हैं सवाल

एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत ने 2022-24 के बीच प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेटिव (पीएलआई) योजना के तहत करीब 8700 करोड़ रु. की मदद कंपनियों को की है, ताकि वे सस्ते दामों पर निर्यात कर सकें. देश में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ावा मिले, इसके लिए सरकार ने पीएलआई स्कीम की घोषणा की थी. लेकिन ट्रंप के फैसलों ने इस पर भी ग्रहण लगा दिया है.

ट्रंप ने यह भी कहा कि यूरोपियन यूनियन ने अमेरिकी कंपनियों के साथ बराबरी का व्यवहार नहीं किया, यहां तक कि वहां की कोर्ट भी अमेरिकी कंपनियों के प्रति निष्पक्ष नहीं रही है.

ट्रेड घाटा एक रिलेटिव स्ट्रेंथ जैसा

वैसे, एक तथ्य यह भी है कि दुनिया के दूसरे देशों के मुकाबले अमेरिका का व्यापारिक घाटा करीब एक ट्रिलियन डॉलर का रहा है. जबकि चीन एक ट्रिलियन डॉलर के ट्रेड सरप्लस में है. यही वजह है कि ट्रंप ने मीडिया के सामने यह भी कहा कि दूसरे देश अमेरिका में आकर अपनी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगा सकते हैं और यहां से वे निर्यात करें. अन्यथा हम उन पर बराबर का टैरिफ लगाएंगे.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक ट्रेड घाटा को लेकर ट्रंप जानबूझकर हाइपर हो रहे हैं. इसमें बताया गया है कि क्योंकि ट्रेड डेफिसिट और ट्रेड सरप्लस एक तुलनात्मक आंकड़ा है, इसे रिलेटिव स्ट्रेंथ के रूप में देखा जाना चाहिए. इसका ये भी मतलब है कि मैन्युफैक्चरर को सही कीमत घर में नहीं मिल रही है, इसलिए वे इसे दूसरे देशों को बेच रहे हैं. यानी अमेरिका मजबूत देश है, तभी तो वहां पर माल की खपत हो रही है.

साथ ही एक देश, यदि दूसरे देश के साथ ट्रेड सरप्लस में है, तो बहुत संभव है कि वह दूसरे देशों के साथ ट्रेड घाटा में होगा. भारत का ही उदाहरण लीजिए, यह वह अमेरिका के साथ ट्रेड सरप्लस में है, तो चीन के साथ ट्रेड घाटा में है.

जानकार ये भी मानते हैं कि अगर भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड बराबरी का होने लगेगा, तो अभी की तुलना में डॉलर की डिमांड बढ़ेगी, जिसका सीधा अर्थ है कि रुपया और अधिक कमजोर हो सकता है. एक अहम बात यह भी है कि मेक इन इंडिया जैसी कोशिशों को बड़ा झटका लगेगा, क्योंकि टैरिफ कम होने की वजह से उपभोक्ताओं को सस्ते में अमेरिकी सामान उपलब्ध हो जाएंगे.

ये भी पढ़ें : मोदी-ट्रंप मुलाकात का भारत-अमेरिका पर क्या होगा असर? विशेषज्ञों की खास राय

Last Updated : Feb 14, 2025, 7:50 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.