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संविधान की सातवीं अनुसूची पर विचार की जरूरत : वित्त आयोग के चेयरमैन - वित्त आयोग के चेयरमैन

केंद्र और राज्यों के बीच शक्ति संतुलन को लेकर अक्सर बातचीत होती रहती है. अब वित्त आयोग के चेयरमैन ने इसी को लेकर संविधान की सातवीं अनुसूची पर फिर से विचार करने की जरूरत बताई है. पढ़ें रिपोर्ट.

NK singh
एन के सिंह
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Published : Dec 11, 2020, 9:50 PM IST

नई दिल्ली : वित्त आयोग के चेयरमैन एन के सिंह ने शुक्रवार को संविधान की सातवीं अनुसूची पर फिर से विचार किए जाने की आवश्यकता को रेखांकित किया. राष्ट्रीय प्राथमिकताओं और प्रौद्योगिकी में आते बदलाव को देखते हुए उन्होंने यह जरूरत बताई. यह अनुसूची केंद्र और राज्यों के बीच अधिकारों का आवंटित करती है.

क्या है संविधान की 7वीं अनुसूची?

15वें वित्त आयोग के चेयरमैन एन के सिंह का कहना है कि संविधान की 7वीं अनुसूची में तीन सूचियां संघ, राज्य और समवर्ती हैं. इसके तहत केंद्र सरकार को इसकी संघीय सूची के तहत दिए गए विषयों पर कानून बनाने का अधिकार है तो राज्य सरकारों को राज्य सूची में दिए गए विषयों पर कानून बनाने के अधिकार दिए गए हैं. वहीं समवर्ती सूची के तहत आने वाले विषयों पर केंद्र और राज्य दोनों को कानून बनाने के अधिकार दिए गए हैं लेकिन विवाद की स्थिति में केंद्र के कानून ही माने जाएंगे.

अंतरराज्यीय परिषद की जरूरत

प्रमुख वाणिज्य एवं उद्योग मंडल फिक्की की 93वीं वार्षिक आम बैठक को संबोधित करते हुए सिंह ने कहा कि हमें संविधान की सातवीं अनुसूची को और बुनियादी ढंग से फिर से देखने की जरूरत है. सिंह ने कहा कि केंद्र-राज्य संबंधों पर न्यायमूर्ति एमएम पंछी की अध्यक्षता वाले आयोग ने 2010 में यह सिफारिश की थी कि समवर्ती सूची के तहत आने वाले विषयों पर बनने वाले कानूनों पर एक अंतरराज्यीय परिषद के जरिए केंद्र और राज्यों के बीच विचार विमर्श की प्रक्रिया होनी चाहिए.

केंद्र और राज्यों में अधिक मेलजोल की आवश्यकता

सिंह ने कहा कि उसके बाद से राजनीतिक स्थिरता, प्रौद्योगिकी और राष्ट्रीय प्राथमिकता वाली उभरती नई चुनौतियों के मामले में कई दूरगामी बदलाव हो चुके हैं, ऐसे में इन सभी पर हमें पूरी गंभीरता के साथ विचार करने की जरूरत है. उन्होंने आगे कहा कि केंद्र प्रायोजित योजनाओं (सीएसएस) को इतना लचीला होना चाहिए कि राज्य इन्हें अपना सकें और इनमें नवप्रवर्तन कर सकें. सिंह ने कहा कि सीएसएस योजनाओं के लिए कुल सार्वजनिक व्यय 6 से 7 लाख करोड़ रुपये सालाना है. इसमें केंद्र सरकार अकेले 3.5 लाख करोड़ रुपये खर्च करती है, जो कि जीडीपी का 1.2 प्रतिशत है. वित्त आयोग के अध्यक्ष ने आगे कहा कि केंद्र और राज्यों के राजकाषीय सुदृढ़ीकरण के रास्ते पर आगे बढ़ने के लिए और अधिक मेलजोल और सहयोग की आवश्यकता है.

नई दिल्ली : वित्त आयोग के चेयरमैन एन के सिंह ने शुक्रवार को संविधान की सातवीं अनुसूची पर फिर से विचार किए जाने की आवश्यकता को रेखांकित किया. राष्ट्रीय प्राथमिकताओं और प्रौद्योगिकी में आते बदलाव को देखते हुए उन्होंने यह जरूरत बताई. यह अनुसूची केंद्र और राज्यों के बीच अधिकारों का आवंटित करती है.

क्या है संविधान की 7वीं अनुसूची?

15वें वित्त आयोग के चेयरमैन एन के सिंह का कहना है कि संविधान की 7वीं अनुसूची में तीन सूचियां संघ, राज्य और समवर्ती हैं. इसके तहत केंद्र सरकार को इसकी संघीय सूची के तहत दिए गए विषयों पर कानून बनाने का अधिकार है तो राज्य सरकारों को राज्य सूची में दिए गए विषयों पर कानून बनाने के अधिकार दिए गए हैं. वहीं समवर्ती सूची के तहत आने वाले विषयों पर केंद्र और राज्य दोनों को कानून बनाने के अधिकार दिए गए हैं लेकिन विवाद की स्थिति में केंद्र के कानून ही माने जाएंगे.

अंतरराज्यीय परिषद की जरूरत

प्रमुख वाणिज्य एवं उद्योग मंडल फिक्की की 93वीं वार्षिक आम बैठक को संबोधित करते हुए सिंह ने कहा कि हमें संविधान की सातवीं अनुसूची को और बुनियादी ढंग से फिर से देखने की जरूरत है. सिंह ने कहा कि केंद्र-राज्य संबंधों पर न्यायमूर्ति एमएम पंछी की अध्यक्षता वाले आयोग ने 2010 में यह सिफारिश की थी कि समवर्ती सूची के तहत आने वाले विषयों पर बनने वाले कानूनों पर एक अंतरराज्यीय परिषद के जरिए केंद्र और राज्यों के बीच विचार विमर्श की प्रक्रिया होनी चाहिए.

केंद्र और राज्यों में अधिक मेलजोल की आवश्यकता

सिंह ने कहा कि उसके बाद से राजनीतिक स्थिरता, प्रौद्योगिकी और राष्ट्रीय प्राथमिकता वाली उभरती नई चुनौतियों के मामले में कई दूरगामी बदलाव हो चुके हैं, ऐसे में इन सभी पर हमें पूरी गंभीरता के साथ विचार करने की जरूरत है. उन्होंने आगे कहा कि केंद्र प्रायोजित योजनाओं (सीएसएस) को इतना लचीला होना चाहिए कि राज्य इन्हें अपना सकें और इनमें नवप्रवर्तन कर सकें. सिंह ने कहा कि सीएसएस योजनाओं के लिए कुल सार्वजनिक व्यय 6 से 7 लाख करोड़ रुपये सालाना है. इसमें केंद्र सरकार अकेले 3.5 लाख करोड़ रुपये खर्च करती है, जो कि जीडीपी का 1.2 प्रतिशत है. वित्त आयोग के अध्यक्ष ने आगे कहा कि केंद्र और राज्यों के राजकाषीय सुदृढ़ीकरण के रास्ते पर आगे बढ़ने के लिए और अधिक मेलजोल और सहयोग की आवश्यकता है.

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