कोलकाता : कृषि भूमि पर किसानों के अधिकारों की रक्षा के लिए आंदोलन कर 2011 में ममता बनर्जी सत्ता पर काबिज हुई थीं. भूमि अधिगृहण के खिलाफ आंदोलन के बूते ही ममता ने 34 साल पुराना वाम किला ध्वस्त किया था. 10 साल बाद ममता बनर्जी ने लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है. सवाल यह है कि क्या पिछले दस वर्षों के दौरान राज्य में कृषि भूमि या खेती की स्थिति की गुणवत्ता में कोई बड़ा सुधार हुआ है.
राज्य सरकार के आंकड़ों पर नजर डालें तो स्थिति सुधारने के बजाय और बिगड़ती जा रही है. पश्चिम बंगाल में किसानों का एक बड़ा वर्ग पेशे के रूप में खेती से दूर हो गया है. राज्य में कृषि भूमि अनुपात में भारी गिरावट (farmland ratio depletion) आई है.
52,000 एकड़ कम हो गई कृषि भूमि
ये आंकड़े राज्य के पर्यावरण विभाग की नवीनतम रिपोर्ट 'स्टेट ऑफ एनवायरनमेंट रिपोर्ट 2021 : पश्चिम बंगाल' नाम से सामने आए हैं. रिपोर्ट के अनुसार 2011 में 52,94,000 हेक्टेयर पंजीकृत कृषि भूमि थी. 2021 में यह आंकड़ा घटकर 52,38,000 रह गया है. मतलब कृषि भूमि 52,000 एकड़ कम हुई है. आंकड़ों के अनुसार पंजीकृत कृषि भूमि की मात्रा में गिरावट पिछले वाम मोर्चा शासन के बाद से शुरू हुई और पिछले दस वर्षों में कमी ने गति पकड़ी है.
अधिक जमीन खेती के दायरे में लाने की कोशिश कर रहे : कृषि मंत्री
इस मुद्दे पर 'ईटीवी भारत' ने राज्य के कृषि मंत्री शोभन देब चट्टोपाध्याय (Sobhondeb Chattopadhyay) से बात की. उन्होंने कहा कि 'इसके पीछे प्रमुख कारण जनसंख्या में वृद्धि है. जितनी जनसंख्या बढ़ रही है, आवास की आवश्यकता उतनी ही अधिक है और इसलिए कृषि भूमि को परिवर्तित किया जा रहा है. हम आने वाले दिनों में और अधिक जमीन को खेती के दायरे में लाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. हम उच्च गुणवत्ता और उच्च उत्पादकता वाले बीजों के आयात और उत्पादन, आधुनिक कृषि तकनीकों और अन्य के बीच भूमि की उर्वरता के नियमित परीक्षण की सुविधा प्रदान कर रहे हैं.'
12,000 हेक्टेयर शुष्क भूमि उर्वरा बनाई : मजूमदार
मुख्यमंत्री के प्रधान सलाहकार (कृषि) प्रदीप मजूमदार से भी इस मुद्दे पर बात की गई. उन्होंने राज्य पर्यावरण विभाग की रिपोर्ट के बारे में कोई जानकारी होने से इनकार किया. उन्होंने कहा कि 'मैं विवरण मांगूंगा. हालांकि, यह सच है कि आजकल कई लोग खेती को पेशे के रूप में अपनाने के लिए तैयार नहीं हैं. साथ ही बड़े पैमाने पर शहरीकरण ने कृषि भूमि को काफी हद तक घेर लिया है. लेकिन हम इस मुद्दे पर जागरूकता फैलाने की कोशिश कर रहे हैं.'
उन्होंने कहा कि पिछले दो साल में राज्य के कृषि विभाग ने 12,000 हेक्टेयर शुष्क भूमि को कृषि भूमि में बदला है. अगले कुछ वर्षों में इसे कुल 50,000 एकड़ तक ले जाने का लक्ष्य है.
कृषि भूमि अनुपात में कमी दुर्भाग्यपूर्ण : भाजपा विधायक
केंद्र सरकार के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार और भाजपा विधायक अशोक लाहिड़ी ने 'ईटीवी भारत' को बताया कि बंगाल में कृषि भूमि अनुपात में कमी ही केवल मुद्दा नहीं है बल्कि यह भी देखना होगा कि खेती की भूमि का उपयोग कैसे किया जा रहा है. यदि उस परिवर्तित भूमि का उपयोग नए उद्योग स्थापित करने के लिए किया जाता है तो यह राज्य और देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक सकारात्मक कारक है. लेकिन मैंने पिछले दस वर्षों के दौरान पश्चिम बंगाल में किसी भी बड़ी औद्योगिक इकाई के आने के बारे में नहीं सुना इसलिए कृषि भूमि अनुपात में कमी के आंकड़े राज्य के लिए दुर्भाग्यपूर्ण हैं.'
तृणमूल कांग्रेस ने किसानों को गुमराह किया : मोल्लाह
वयोवृद्ध वामपंथी किसान नेता और माकपा पोलित ब्यूरो के सदस्य हन्नान मोल्लाह (Hannan Mollah) भी लाहिड़ी से काफी हद तक सहमत हैं. उनके अनुसार उनकी पार्टी 2006 से कह रही थी कि पश्चिम बंगाल में किसानों के लिए खेती अब लाभदायक नहीं रही. हन्नान मोल्लाह ने कहा कि 'वर्तमान तृणमूल कांग्रेस के शासन में किसानों को उनके उत्पादों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य भी नहीं मिल रहा है. हमने महसूस किया कि खेती अब अधिक लाभदायक नहीं है, इसलिए हमने औद्योगीकरण का रास्ता अपनाया. लेकिन उस समय तृणमूल कांग्रेस ने राज्य के किसानों और आम लोगों को गुमराह किया. अब एक तरफ राज्य में उद्योग नहीं है और दूसरी तरफ कृषि की स्थिति इतनी दयनीय है. यह राज्य के लोगों के लिए वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण है.'
आर्थिक विश्लेषक शांतनु सान्याल ने ये बताई वजह
पूर्व पत्रकार और आर्थिक विश्लेषक शांतनु सान्याल (Shantanu Sanyal ) ने कहा कि किसानों की भावनाओं के सहारे चुनाव जीतना और खेती को एक लाभदायक उद्यम बनाना दो पूरी तरह से अलग चीजें हैं. एक तरफ खेती के लिए आवश्यक कच्चे माल की कीमत आसमान छू रही है दूसरी ओर कई ऐसे उदाहरण हैं कि किसान उत्पादन लागत की वसूली भी नहीं कर पा रहे हैं इसलिए वे वैकल्पिक पेशा अपना रहे हैं. यही वजह है कि कृषि भूमि की मात्रा कम हो रही है. दूसरी ओर भूमि और एसईजेड नीतियों के कारण निवेशक राज्य में निवेश करने के लिए उत्सुक हैं इसलिए यह स्वाभाविक है कि राज्य से प्रवासी श्रमिकों की संख्या तेजी से बढ़ रही है.'
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