नई दिल्ली : देश का वस्तुओं का निर्यात चालू वित्त वर्ष में 14 मार्च तक 390 अरब डॉलर के आंकड़े पर पहुंच गया है. वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल (commerce and industry minister piyush goyal) ने यह जानकारी देते हुए कहा कि हम 2021-22 में 400 अरब डॉलर के निर्यात लक्ष्य को पार कर जाएंगे. उन्होंने कहा कि यह पहली बार हुआ है जबकि वाहन कलपुर्जा उद्योग ने 60 करोड़ डॉलर का व्यापार अधिशेष हासिल किया है. मंत्री ने वाहन कंपनियों से स्थानीय उत्पाद खरीदने का आह्वान किया.
गोयल ने बुधवार को वाहन कलपुर्जा उद्योग के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि भारत अब बंद और संरक्षणवादी रुख नहीं अपना सकता. हमें घरेलू बाजारों को खोलने की जरूरत है. उन्होंने वाहन उद्योग से शोध एवं विकास में अपना निवेश बढ़ाने को कहा. गोयल ने वाहन उद्योग से कहा कि वह विशेषरूप से ई-मोबिलिटी क्षेत्र में निवेश बढ़ाए.
वाणिज्य मंत्रालय ने गुरुवार को मंत्री के हवाले से कहा, 'भारत का वस्तुओं का निर्यात 14 मार्च तक 390 अरब डॉलर पर पहुंच गया है. हम निश्चित रूप से चालू वित्त वर्ष में 400 अरब डॉलर का लक्ष्य पार करेंगे.'
इंजीनियरिंग सामानों का निर्यात बढ़ने से काफी सुधार हुआ है. इंजीनियरिंग सामान जिसमें मशीनरी, ऑटो पार्ट्स , जहाजों के पार्ट्स और विमान शामिल हैं. पिछले साल नवंबर-दिसंबर में ओमीक्रॉन संस्करण के प्रकोप के कारण आपूर्ति में व्यवधान के बावजूद, भारत संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन जैसी आर्थिक महाशक्तियों सहित इंजीनियरिंग सामानों के निर्यात में गति को बनाए रखने में सक्षम था.
उधर, नई दिल्ली में ऑटोमोटिव कंपोनेंट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (एसीएमए) द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए गोयल ने कहा कि भारत के ऑटो कंपोनेंट उद्योग ने पहली बार 60 करोड़ अमेरिकी डॉलर का व्यापार अधिशेष दर्ज किया है. भारत का ऑटोमोटिव उद्योग 100 अरब डॉलर से अधिक का है और देश के कुल निर्यात में 8% का योगदान देता है. उन्होंने कहा कि भारत का ऑटो उद्योग 2025 तक दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उद्योग बनने के लिए तैयार है.
कोविड महामारी के कारण भारत के ऑटो उद्योग और ऑटो कंपोनेंट निर्माता कई चुनौतियों के बावजूद ठोस निर्यात बनाए रखने में सक्षम हुए. सेमी-कंडक्टर की कमी के कारण महिंद्रा, टाटा और मारुति सुजुकी सहित कुछ निर्माताओं को मजबूर होना पड़ा. या तो संयंत्रों में उत्पादन को बंद हुआ या धीमा रहा. इस अवधि के दौरान भारतीय निर्यातकों को जहाज के कंटेनरों की कमी और उच्च माल ढुलाई दरों की चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा.
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