नई दिल्ली : किसान आंदोलन के कारण दिल्ली को बॉर्डर पर सड़क जाम की वजह से लोगों को होने वाली परेशानी का मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचने पर संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा था कि सड़क प्रशासन की तरफ से बंद की गई है न कि किसानों की तरफ से. वहीं शुक्रवार को दिल्ली की तरफ से गाजीपुर और टीकरी बार्डर पर बैरिकेडिंग हटाए जाने के बाद किसान मोर्चा ने अपने व्यक्तव्य को बदलते हुए कहा कि यह उनके मोर्चे के खिलाफ पुलिस प्रशासन की एक साजिश है. नतीजा यह है कि रविवार शाम तक न तो टीकरी बॉर्डर पर और ना ही गाजीपुर बॉर्डर हाइवे को खोला जा सका.
संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं का कहना है कि उनका मोर्चे और ट्रैक्टर सड़क के किनारे खड़े हैं लेकिन टिकरी बॉर्डर पर हालात यह हैं कि सड़क के दोनों तरफ मोर्चे और ट्रैक्टर लगाए गए हैं. ऐसे में छोटे वाहन तो बीच में छोड़ी गई जगह से निकल सकते हैं लेकिन भारी वाहन के लिये संकरी जगह से निकलना मुश्किल हो रहा है. हाइवे पर सड़क के एक किनारे से ही सही लेकिन सुचारू रूप से सभी तरह के वाहनों की आवाजाही सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है कि किसान अपने मोर्चे और ट्रैक्टर को हाइवे की दूसरी ओर शिफ्ट कर लें और एक तरफ की सड़क को पूरी तरह से खाली किया जाए.
फिलहाल इस पर किसान नेताओं और स्थानीय प्रशासन के बीच कोई सहमति नहीं बन पाई है. यही वजह है कि पुलिस प्रशासन द्वारा बैरिकेडिंग हटाए जाने के बावजूद भी आम लोगों को इसका कोई फायदा नहीं मिल सका. बजाय रास्ता खुलवाने की पहल करने के सीकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर आंदोलनकारियों ने अपनी तैनाती बढ़ाने के साथ ही सड़क पर फिर से बैठ गए हैं.
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एक तरफ किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने तीनों मोर्चे पर बढ़ते तनाव की स्थिति को देखते हुए लोगों से शान्ति और अनुशासन बनाये रखने की अपील की तो दूसरी तरफ राकेश टिकैत ने इशारों में ये कह दिया कि रास्ते खुलने के बाद एक बार फिर किसान ट्रैक्टरों के साथ संसद पहुंचेंगे. ऐसे में मौके की नजाकत को देखते फिलहाल प्रशासन ने अपनी पहल पर विराम लगा दिया है. हालांकि संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा सड़क को पूरी तरह खोलने में सहयोग न किये जाने पर आम लोगों और कुछ किसान नेताओं ने भी इसे गलत बताया.
भारतीय कृषक समाज के अध्यक्ष कृष्णबीर चौधरी ने कहा कि आंदोलन का नेतृत्व कर रहे लोग किसानों का हित करने की बजाय किसानों की छवि खराब करने का काम कर रहे हैं. ऐसे लोग समाधान चाहते ही नहीं हैं क्योंकि उनका लाभ समस्या बनाए रखने में है. उन्होंने कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया कि रास्ते खुलने चाहिए और प्रशासन ने भी अपनी तरफ से बैरिकेड हटाए तो हजारों लोगों को हो रही असुविधा का ध्यान रखते हुए आंदोलनकारियों को भी रास्ते साफ कर देने चाहिए लेकिन अब वह अपनी ही बात से पलट रहे हैं. पहले उन्होने कहा था कि रास्ते किसानों ने नहीं रोक रखे हैं लेकिन स्थिति सामने है कि मोर्चा नहीं चाह रहा कि राजमार्ग खुले और आम लोगों को आवाजाही में परेशानी न हो.
वहीं संयुक्त किसान मोर्चा न केवल बॉर्डर पर लोगों से संख्या बढ़ाने की अपील कर रहा है बल्कि हरियाणा के आस पास के गांव के लोगों से भी इसके लिए समर्थन मांगा जा रहा है कि वह बॉर्डर पर ज्यादा से ज्यादा भीड़ जुटाने में किसान मोर्चा की मदद करें. किसान मोर्चा का कहना है कि यदि सड़क को पूरी तरह से खोल दिया गया तो दुर्घटनाएं ज्यादा होंगी जिसकी वजह से लोगों की मौतें भी हो सकती हैं. यही कारण है कि मोर्चा ने सड़क को दोनों तरफ से आंशिक खोल रखा है. यदि सरकार और प्रशासन चाहता है कि सड़कें पूरी तरह से खुलें तो उन्हें संयुक्त किसान मोर्चा की मांगें माननी होंगी.
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इस संबंध में किसान नेता कृष्ण्बीर चौधरी का कहना है कि संयुक्त किसान मोर्चा के नेता कभी मसले का हल चाहते ही नहीं और इसी कारण वह मामले को उलझाते रहते हैं. एमएसपी पर अनिवार्य खरीद के लिए कानून की मांग देश के सभी किसान संगठन चाहते हैं लेकिन बॉर्डर पर बैठे मुट्ठी भर किसान संगठनों ने तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग पर अड़ियल रुख अपना कर उस एक मांग को पीछे कर दिया है. संभव था यदि सभी किसान संगठन एकजुट हो कर एमएसपी की मांग को ही प्राथमिक रखते और सरकार से बात करते तो किसानों का बड़ा फायदा होता लेकिन विपक्ष द्वारा प्रायोजित और पोषित आंदोलन को मोर्चा कायम रखने का निर्देश मिला है जिसका वह पालन कर रहे हैं. इस वजह से आम किसानों को लाभ कम और नुकसान ज्यादा हो रहा है.