पिथौरागढ़ : देवभूमि में कई ऐसे दर्शनीय स्थल हैं, जो प्राकृतिक और साहसिक पर्यटन (adventure tourism) के साथ ही धार्मिक पर्यटन (religious tourism) का भी महत्वपूर्ण केंद्र हैं. इन्हीं में से एक है पिथौरागढ़ जिले की दारमा घाटी (Darma Valley) में स्थित पंचाचूली पर्वत श्रृंखला (Panchachuli mountain range), जो पांच पर्वत चोटियों का एक समूह है. धार्मिक ग्रन्थों में इसे पंचशिरा (Panchashira) के नाम से भी जाना जाता हैं. आइए आपको भी पंचाचूली की हसीन वादियों से रूबरू कराते हैं...
धर्म ग्रन्थों में भी पंचाचूली का वर्णन
स्थानीय लोग इसे पांडव चोटी के नाम से भी संबोधित करते आ रहे हैं. स्थानीय लोगों की मान्यता है कि ये युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल और सहदेव यानी पांचों पांडवों के प्रतीक (symbols of pandavas) हैं. पौराणिक धर्म ग्रन्थों में भी पंचाचूली का वर्णन (Description of Panchachuli) मिलता है. माना जाता है कि वृद्धावस्था में पांडवों ने इन्हीं पांच चोटियों से होते हुए स्वर्ग की ओर प्रस्थान किया था.
पांडवों ने यहां भोजन बनाया था
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पांडवों ने पंचाचूली पर्वत (Panchachuli mountain) पर ही आखिरी बार भोजन बनाया था. इसके पांच शिखरों पर पांडवों ने पांच चूल्हे बनाये थे, इसलिए यह स्थान पंचाचूली के नाम से जाना जाता है. कुमाऊं के अल्मोड़ा, नैनीताल, रानीखेत और पिथौरागढ़ के हिल स्टेशनों से भी इसका दीदार होता है.
पंचाचूली का प्रवेश द्वार दुग्तू गांव
पंचाचूली का मनमोहक दृश्य (Beautiful view of Panchachuli) मुनस्यारी से देखा जा सकता है. जबकि धारचूला तहसील की दारमा घाटी में स्थित माइग्रेशन विलेज दुग्तू (Migration Village Dugtu) और दांतु गांव से इसका भव्य स्वरूप दिखाई देता है. दुग्तू गांव को पंचाचूली का प्रवेश (Panchachuli entrance) द्वार भी कहा जाता है. ईटीवी भारत ग्राउंड जीरो पर जाकर देश और दुनिया के लोगों को विश्व प्रसिद्ध पंचाचूली के दर्शन करा रहा है.
आसान हुआ पंचाचूली का दर्शन
पंचाचूली के दर्शन के लिए पिथौरागढ़ जिले की नैनी-सैनी हवाई पट्टी से 170 किलोमीटर की यात्रा वाहन के जरिये तय कर दारमा घाटी के माइग्रेशन विलेज दुग्तु पहुंचा जा सकता है. चार साल पहले तक पंचाचूली ग्लेशियर (Panchachuli Glacier) तक पहुंचना काफी कठिन था. सोबला से आगे लगभग चालीस किमी की पैदल यात्रा कर लोग दुग्तु पहुंचते थे, जिसमें करीब दो से तीन दिन लग जाते थे. चार साल पूर्व दारमा घाटी के दुग्तु गांव तक सड़क बनने के बाद यहां पर्यटकों की संख्या में अप्रत्याशित बढ़ोत्तरी हुई. लोग अब पिथौरागढ़ मुख्यालय से महज 6 से 7 घंटे में पंचाचूली के प्रवेश द्वार दुग्तु गांव तक पहुंच सकते हैं.
दुग्तु गांव में होम स्टे की सुविधा
पंचाचूली बेस कैंप (Panchachuli Base Camp) और ग्लेशियर जाने वाले पर्यटकों के लिए दुग्तू गांव में होम स्टे (Home Stay in Dugtu Gaon) बने हैं, जो किराए पर मिल जाते हैं. गर्मियों के मौसम में जब पर्यटक भारी तादात में पंचाचूली के दर्शन के लिए आते हैं, तब ये होम स्टे खचाखच भरे होते हैं. जो सीमांत के ग्रामीणों की आजीविका का एक मुख्य स्रोत भी है.
ETV भारत पहुंचा पंचाचूली
दुग्तु गांव से 4 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर ईटीवी भारत की टीम 12,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित ट्रैकिंग बेस कैंप (trekking base camp) पहुंची. जहां पर केएमवीएन (KMVN) ने पर्यटकों के रहने के लिए इग्लू हाउस (igloo house) बनाये हैं. यहां एक समय पर 30 पर्यटकों के रहने-खाने के लिए पूरे इंतजाम किये गए हैं. पंचाचूली ट्रैकिंग बेस कैंप से 6 किलोमीटर की यात्रा कर हमारी टीम 13000 फीट की ऊंचाई पर स्थित पंचाचूली ग्राउंड जीरो (Panchachuli Ground Zero) पर पहुंची.
पंचाचूली का आरोहण
पंचाचूली की पांच चोटियों में से 4 चोटियों पर सफलतापूर्वक आरोहण किया जा चुका है. जबकि 1 चोटी अभी तक अजेय है. 6355 मीटर ऊंची पंचाचूली-1 का पहली बार सफल अन्वेषण 1972 में आईटीबीपी की टीम ने हुक्म सिंह के नेतृत्व में किया था. जबकि कुमाऊं रीजन की सबसे ऊंची चोटी पंचाचूली-2 (6904 मीटर) पर पहला सफल अभियान 1973 में आईटीबीपी की टीम ने महेंद्र सिंह के नेतृत्व में कर दिखाया था. वहीं समुद्र तल से 6,312 मीटर ऊंची पंचाचूली-3 को फतह करने के लिए 1996 और 1998 मे दो बार अभियान चलाया गया था, लेकिन सफलता नहीं मिली.
6,334 मीटर ऊंची पंचाचूली-4 पर 1995 में न्यूजीलैंड की पर्वतारोही टीम ने सफल आरोहण किया था. टीम लीडर जॉन नानकेर्विस (John Nankervis) के नेतृत्व में 4 लोग इस चोटी को फतह करने में कामयाब हुए. जबकि 6,437 मीटर ऊंची पंचाचूली-5 को 1992 में पहली बार इंडो-ब्रिटिश टीम के क्रिस बोनिंगटन (Chris Bonington) और हरीश कपाड़िया (Harish Kapadia) ने फतह किया था.
पर्यटकों की पहली पसंद बना पंचाचूली ग्लेशियर
चीन और नेपाल की सीमाओं (China and Nepal border) के पास दारमा घाटी की गोद में बसा पंचाचूली ग्लेशियर अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य (Amazing Natural Beauty of Panchachuli Glacier) का क्षेत्र है. कुदरत ने यहां अपना खजाना जमकर लुटाया है. पंचाचूली ग्लेशियर की खूबसूरती को कैमरे में कैद करने के लिए हर साल हजारों की तादाद में देशी-विदेशी पर्यटक (foreign tourist) यहां खिंचे चले आते हैं. बीते एक दशक से पंचाचूली ट्रैक सबसे अधिक प्रचलित हो गया है. दारमा घाटी तक रोड कनेक्टिविटी के बाद पर्यटकों और ट्रैकरों की तादाद में अप्रत्याशित बढ़ोत्तरी तो हुई, लेकिन कोरोना महामारी के चलते पिछले दो साल से यहां पर्यटकों की आवाजाही कम हुई है.
पंचाचूली ट्रैकिंग रुट की खासियत
पंचाचूली ट्रैकिंग बेस कैंप से ग्लेशियर का मार्ग बेहद रोमांचकारी है. इस ट्रैकिंग रुट में पंचाचूली का अद्भुत नजारा जहां लोगों को लुभाता है. वहीं, भोज पत्र, शंकुधारी वृक्षों, अल्पाइन घास के मैदान और हिमखंड के यादगार दर्शन होते हैं. पंचाचूली ग्लेशियर से निकलने वाली न्योली नदी का नजारा भी यहां देखते ही बनता है. स्थानीय भेड़पालक भी इस ट्रैकिंग रूट में भेड़-बकरियां चराते हुए नजर आते हैं. जो पंचाचूली की तलहटी में महीनों तक गुफाओं और टेंटों में रहकर अपने दिन गुजारते हैं.
साल में 5 महीने बर्फ से ढकी रहती है दारमा घाटी
चीन और नेपाल से सटे उच्च हिमालयी क्षेत्र में बसी दारमा घाटी शीतकाल में 5 महीने तक बर्फ से पटी रहती है. इस दौरान दारमा घाटी के लोग अपने पशुओं के साथ निचले इलाकों का रुख करते हैं. यही नहीं बॉर्डर पर तैनात जवान भी माइग्रेशन वाली चौकियों से वापस आते हैं. शीतकाल के दौरान दारमा घाटी में भारी बर्फबारी के साथ ही एवलांच का खतरा भी बना रहता है.
पर्यटन की हैं अपार संभावनाएं
दारमा घाटी में स्थित पंचाचूली स्थानीय लोगों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है. हर साल पंचाचूली के दर्शन के लिए आने वाले पर्यटकों और ट्रैकरों की वजह से बॉर्डर के लोगों को सीजनल रोजगार मिलता है. अगर राज्य सरकार पिथौरागढ़ जिले को हवाई सेवा से जोड़ने के साथ ही दारमा घाटी में हवाई सेवा का संचालन करें तो यहां पर्यटकों की तादात में भारी इजाफा हो सकता हैं. अगर सरकार प्रचार-प्रसार के साथ ही सीमांत दारमा घाटी में बुनियादी सुविधाओं को बढ़ावा देती तो पंचाचूली देश के शीर्ष पर्यटन स्थलों में शुमार हो सकता है.