नई दिल्ली: चैत्र नवरात्रि के अंतिम दिन 10 अप्रैल को रामनवमी के दिन नौ वर्ष बाद ग्रहों का शुभ संयोग बन रहा है. यह संयोग इस दिन की शुभता में वृद्धिकारक होगा. भगवान श्रीराम का जन्म कर्क लग्न और अभिजीत मुहूर्त में मध्यान्ह 12 बजे हुआ था. संयोगवश इस दिन अश्लेषा नक्षत्र, लग्न में स्वग्रही चंद्रमा, सप्तम भाव में स्वग्रही शनि, नवम भाव में सूर्य, दशम में बुध, कुम्भ का गुरु, शुक्र, मंगल हैं और दिन रविवार रहेगा.
ज्योतिषाचार्य डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि राम नवमी इस साल 10 अप्रैल 2022 को मनाई जाएगी. नवमी तिथि की शुरुआत 10 अप्रैल को देर सुबह 01:32 मिनट से होगी और 11 अप्रैल को तड़के 03:15 मिनट पर समाप्त होगी. भगवान श्रीराम की पूजा का शुभ मुहूर्त 10 अप्रैल 2022 को सुबह 11:10 मिनट से 01: 32 मिनट तक रहेगा. रवि योग के दौरान अगर सूर्य उपासना की जाए व आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करने के साथ ही सूर्य मंत्रों का जाप किया जाए, तो विशेष लाभ मिलता है. रवि पुष्य योग को महायोग भी कहा जाता है. ये रविवार के संयोग से मिलकर बनता है. 10 अप्रैल को रामनवमी के दिन ये विशेष योग बनेगा.
पूरे दिन रहेंगे तीनों संयोग : रामनवमी पर बन रहे तीनों संयोग खास हैं. नवमी तिथि के साथ सभी संयोग दिवस पर्यंत रहेंगे. वैदिक ज्योतिष शास्त्र में 27 नक्षत्र हैं. इसमें आठवें स्थान पर पुष्य नक्षत्र है. इसे नक्षत्रों का राजा कहा जाता है. यह नक्षत्र रविवार को जब आता है तो रवि पुष्य का संयोग बनता है. इस योग में सभी बुरी दशाएं अनुकूल हो जाती हैं. इसमें विवाह के अतिरिक्त सोने के आभूषण, भूमि, भवन, वाहन की खरीदारी को स्थायी फल प्रदान करने वाला बताया गया है.
सर्वार्थसिद्धि योग : सर्वार्थसिद्धि योग को शुभ योग माना जाता है. इस योग को कार्य में सिद्धि देकर सभी इच्छाओं को पूर्ण करने वाला माना गया है. इसी तरह रवि योग को सूर्य का अभिष्ट प्राप्त होने के कारण इसे प्रभावशील योग माना गया है. सूर्य की पवित्र सकारात्मक ऊर्जा इसमें होने के कारण इस योग में कार्य में अनिष्ट होने की आशंका समाप्त होती है.
रवि योग : नवरात्रि पर्व के दौरान रवि योग, सर्वार्थ सिद्धि योग व रवि पुष्य नक्षत्र का शुभ संयोग बन रहा है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सर्वार्थ सिद्धि योग का संबंध मां लक्ष्मी से है. मान्यता है कि इस योग में किए गए कार्य शुभ परिणाम देते हैं. कार्यों में सफलता भी मिलती है. रवि योग में सभी प्रकार के दोषों से मुक्ति मिलती है.
नवरात्रि के अंतिम दिन करें कन्या पूजन
नवरात्रि के अंतिम दिन कन्या पूजन का विशेष महत्व होता है. व्रत रखने वाले भक्त कन्याओं को भोजन कराने के बाद ही अपना व्रत खोलते हैं. कन्याओं को देवी मां का स्वरूप माना जाता है. मान्यता है कि इस दिन कन्याओं को भोजन कराने से घर में सुख, शांति एवं सम्पन्नता आती है. कन्या भोज के दौरान नौ कन्याओं का होना आवश्यक होता है. इस बीच यदि कन्याएं 10 वर्ष से कम आयु की हो तो जातक को कभी धन की कमी नहीं होती और उसका जीवन उन्नतशील रहता है.
ज्योतिषाचार्य डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि नवरात्रि में कन्या पूजन का बहुत महत्व है. आमतौर पर नवमी को कन्याओं का पूजन करके उन्हें भोजन कराया जाता है. लेकिन कुछ श्रद्धालु अष्टमी को भी कन्या पूजन करते हैं. शनिवार को रात में 1.30 बजे तक अष्टमी रहेगी. इसके बाद नवमी शुरू हो जाएगी. विद्वानों का कहना है कि दुर्गाष्टमी पर रात में होने वाली महापूजा 12 बजे से पहले शुरू कर देनी चाहिए. इसके बाद पूर्णाहुति नवमी तिथि में भी की जा सकती है. नवरात्रि में अष्टमी और नवमी के दिन कन्या भोजन का विधान ग्रंथों में बताया गया है. इसके पीछे भी शास्त्रों में वर्णित तथ्य यही हैं कि 2 से 10 साल तक उम्र की नौ कन्याओं को भोजन कराने से हर तरह के दोष खत्म होते हैं. कन्याओं को भोजन करवाने से पहले देवी को नैवेद्य का भोग लगाएं और भेंट करने वाली चीजें भी पहले देवी को चढ़ाएं. इसके बाद कन्या भोज और पूजन करें. कन्या भोजन न करवा पाएं तो भोजन बनाने का कच्चा सामान जैसे चावल, आटा, सब्जी और फल कन्या के घर जाकर उन्हें भेंट कर सकते हैं.
हर आयु की कन्या का होता है अलग महत्व : 2 साल की कन्या को कौमारी कहा जाता है. इनकी पूजा से दुख और दरिद्रता खत्म होती है. 3 साल की कन्या त्रिमूर्ति मानी जाती है. त्रिमूर्ति के पूजन से धन-धान्य का आगमन और परिवार का कल्याण होता है. 4 साल की कन्या कल्याणी मानी जाती है. इनकी पूजा से सुख-समृद्धि मिलती है. 5 साल की कन्या रोहिणी माना गया है. इनकी पूजन से रोग-मुक्ति मिलती है. 6 साल की कन्या कालिका होती है. इनकी पूजा से विद्या और राजयोग की प्राप्ति होती है. 7 साल की कन्या को चंडिका माना जाता है. इनकी पूजा से ऐश्वर्य मिलता है. 8 साल की कन्या शांभवी होती हैं. इनकी पूजा से लोकप्रियता प्राप्त होती है. 9 साल की कन्या को दुर्गा कहा गया है. इनकी पूजा से शत्रु विजय और असाध्य कार्य सिद्ध होते हैं. 10 साल की कन्या सुभद्रा होती है. सुभद्रा के पूजन से मनोरथ पूर्ण होते हैं और सुख मिलता है.
कन्या पूजन से मिलेगी परेशानियों से मुक्ति-
विवाह में देरी : यदि शादी में देरी हो रही है तो पांच साल की कन्या को खाना खिलाकर, श्रृंगार का सामान भेंट करें.
धन संबंधी समस्या : पैसों की कमी से परेशान हैं तो चार साल की कन्या को खीर खिलाएं. इसके बाद पीले कपड़े और दक्षिणा दें.
शत्रु बाधा और काम में रुकावटें : नौ साल की तीन कन्याओं को भोजन सामग्री और कपड़ें दें.
पारिवारिक क्लेश : तीन और दस साल की कन्याओं को मिठाई दें.
बेरोजगारी : छह साल की कन्या को छाता और कपड़ें भेंट करें.
सभी समस्याओं का निवारण : पांच से 10 साल की कन्याओं को भोजन सामग्री देकर दूध, पानी या फलों का रस भेंट करें. सौन्दर्य सामग्री भी दें.
पुराणों में है कन्या भोज का महत्व : पौराणिक धर्म ग्रंथों एवं पुराणों के अनुसार नवरात्रि के अंतिम दिन कौमारी पूजन आवश्यक होता है. क्योंकि कन्या पूजन के बिना भक्त के नवरात्र व्रत अधूरे माने जाते हैं. कन्या पूजन के लिए सप्तमी, अष्टमी और नवमी तिथि को उपयुक्त माना जाता है. कन्या भोज के लिए दस वर्ष तक की कन्याएं उपयुक्त होती हैं.
शुभ मुहूर्त : शुक्ल पक्ष अष्टमी 08 अप्रैल को रात 11:05 मिनट से शुरू होगी, जो कि 10 अप्रैल को सुबह 01:24 मिनट पर समाप्त होगी. अभिजीत मुहूर्त 09 अप्रैल को दोपहर 12:03 मिनट से 12:53 मिनट तक रहेगा. अमृत काल 09 अप्रैल को सुबह 01:50 मिनट से 03:37 मिनट तक रहेगा. ब्रह्म मुहूर्त सुबह 04:39 मिनट से सुबह 05:27 मिनट तक रहेगा.
कन्या पूजन मुहूर्त : चैत्र नवरात्रि की अष्टमी तिथि को दिन का शुभ मुहूर्त 11:58 मिनट से 12:48 मिनट तक है. इस समय कन्या पूजन किया जा सकता है.
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