ETV Bharat / bharat

Baghpat Dussehra 2023: यूपी के इस गांव में नहीं होता रावण दहन, रामलीला के लिए तरसते हैं लोग

उत्तर प्रदेश में बागपत के बड़ा गांव में रावण का पुतला दहन (Burning Effigy of Ravana) और रामलीला के मंचन (Staging of Ramlila) का कार्यक्रम आयोजित नहीं किया जाता है. यहां लोग माता मंशा देवी की वजह से रावण का सम्मान करते हैं. जानिए इसके बारे में..

1
1
author img

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Oct 24, 2023, 11:31 AM IST

माता मंशा देवी कमेटी के प्रबंधक और ग्रामीण ने बताया.

बागपतः उत्तर प्रदेश के बागपत में एक ऐसा गांव है. जहां आज भी लोग रावण के पूतले का सम्मान करते हैं, रावण के पुतले को जलाना अभिशाप मानते हैं. इसके साथ ही गांव में रामलीला का मंचन भी आयोजित नहीं किया जाता है. ग्रामीणों ने कहा उन्होंने गांव में कभी रावण को दहन होते हुए नहीं देखा है.


यूं तो पूरे देश मे श्राद्ध के बाद रामलीला का मंचन शुरू हो जाता है और दशहरे के दिन रावण के पुतले का दहन किया जाता है. लेकिन आज हम आपको बागपत के ऐसे गांव के बारे में बता रहे हैं, जहां पर रावण का दहन नहीं किया जाता है. दरअसल बागपत के बड़ा गांव उर्फ रावण में लंका नरेश रावण को लेकर ग्रामीणों ने बताया, कि रावण ने माता मंशा देवी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया था. इसके बाद माता मंशा देवी प्रसन्न होकर रावण को वरदान मांगने को बोली थी.

माता मंशा देवी कमेटी के प्रबंधक राजपाल त्यागी ने मीडिया से बात करते हुए बताया कि माता मंशा देवी से रावण ने कहा कि वह उन्हें लंका ले जाना चाहता है. जिसके बाद माता मंशा देवी ने कहा कि रावण वह तुम्हारे साथ चलेंगी. लेकिन यात्रा के दौरान वह इस पृथ्वी पर उन्हें कहीं नहीं रखेगा. अगर वह उन्हें कहीं रख दिया तो वह वहीं स्थापित हो जांएगी.

राजपाल त्यागी ने बताया कि रावण ने माता मंशा देवी की बात मानकर उनके स्वरूप (मूर्ति) को लेकर लंका की यात्रा पर चल दिया. रास्ते में बड़ा गांव के जंगल मे रावण को टॉयलेट के लिए रुकना पड़ा. वहां भगवान विष्णु एक ग्वाले का रूप धारण कर खड़े थे. रावण ने भगवान विष्णु को ग्वाला समझकर कहा कि वह टॉयलेट के लिए जाता है. तब तक वह माता मंशा देवी के स्वरूप (मूर्ति) को हाथों में लेकर खड़ा रहे. काफी समय तक रावण के न आने पर ग्वाले ने माता मंशा देवी के स्वरूप (मूर्ति) को वहीं रख दिया.

रावण के आने पर उसने माता मंशा देवी के स्वरूप (मूर्ति) को पृथ्वी पर स्थापित पाया. वह माता मंशा देवी के स्वरूप (मूर्ति) को उठाना चाहा. लेकिन वह मूर्ति टस से मस नहीं हुई. जिसके बाद रावण वहीं माता मंशा देवी की मूर्ति को छोड़कर वहां से चला गया. माता मंशा देवी बड़ा गांव में ही स्थापित हो गई. जहां कालांतर में माता के मंदिर का निर्माण किया गया है. इस वजह से बागपत के लोग रावण के सम्मान में उसका पुतला नहीं जलाते हैं.

वहीं, ग्रामीण प्रवेश त्यागी ने बताया कि माता के दर्शनों के लिए दूर दराज से श्रद्धालु यहां आते हैं. धीरे-धीरे इस बड़ा गांव का नाम रावण पर पड़ गया. अब गांव के लोग रावण के सम्मान में उसका पुतला दहन नहीं करते हैं. इसके अलावा गांव में रामलीला के मंचन का भी आयोजन नहीं किया जाता है.

यह भी पढ़ें-हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल, गांधी मैदान में रावण के पुतले बना रहे मुस्लिम कारीगर

यह भी पढ़ें- अनोखी रामलीला, मो. अरशद बनते हैं विभीषण, पैट्रिक दास निभाते हैं राजा दशरथ का किरदार, अभिनेता राजपाल यादव भी रहे हैं हिस्सा

माता मंशा देवी कमेटी के प्रबंधक और ग्रामीण ने बताया.

बागपतः उत्तर प्रदेश के बागपत में एक ऐसा गांव है. जहां आज भी लोग रावण के पूतले का सम्मान करते हैं, रावण के पुतले को जलाना अभिशाप मानते हैं. इसके साथ ही गांव में रामलीला का मंचन भी आयोजित नहीं किया जाता है. ग्रामीणों ने कहा उन्होंने गांव में कभी रावण को दहन होते हुए नहीं देखा है.


यूं तो पूरे देश मे श्राद्ध के बाद रामलीला का मंचन शुरू हो जाता है और दशहरे के दिन रावण के पुतले का दहन किया जाता है. लेकिन आज हम आपको बागपत के ऐसे गांव के बारे में बता रहे हैं, जहां पर रावण का दहन नहीं किया जाता है. दरअसल बागपत के बड़ा गांव उर्फ रावण में लंका नरेश रावण को लेकर ग्रामीणों ने बताया, कि रावण ने माता मंशा देवी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया था. इसके बाद माता मंशा देवी प्रसन्न होकर रावण को वरदान मांगने को बोली थी.

माता मंशा देवी कमेटी के प्रबंधक राजपाल त्यागी ने मीडिया से बात करते हुए बताया कि माता मंशा देवी से रावण ने कहा कि वह उन्हें लंका ले जाना चाहता है. जिसके बाद माता मंशा देवी ने कहा कि रावण वह तुम्हारे साथ चलेंगी. लेकिन यात्रा के दौरान वह इस पृथ्वी पर उन्हें कहीं नहीं रखेगा. अगर वह उन्हें कहीं रख दिया तो वह वहीं स्थापित हो जांएगी.

राजपाल त्यागी ने बताया कि रावण ने माता मंशा देवी की बात मानकर उनके स्वरूप (मूर्ति) को लेकर लंका की यात्रा पर चल दिया. रास्ते में बड़ा गांव के जंगल मे रावण को टॉयलेट के लिए रुकना पड़ा. वहां भगवान विष्णु एक ग्वाले का रूप धारण कर खड़े थे. रावण ने भगवान विष्णु को ग्वाला समझकर कहा कि वह टॉयलेट के लिए जाता है. तब तक वह माता मंशा देवी के स्वरूप (मूर्ति) को हाथों में लेकर खड़ा रहे. काफी समय तक रावण के न आने पर ग्वाले ने माता मंशा देवी के स्वरूप (मूर्ति) को वहीं रख दिया.

रावण के आने पर उसने माता मंशा देवी के स्वरूप (मूर्ति) को पृथ्वी पर स्थापित पाया. वह माता मंशा देवी के स्वरूप (मूर्ति) को उठाना चाहा. लेकिन वह मूर्ति टस से मस नहीं हुई. जिसके बाद रावण वहीं माता मंशा देवी की मूर्ति को छोड़कर वहां से चला गया. माता मंशा देवी बड़ा गांव में ही स्थापित हो गई. जहां कालांतर में माता के मंदिर का निर्माण किया गया है. इस वजह से बागपत के लोग रावण के सम्मान में उसका पुतला नहीं जलाते हैं.

वहीं, ग्रामीण प्रवेश त्यागी ने बताया कि माता के दर्शनों के लिए दूर दराज से श्रद्धालु यहां आते हैं. धीरे-धीरे इस बड़ा गांव का नाम रावण पर पड़ गया. अब गांव के लोग रावण के सम्मान में उसका पुतला दहन नहीं करते हैं. इसके अलावा गांव में रामलीला के मंचन का भी आयोजन नहीं किया जाता है.

यह भी पढ़ें-हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल, गांधी मैदान में रावण के पुतले बना रहे मुस्लिम कारीगर

यह भी पढ़ें- अनोखी रामलीला, मो. अरशद बनते हैं विभीषण, पैट्रिक दास निभाते हैं राजा दशरथ का किरदार, अभिनेता राजपाल यादव भी रहे हैं हिस्सा

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.