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जानिये दिल्ली विश्वविद्यालय के 100 वर्षाें का इतिहास - सेंट्रल यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट

दिल्ली विश्वविद्यालय के 100 वर्ष के सफर को लेकर ईटीवी भारत ने डीयू के पूर्व छात्र, प्रोफेसर और राज्यसभा सांसद प्रोफेसर मनोज झा से खास बात की. उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से जुड़ी कई यादें और मौजूदा परिप्रेक्ष्य में अपनी बात रखी. इस दौरान उन्होंने कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय की एक विशालता है और इसमें बहुलता है. 100 वर्ष के जश्न के मौके पर दिल्ली विश्वविद्यालय से जुड़े सभी कर्मचारियों छात्रों को शुभकामनाएं दी.

दिल्ली विश्वविद्यालय
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Published : Apr 30, 2022, 10:10 PM IST

नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय एक मई को स्थापना के 100वें वर्ष का जश्न शताब्दी समाराेह के रूप में मनाने जा रहा है. 100 वर्ष के इस सफर को पूरा करने के दौरान दिल्ली विश्वविद्यालय ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं. विश्वविद्यालय ने देश की आजादी से लेकर आधुनिक भारत के कई आयाम को देखा है. डीयू की शुरुआत तीन कॉलेज और 750 छात्रों के साथ वर्ष 1922 में हुई थी. अब इसकी संख्या बढ़कर 90 कॉलेज 6 लाख से अधिक छात्र और 86 डिपार्टमेंट की हो चुकी है.

दिल्ली विश्वविद्यालय के 100 वर्ष के सफर को लेकर ईटीवी भारत ने डीयू के पूर्व छात्र, प्रोफेसर और राज्यसभा सांसद प्रोफेसर मनोज झा से खास बात की. उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से जुड़ी कई यादें और मौजूदा परिप्रेक्ष्य में अपनी बात रखी. इस दौरान उन्होंने कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय की एक विशालता है और इसमें बहुलता है. जिसमें कॉलेज और डिपार्टमेंट हैं. विश्वविद्यालय में अलग-अलग विचारधाराएं है लेकिन विचारधाराओं के बीच संवाद की कभी कमी देखने को नहीं मिली है. 100 वर्ष के जश्न के मौके पर दिल्ली विश्वविद्यालय से जुड़े सभी कर्मचारियों छात्रों को शुभकामनाएं दी.

प्रोफेसर मनोज झा ने कहा कि आज जिस भी मुकाम पर पहुंचे हैं, वह दिल्ली विश्वविद्यालय की बदौलत ही है. उन्होंने कहा कि संवाद निरंतर हो और धाराओं के बीच संवाद किस तरीके से निरंतर चलते रहना चाहिए यह विश्वविद्यालय ने सिखाया है. डीयू को खूबसूरत इमारत से नहीं बल्कि इसके इबादत से भी देखने की जरूरत है. इसके अलावा उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय ने हमें मजबूत होना भी सिखाया है. इस दौरान उन्होंने छात्र जीवन के यादों के बारे में बताते हुए कहा कि 90 के दशक में जब सड़कों पर प्रतिरोध के लिए निकलते थे तो हमें देशद्रोह की धाराओं में बंद नहीं किया जाता था. अगर पुलिस हिरासत में लेती थी तो शाम तक छोड़ देती थी.

दिल्ली विश्वविद्यालय के 100 वर्षाें का इतिहास

1990 के दशक से लेकर 2022 में काफी कुछ बदला है. महज अगर कोई एक कविता पढ़ देता है तो उस पर मुकदमा दर्ज हो जाता है. कुछ लिखने पर देशद्रोह का चार्ज लग जाता है. इस सबसे ना ही हमारे देश को और ना ही विश्वविद्यालय को कोई फायदा पहुंच रहा है. इसके अलावा उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय का दर्शन वैश्विक होना चाहिए. साथ ही कहा कि देश से मोहब्बत करते हैं लेकिन जरूरी नहीं है कि सरकार से मोहब्बत करें सरकार से सवाल पूछेंगे. यह इन दिनों बिल्कुल उल्टा हो गया है जो की चिंता का विषय है.

इसे भी पढ़ेंः शौर्यगाथा : डीयू स्थित शहीद स्मारक, भगत सिंह पर अंग्रेजों के ज़ुल्म की निशानियां

प्रोफेसर मनोज झा ने कहा कि हमें वह संस्कृति विकसित करनी होगी जहां पर निरंतर संवाद हो फिलहाल विश्वविद्यालयों में अपनी बात रखने की भी अब कमी खलने लगी है. उन्होंने कहा कि हमारा हिंदुस्तान इस तरीके से नहीं रहेगा. यह कुछ ही समय की बात है सब कुछ ठीक होगा. हिंदुस्तान का महासागर का चरित्र रहा है. महासागर कभी भी तालाब नहीं बनना चाहेगा. प्रोफेसर मनोज झा ने कहा कि बदलाव स्वाभाविक है. लेकिन कुछ बदलाव जो हो रहे है. वह पूंजीवाद को बढ़ावा देगा. उन्होंने उदाहरण देते हुए शैक्षणिक सत्र 2022 - 23 से सेंट्रल यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट पर सवाल किया और कहा कि इससे निम्न वर्ग के छात्रों को डीयू में दाखिले के लिए काफी परेशानी होगी.

इसके अलावा उन्होंने कहा कि नए नियम की वजह से कई सारे कोचिंग सेंटर खुल गए हैं. ऐसे में इन सभी बातों को ध्यान में रखकर हमें यह सोचने की जरूरत है कि क्या हम शिक्षा को नव उदारवाद बना रहे हैं जहां पर प्राइवेट कॉलोनी होगी. इसके तहत जो भी कुछ सोचा गया था वह कहीं पीछे छूट जाएगा. प्रोफेसर मनोज झा ने कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय के समकक्ष यूनिवर्सिटी देश के अन्य हिस्सों में बनना चाहिए. जिससे कि डीयू में पढ़ने का जो छात्र सपना देखते हैं उनका सपना साकार हो सके. लेकिन यह इस तरह से नहीं होना चाहिए जैसे फिलहाल की स्थिति में देश के कई राज्यों में एम्स बनाया जा रहा है. उसके बावजूद भी लोग उपचार कराने के लिए दिल्ली में स्थित एम्स आना चाहते हैं.

इसे भी पढ़ेंः डीयू: शताब्दी वर्ष के जश्न में इन्हें डिग्री पूरा करने का मिलेगा एक और मौका

इसके अलावा प्रोफेसर मनोज झा ने कहा कि देश में जितनी चर्चा बुलडोजर को लेकर हो रही है केंद्र या राज्य सरकार कोई भी बेरोजगारी को लेकर चर्चा नहीं कर रही है. जितनी चर्चा लाउडस्पीकर की हो रही है उसका दसवां हिस्सा भी कोई भी राज्य सरकार या केंद्र सरकार भुखमरी और बेरोजगारी पर चर्चा नहीं कर रही है. साथ ही कहा कि जब तक सरकारों के संवाद में बदलाव नहीं आएगा. कॉलेज के प्लेसमेंट या देश की बेरोजगारी दर में कोई परिवर्तन नहीं देखने को मिलेगा.

नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय एक मई को स्थापना के 100वें वर्ष का जश्न शताब्दी समाराेह के रूप में मनाने जा रहा है. 100 वर्ष के इस सफर को पूरा करने के दौरान दिल्ली विश्वविद्यालय ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं. विश्वविद्यालय ने देश की आजादी से लेकर आधुनिक भारत के कई आयाम को देखा है. डीयू की शुरुआत तीन कॉलेज और 750 छात्रों के साथ वर्ष 1922 में हुई थी. अब इसकी संख्या बढ़कर 90 कॉलेज 6 लाख से अधिक छात्र और 86 डिपार्टमेंट की हो चुकी है.

दिल्ली विश्वविद्यालय के 100 वर्ष के सफर को लेकर ईटीवी भारत ने डीयू के पूर्व छात्र, प्रोफेसर और राज्यसभा सांसद प्रोफेसर मनोज झा से खास बात की. उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से जुड़ी कई यादें और मौजूदा परिप्रेक्ष्य में अपनी बात रखी. इस दौरान उन्होंने कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय की एक विशालता है और इसमें बहुलता है. जिसमें कॉलेज और डिपार्टमेंट हैं. विश्वविद्यालय में अलग-अलग विचारधाराएं है लेकिन विचारधाराओं के बीच संवाद की कभी कमी देखने को नहीं मिली है. 100 वर्ष के जश्न के मौके पर दिल्ली विश्वविद्यालय से जुड़े सभी कर्मचारियों छात्रों को शुभकामनाएं दी.

प्रोफेसर मनोज झा ने कहा कि आज जिस भी मुकाम पर पहुंचे हैं, वह दिल्ली विश्वविद्यालय की बदौलत ही है. उन्होंने कहा कि संवाद निरंतर हो और धाराओं के बीच संवाद किस तरीके से निरंतर चलते रहना चाहिए यह विश्वविद्यालय ने सिखाया है. डीयू को खूबसूरत इमारत से नहीं बल्कि इसके इबादत से भी देखने की जरूरत है. इसके अलावा उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय ने हमें मजबूत होना भी सिखाया है. इस दौरान उन्होंने छात्र जीवन के यादों के बारे में बताते हुए कहा कि 90 के दशक में जब सड़कों पर प्रतिरोध के लिए निकलते थे तो हमें देशद्रोह की धाराओं में बंद नहीं किया जाता था. अगर पुलिस हिरासत में लेती थी तो शाम तक छोड़ देती थी.

दिल्ली विश्वविद्यालय के 100 वर्षाें का इतिहास

1990 के दशक से लेकर 2022 में काफी कुछ बदला है. महज अगर कोई एक कविता पढ़ देता है तो उस पर मुकदमा दर्ज हो जाता है. कुछ लिखने पर देशद्रोह का चार्ज लग जाता है. इस सबसे ना ही हमारे देश को और ना ही विश्वविद्यालय को कोई फायदा पहुंच रहा है. इसके अलावा उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय का दर्शन वैश्विक होना चाहिए. साथ ही कहा कि देश से मोहब्बत करते हैं लेकिन जरूरी नहीं है कि सरकार से मोहब्बत करें सरकार से सवाल पूछेंगे. यह इन दिनों बिल्कुल उल्टा हो गया है जो की चिंता का विषय है.

इसे भी पढ़ेंः शौर्यगाथा : डीयू स्थित शहीद स्मारक, भगत सिंह पर अंग्रेजों के ज़ुल्म की निशानियां

प्रोफेसर मनोज झा ने कहा कि हमें वह संस्कृति विकसित करनी होगी जहां पर निरंतर संवाद हो फिलहाल विश्वविद्यालयों में अपनी बात रखने की भी अब कमी खलने लगी है. उन्होंने कहा कि हमारा हिंदुस्तान इस तरीके से नहीं रहेगा. यह कुछ ही समय की बात है सब कुछ ठीक होगा. हिंदुस्तान का महासागर का चरित्र रहा है. महासागर कभी भी तालाब नहीं बनना चाहेगा. प्रोफेसर मनोज झा ने कहा कि बदलाव स्वाभाविक है. लेकिन कुछ बदलाव जो हो रहे है. वह पूंजीवाद को बढ़ावा देगा. उन्होंने उदाहरण देते हुए शैक्षणिक सत्र 2022 - 23 से सेंट्रल यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट पर सवाल किया और कहा कि इससे निम्न वर्ग के छात्रों को डीयू में दाखिले के लिए काफी परेशानी होगी.

इसके अलावा उन्होंने कहा कि नए नियम की वजह से कई सारे कोचिंग सेंटर खुल गए हैं. ऐसे में इन सभी बातों को ध्यान में रखकर हमें यह सोचने की जरूरत है कि क्या हम शिक्षा को नव उदारवाद बना रहे हैं जहां पर प्राइवेट कॉलोनी होगी. इसके तहत जो भी कुछ सोचा गया था वह कहीं पीछे छूट जाएगा. प्रोफेसर मनोज झा ने कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय के समकक्ष यूनिवर्सिटी देश के अन्य हिस्सों में बनना चाहिए. जिससे कि डीयू में पढ़ने का जो छात्र सपना देखते हैं उनका सपना साकार हो सके. लेकिन यह इस तरह से नहीं होना चाहिए जैसे फिलहाल की स्थिति में देश के कई राज्यों में एम्स बनाया जा रहा है. उसके बावजूद भी लोग उपचार कराने के लिए दिल्ली में स्थित एम्स आना चाहते हैं.

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इसके अलावा प्रोफेसर मनोज झा ने कहा कि देश में जितनी चर्चा बुलडोजर को लेकर हो रही है केंद्र या राज्य सरकार कोई भी बेरोजगारी को लेकर चर्चा नहीं कर रही है. जितनी चर्चा लाउडस्पीकर की हो रही है उसका दसवां हिस्सा भी कोई भी राज्य सरकार या केंद्र सरकार भुखमरी और बेरोजगारी पर चर्चा नहीं कर रही है. साथ ही कहा कि जब तक सरकारों के संवाद में बदलाव नहीं आएगा. कॉलेज के प्लेसमेंट या देश की बेरोजगारी दर में कोई परिवर्तन नहीं देखने को मिलेगा.

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