नई दिल्ली : केंद्र ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि आम आदमी पार्टी (आप) सरकार का 'एक राष्ट्र एक राशन कार्ड' (ओएनओआरसी) योजना लागू करने संबंधी दावा भ्रामक है क्योंकि इस योजना का पूरी तरह क्रियान्वयन नहीं होने के कारण दिल्ली में बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिक राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के तहत सब्सिडी वाला खाद्यान्न नहीं ले पा रहे.
केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालत के समक्ष दायर हलफनामे में कहा कि आप सरकार ने केवल सर्कल 63 सीमापुरी में एक राष्ट्र-एक राशन कार्ड योजना लागू की है.
केंद्र का हलफनामा कोविड 19 के दौरान प्रवासियों की समस्याओं और दुखों पर एक स्वत: संज्ञान मामले के जवाब में आया है. पिछली सुनवाई में केंद्र ने अदालत से कहा था कि असम, छत्तीसगढ़, दिल्ली और पश्चिम बंगाल एकमात्र ऐसे राज्य हैं जिन्होंने एक राष्ट्र एक राशन कार्ड (ओएनओआरसी) योजना को लागू नहीं किया है.
दिल्ली सरकार ने किया था खंडन
दिल्ली ने इसका खंडन किया था और कहा था कि उसने इसे लागू कर दिया है. हलफनामे में केंद्र ने अदालत को बताया है कि 'केवल 42 ईपीओएस (ePoS) मशीनों के साथ एक सर्कल में किए गए कुछ ही लेनदेन को ONORC के कार्यान्वयन के रूप में नहीं माना जा सकता है.'
'ओएनओआरसी का कार्यान्वयन नहीं माना जा सकता'
हलफनामे में आगे कहा गया है कि जब तक राष्ट्रीय पोर्टेबिलिटी लेनदेन औपचारिक रूप से एनसीटी दिल्ली के सभी सर्किलों के सभी एफपीएस में शुरू नहीं किया जाता है, जिसमें 2000 से अधिक ईपीओएस मशीनों की आपूर्ति की गई है और संचालन की प्रतीक्षा कर रहे हैं, इसे ओएनओआरसी के कार्यान्वयन के रूप में नहीं माना जा सकता है.'
'प्रवासियों की एनएफएसए खाद्यान्न तक पहुंच नहीं'
इसके साथ ही केंद्र ने कहा है कि पूरी दिल्ली में बहुत बड़ी संख्या में अंतरराज्यीय प्रवासी मौजूद हैं, जिनके पास अपने एनएफएसए खाद्यान्न तक पहुंच नहीं है, वे अपने स्वयं के गांवों/गृहनगरों से दूर होने के कारण सब्सिडी वाले अपने कोटे का लाभ लेने में सक्षम नहीं हैं.
चार राज्यों ने लागू नहीं की योजना
केंद्र ने कहा कि अधिकांश राज्य ओएनओआरसी लागू कर रहे हैं, लेकिन चार राज्यों - असम, छत्तीसगढ़, दिल्ली और पश्चिम बंगाल - ने अभी तक यह योजना लागू नहीं की है और यह राशन कार्ड की पोर्टेबिलिटी को लागू करने के लिए उनकी 'तकनीकी तत्परता' पर निर्भर करेगा.
केंद्र ने कहा कि उसने उन सभी लाभार्थियों के लिए खाद्यान्न की योजना का विस्तार किया है, जो एनएफएसए के तहत कवर नहीं हैं और जिन्हें राज्य सरकारों द्वारा हर महीने प्रति व्यक्ति पांच किलोग्राम खाद्यान्न देने की उनकी योजना के तहत राशन कार्ड जारी किए गए हैं.
हलफनामे में कहा गया है, 'सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को 20 मई, 2021 और 25 मई, 2021 को खाद्यान्न संबंधी अपनी आवश्यकताओं के अनुसार उल्लिखित योजनाओं का लाभ उठाने और प्रवासियों / फंसे हुए लोगों सहित उन लोगों को खाद्यान्न उपलब्ध कराने की सलाह दी गई थी, जो एनएफएसए के तहत कवर नहीं होते.'
केंद्रशासित प्रदेशों से कहा था लागू करें योजना
शीर्ष अदालत ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से 11 जून को कहा था कि उन्हें ओएनओआरसी योजना को लागू करना चाहिए क्योंकि यह प्रवासी श्रमिकों को उन अन्य राज्यों में भी उनके कार्यस्थल पर राशन प्राप्त करने की अनुमति देता है जहां उनके राशन कार्ड पंजीकृत नहीं हैं.
शीर्ष अदालत ने राष्ट्रीय डाटाबेस तैयार करने के लिये असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले कामगारों के पंजीकरण के लिये सॉफ्टवेयर विकसित करने में देरी पर कड़ा रुख भी जताया था.
कोर्ट ने केंद्र से मांगा था जवाब
न्यायालय ने केंद्र से पूछा था कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत इस साल नवंबर तक उन प्रवासी श्रमिकों को मुफ्त खाद्यान्न कैसे मिलेगा, जिनके पास राशन कार्ड नहीं है.
न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एम आर शाह की अवकाशकालीन पीठ ने कार्यकर्ताओं अंजलि भारद्वाज, हर्ष मंदर और जगदीप चोकर की ताजा अर्जियों पर फैसला सुरक्षित रख लिया था.
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पीठ ने केंद्र, याचिकाकर्ताओं और राज्यों से इस मामले में लिखित में अपनी बातें रखने का निर्देश दिया था.
कोविड-19 मामलों के फिर से बढ़ने के बीच देश में लगाई गई पाबंदियों के कारण प्रवासी श्रमिकों को होने वाली समस्याओं के मुद्दे पर 2020 के लंबित स्वत: संज्ञान मामले में ये आवेदन दायर किए गए थे.
(भाषा इनपुट के साथ)